भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है. इसे पद्मा एकादशी और जयंती एकादशी भी कहते हैं. इस दिन भगवान विष्णु के वामन स्वरूप और भगवान गणेश की पूजा की जाती है.

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यह व्रत पापों का प्रायश्चित करता है और भौतिक सुख-संपन्नता के साथ परलोक में मुक्ति प्रदान करता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन विधि-विधान से पूजा करने से भक्तों को विशेष लाभ प्राप्त होता है.

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

परिवर्तनी एकादशी का व्रत 3 सितंबर2025 को रखा जाएगा. पंचांग अनुसार परिवर्तनी एकादशी के दिन पूजा व दान का शुभ समय सुबह के दौरान लाभ व अमृत मुहूर्त में 06:00 एएम से 09:10 एएम तक व शाम को 05:05 पीएम से 06:40 पीएम तक रहेगा. इस व्रत का पारण अगले दिन यानी 4 सितंबर 2025 को दोपहर 01:36 से 04:07 बजे के बीच होगा.

परिवर्तनी एकादशी के दिन ऐसे करें पूजा
1. परिवर्तनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु और भगवान गणेश की पूजा की जाती है.
2. प्रातःकाल स्नान करके सूर्य देवता को जल अर्पित करें.
3. इसके बाद पीले वस्त्र धारण करें.
4. भगवान विष्णु को पीले फूल, पंचामृत और तुलसी दल अर्पित करें.
5. भगवान गणेश को मोदक और दूर्वा अर्पित करें.
6. पूजा के दौरान पहले ‘ओम गणपतये नमः’ मंत्र का जप करें और फिर ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जप करें.
7. इस दिन व्रत रखने का विशेष महत्व है. अन्न का सेवन न करें और जलाहार या फलाहार ग्रहण करें.
8. पूजा के बाद किसी निर्धन व्यक्ति को अन्न, वस्त्र, जूते या छाते का दान करें. ऐसा करने से जीवन में आने वाली रुकावटें दूर होती हैं.

संतान प्राप्ति और धन लाभ के लिए करें ये उपाय
परिवर्तनी एकादशी पर संतान प्राप्ति के लिए विशेष उपाय बताए गए हैं. भगवान गणेश को अपनी उम्र के बराबर लड्डू अर्पित करें. यदि यह संभव न हो तो 11 लड्डू या 11 मोदक अर्पित करें. इसके बाद ‘संतान गणपति स्रोत’ का पाठ करें या ‘ओम उमापुत्राय नमः’ मंत्र का 108 बार जप करें. पति-पत्नी पहले प्रसाद ग्रहण करें और बाद में इसे बांट दें. यह उपाय संतान प्राप्ति में सहायक माना जाता है. धन लाभ के लिए भगवान गणेश को पीले फूल और पीला भोग अर्पित करें. ओम श्रीम सौम्याय सौभाग्यय गण गणपतये नमः मंत्र का 108 बार जप करें.

  • यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए फलदायी माना जाता है जिनके जीवन में अशांति और अस्थिरता बनी रहती है. परिवर्तिनी एकादशी पर व्रत के साथ दान करना अनिवार्य माना गया है. धर्मशास्त्रों में दान के अलग-अलग फल बताए गए हैं.
    परिवर्तिनी एकादशी पर किए जाने वाले दान और उनके फल
    शास्त्रों में कहा गया है “दानं पुण्यस्य कारणम्” यानी दान ही पुण्य का मूल है. एकादशी व्रत तभी पूर्ण माना जाता है जब व्रती पारण के बाद दान-पुण्य करता है.
    अन्न दान (Food Donation)
    इस दिन भूखों, साधु-संतों या जरूरतमंदों को भोजन कराना सर्वोत्तम दान माना गया है.
    महाभारत और पद्म पुराण में कहा गया है कि अन्न दान करने से मनुष्य को इस लोक और परलोक दोनों में सुख मिलता है.
    इसका फल है दरिद्रता का नाश, घर में अन्न-समृद्धि और कभी अकाल न पड़ना.
    वस्त्र दान (Clothes Donation)
    एकादशी पर गरीब, असहाय या ब्राह्मण को वस्त्र दान करने से पाप नष्ट होते हैं
    मान्यता है कि वस्त्र दान करने से पितृ दोष शांत होता है और ग्रहों के दुष्प्रभाव कम होते हैं.
    यह दान व्यक्ति के जीवन में सुख, स्वास्थ्य और आत्मबल प्रदान करता है.
    स्वर्ण-रजत दान (Gold/Silver Donation)
    शास्त्रों में इसे अक्षय दान कहा गया है. यह दान अत्यंत पुण्यकारी है और इसे करने से लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है.
    स्वर्ण या रजत दान करने से धन की वृद्धि, मान-सम्मान और यश की प्राप्ति होती है.
    धूप-दीप, शैय्या या पात्र दान (Lamp, Bed or Vessels Donation)
    विष्णु पुराण के अनुसार दीप, धूप, पात्र या शैया का दान करने से व्यक्ति को स्वर्गलोक में स्थान प्राप्त होता है.
    शैय्या दान से मृत्युपरांत आत्मा को शांति मिलती .
    इसका फल है मोक्ष और पितरों की तृप्ति.
    भूमि दान (Land Donation)
    भूमि दान को शास्त्रों में सबसे महान दान कहा गया है.
    इसका प्रभाव जन्म-जन्मांतर तक रहता है और यह सभी पापों का नाश कर देता है.
    यदि भूमि दान संभव न हो तो भूमि में खेती के लिए बीज बोने वाले दान को भी शुभ माना गया है.
    जलपात्र या घड़ा दान (Matka/Water Pot Donation)
    मिट्टी का घड़ा (मटका) विशेष रूप से जल और जीवन का प्रतीक है.
    परिवर्तिनी एकादशी पर लाल कपड़े में लपेटकर घड़ा दानकरने का विशेष महत्व है.
    यह दान जीवन से उथल-पुथल, मानसिक तनाव और पारिवारिक कलह को दूर करता है.
    शास्त्रों में इसे स्थिरता और शांति का दान कहा गया है.
    लोक मान्यता है कि ऐसा करने से घर में जल की तरह सुख-समृद्धि और शांति का प्रवाह बना रहता है.


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