
(अवतार सिंह बिष्ट, वरिष्ठ संवाददाता, रुद्रपुर)

16 अक्टूबर 2025 को जब हम यह संपादकीय लिख रहे हैं, तब उत्तराखण्ड शासन के मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह द्वारा जारी वह आदेश पूरे नौ वर्ष पुराना हो चुका है — जी हाँ, 21 जुलाई 2016 को जारी हुआ था वह शासनादेश, जिसमें हल्द्वानी राजकीय मेडिकल कॉलेज में ट्रस्ट काल के बाद बिना स्वीकृति तैनात अतिरिक्त 520 कर्मियों की नियुक्तियों पर जांच के आदेश दिए गए थे।
लेकिन नौ वर्ष बीत जाने के बाद भी, न तो वह जांच रिपोर्ट शासन को सौंपी गई, न ही किसी अधिकारी पर कार्रवाई हुई। उल्टा, वही सिस्टम, वही लापरवाही और वही संरक्षण आज भी कायम है।
आदेश क्या था?
20 जुलाई 2016 की शाम 5 बजे मुख्य सचिव की अध्यक्षता में चिकित्सा शिक्षा विभाग की महत्वपूर्ण समीक्षा बैठक हुई थी। बैठक में प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा ओम प्रकाश, अपर सचिव डॉ. पंकज कुमार पांडे, निदेशक चिकित्सा शिक्षा डॉ. आशुतोष सयाना, और राजकीय मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी के प्राचार्य डॉ. चन्द्र प्रकाश सहित तमाम वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।
बैठक में यह तथ्य सामने आया कि कॉलेज में राजकीयकरण से पहले उपनल (UPNL) के माध्यम से 849 कर्मचारी तैनात थे, जिनका अनुबंध मई 2016 में समाप्त हो चुका था। इसके अलावा 120 नियमित और 171 संविदा कर्मचारी भी कार्यरत थे, जबकि शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के लिए केवल 620 पद ही स्वीकृत थे।
इस प्रकार 520 कर्मी अधिक पाए गए — जिनकी नियुक्ति शासन की अनुमति के बिना की गई थी।
बैठक में तय हुआ था:
- अतिरिक्त पदों की वास्तविक आवश्यकता का आकलन किया जाएगा और औचित्य सहित प्रस्ताव शासन को भेजा जाएगा।
- निर्माणाधीन मेडिकल कॉलेज अल्मोड़ा और सिद्दपुर के लिए भी नए पदों का प्रस्ताव तैयार किया जाएगा।
- उधमसिंह नगर, नैनीताल और अल्मोड़ा जिलों में रिक्त पदों का ब्यौरा एकत्र किया जाएगा।
- तब तक 849 कर्मचारियों की सेवाएं उपनल के माध्यम से जारी रहेंगी।
- सबसे महत्वपूर्ण बिंदु —
“राजकीयकरण के उपरांत स्वीकृत पदों से अधिक कर्मियों की तैनाती किये जाने के संबंध में संबंधित प्राचार्य/उत्तरदायी अधिकारी के विरुद्ध जांच कर आख्या शासन को एक माह में प्रस्तुत की जाये।”
और यदि आवश्यक हुआ तो यह मामला सर्तकता विभाग (Vigilance) को सौंपा जाएगा।
पर नौ साल बाद भी… क्या हुआ?
आज 16 अक्टूबर 2025 है। यानी आदेश को जारी हुए पूरे 9 साल 3 महीने हो चुके हैं।
परंतु शासन फाइलें आज भी उसी टेबल पर हैं जहाँ 2016 में थीं।
न कोई जांच आख्या शासन को सौंपी गई, न किसी अधिकारी या प्राचार्य के विरुद्ध कोई दंडात्मक कार्रवाई हुई।
डॉ. चन्द्र प्रकाश अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं, डॉ. आशुतोष सयाना उच्च पदों पर पदोन्नत होकर अन्यत्र चले गए, और विभागीय फाइलें सरकारी ‘मौन’ का प्रतीक बन गईं।
विधि-विशेषज्ञों का आरोप: “यह स्पष्ट प्रशासनिक लापरवाही है”
देहरादून के वरिष्ठ विधिवेत्ता अधिवक्ता भगत सिंह रावत का कहना है:
“यह प्रकरण केवल एक मेडिकल कॉलेज की अनियमितता नहीं, बल्कि शासन के विलंबित न्याय की मिसाल है। जब मुख्य सचिव स्तर पर जांच के स्पष्ट निर्देश दिए गए थे, तो नौ साल बाद भी कोई रिपोर्ट न आना दर्शाता है कि या तो जांच को जानबूझकर दबाया गया या संबंधित अधिकारियों को संरक्षण मिला। यह सीधे-सीधे अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 311 (लोकसेवकों की जवाबदेही) की भावना के विपरीत है।”
उन्होंने यह भी कहा कि यदि शासन अब भी इस मामले को दबाए रखता है, तो जनहित याचिका (PIL) के माध्यम से उच्च न्यायालय में इसे उठाया जाना चाहिए, क्योंकि यह लोक वित्तीय अनुशासन और पारदर्शिता दोनों का उल्लंघन है।
520 कर्मियों की तैनाती — ‘अवसर या भ्रष्टाचार’?
जिस समय यह अतिरिक्त कर्मी तैनात किए गए, तब शासन की अनुमति नहीं थी। फिर भी उन्हें साल-दर-साल वेतन मिलता रहा — उपनल के माध्यम से व्यावसायिक सेवा मद से भुगतान किया जाता रहा। यह रकम करोड़ों में है।
प्रश्न यह उठता है कि क्या शासन को इस पर कोई आपत्ति नहीं थी?
क्या यह ‘जनसेवा’ की आड़ में एक संगठित भ्रष्टाचार नहीं था?
जवाबदेही कौन तय करेगा?
मुख्य सचिव का आदेश कागजों में तो जारी हुआ, पर उसका पालन किसने किया, इसका कोई रिकॉर्ड आज भी उपलब्ध नहीं।
राजकीय मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी के फाइलों में हर वित्तीय वर्ष नए संविदा विस्तार होते गए, लेकिन जांच की फाइल “जैसी थी वैसी” रही।
अब सवाल जनता का:
- नौ साल बाद भी शासन जांच रिपोर्ट प्रस्तुत क्यों नहीं कर सका?
- उस समय के प्राचार्य, निदेशक और सचिवों पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
- क्या यह मामला प्रशासनिक मिलीभगत का उदाहरण नहीं है?
राज्य बनने के 25 साल बाद भी यदि उत्तराखण्ड में जांच फाइलें राजनीति और संरक्षण के बोझ तले दबती रहेंगी, तो “भ्रष्टाचार-मुक्त शासन” के दावे केवल नारों तक ही सीमित रह जाएंगे।
हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज का यह मामला अब केवल चिकित्सा शिक्षा विभाग का नहीं रहा — यह शासन की ईमानदारी की परीक्षा बन गया है।
अब वक्त है कि मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव इस पुरानी फाइल को फिर से खोलें — क्योंकि जो जांच 2016 में एक माह में पूरी होनी थी, वह अब नौ साल से “मौन शासन” की प्रतीक बन चुकी है।
(लेखक: अवतार सिंह बिष्ट, वरिष्ठ संवाददाता – हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी
हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज में बिना स्वीकृति तैनात 520 अतिरिक्त कर्मियों पर शासन सख्त, जांच के आदेश — मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई थी समीक्षा बैठक में बड़ा निर्णय गया था।
उत्तराखण्ड शासन ने हल्द्वानी राजकीय मेडिकल कॉलेज में ट्रस्ट काल के बाद राज्यकरण के उपरांत बिना स्वीकृति के नियुक्त अतिरिक्त कर्मियों पर सख्त रुख अपनाया है। मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह की अध्यक्षता में 20 जुलाई 2016 को अपराह्न 5 बजे हुई चिकित्सा शिक्षा विभाग की समीक्षा बैठक में इस गंभीर अनियमितता पर जांच के आदेश जारी किए गए हैं।
बैठक में यह खुलासा हुआ कि मेडिकल कॉलेज, हल्द्वानी में उपनल (UPNL) के माध्यम से 849 कर्मचारी आउटसोर्स पर कार्यरत हैं, जिनका अनुबंध 31 मई 2016 को समाप्त हो चुका था। इसके अलावा 120 नियमित और 171 संविदा कर्मियों की नियुक्ति भी है, जबकि कॉलेज में शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के केवल 620 पद ही स्वीकृत हैं। इस प्रकार कुल 520 कर्मी अधिक पाए गए।
बैठक में उपस्थित अधिकारी
बैठक में प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा ओम प्रकाश, अपर सचिव डॉ. पंकज कुमार पांडे, निदेशक चिकित्सा शिक्षा डॉ. आशुतोष सयाना, और राजकीय मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी के तत्कालीन प्राचार्य डॉ. चन्द्र प्रकाश उपस्थित रहे।
बैठक में लिए गए प्रमुख निर्णय
- अतिरिक्त पदों का आकलन:
निदेशक चिकित्सा शिक्षा एवं अपर सचिव चिकित्सा शिक्षा को निर्देश दिया गया कि वे हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज का निरीक्षण कर अतिरिक्त पदों की वास्तविक आवश्यकता का आकलन करें और औचित्य सहित शासन को प्रस्ताव भेजें। - नए पद सृजन का प्रस्ताव:
निर्माणाधीन राजकीय मेडिकल कॉलेज अल्मोड़ा तथा सिद्दपुर (संभावित स्थान) के लिए भी आवश्यक पदों के सृजन का प्रस्ताव वित्त विभाग को सहमति हेतु भेजा जाएगा। - रिक्त पदों की सूचना:
उधमसिंह नगर, नैनीताल और अल्मोड़ा जनपदों में चिकित्सा विभाग के तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के रिक्त पदों का ब्यौरा एकत्र किया जाएगा। - अतिरिक्त कर्मियों का सम्बद्धीकरण:
कुल 520 अतिरिक्त कर्मचारियों को उपलब्ध स्वीकृत पदों के सापेक्ष सम्बद्ध किया जाएगा और इनकी सेवाएं उपनल के माध्यम से ही पूर्ववत ली जाती रहेंगी। - अस्थायी व्यवस्था:
जब तक पदों का औपचारिक अनुमोदन नहीं हो जाता, तब तक सभी 849 आउटसोर्स कर्मियों की सेवाएं उपनल के माध्यम से जारी रहेंगी। इन सेवाओं का भुगतान व्यावसायिक सेवा मद से किया जाएगा और आवश्यकता पड़ने पर बजट या आकस्मिकता निधि से धन की व्यवस्था की जाएगी। - जांच का आदेश:
मेडिकल कॉलेज के राजकीयकरण के बाद स्वीकृत पदों से अधिक कर्मियों की तैनाती के लिए संबंधित प्राचार्य एवं उत्तरदायी अधिकारियों के विरुद्ध जांच के आदेश दिए गए हैं। निदेशक चिकित्सा शिक्षा को एक माह के भीतर जांच आख्या शासन को प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए हैं। आवश्यक हुआ तो यह प्रकरण सर्तकता विभाग (Vigilance) को भेजा जाएगा।
शासन की सख्ती का संकेत
मुख्य सचिव ने कहा कि बिना स्वीकृति नियुक्तियां गंभीर वित्तीय एवं प्रशासनिक अनियमितता की श्रेणी में आती हैं। इसलिए शासन भविष्य में इस प्रकार की नियुक्तियों को कदापि स्वीकार नहीं करेगा।
पृष्ठभूमि!हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज के राज्यकरण से पहले यह संस्थान ट्रस्ट द्वारा संचालित था। उस अवधि में कई कर्मचारियों की नियुक्ति उपनल और आउटसोर्स माध्यम से की गई थी। राज्यकरण के बाद भी ये कर्मी यथावत कार्यरत रहे, जिससे संविधानिक और वित्तीय जिम्मेदारी को लेकर सवाल उठे।
बैठक के अंत में मुख्य सचिव ने सभी अधिकारियों को निर्देश दिया कि राजकीय मेडिकल कॉलेजों में मानव संसाधन प्रबंधन की स्थिति को पारदर्शी और मानकानुसार बनाने के लिए शीघ्र ठोस कार्यवाही सुनिश्चित की जाए।
(प्रमुख संवाददाता – अवतार सिंह बिष्ट, रुद्रपुर)


