पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत उस शख्सियत का नाम है ।जिसने विपरीत परिस्थितियों में रहकर उत्तराखंड की राजनीति के शिखर तक का सफर किया । अपने ही सिखाए हुए राजनीतिक चेलों ने मुख्यमंत्री बनते ही दिखाने शुरू कर दिए थे रंग। फिर भी उत्तराखंड में देश में चट्टान की तरह खड़ा यह शख्स उम्र के इस पड़ाव पर भी उत्तराखंड को लेकर सबसे ज्यादा सक्रिय है ।जानते हैं हरीश रावत के उत्तराखंडियत के बारे में हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स के साथ ,हमेशा से मेरा मन उत्तराखंड के बारे में कुछ नया जानने को उत्सुक रहता है। जगह जगह जाकर उत्तराखंडियों को जगाना, उनसे सीखना, उनके गिलहरी जैसे योगदान को Devbhoomi Dialogue के मंच से सामने लाने का प्रयास। कई मायनों में ये प्रयास रंग लाता दिखाई देने लगा है। बहरहाल आज बात उस पुस्तक की जिसे कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत ने नाम दिया “मेरा जीवन लक्ष्य उत्तराखंडियत। जब मेरे पिता ने यह पुस्तक पढ़ी तो उन्होने ही मुझे इस पुस्तक को पढ़ने के लिए प्रेरित किया। निसंदेह इस पुस्तक में बहुत कुछ ऐसा है जो हम सबको अपने राज्य को बेहतर रूप समझने में मदद करेगा। बालिका वधू से घर की दादी मां तक का उनका ये सफर वाकई पढ़ने लायक है। 55 साल के उनके राजनीतिक जीवन के अनुभवों को पुस्तक के रूप में पढ़ना एक शानदार अनुभव रहा। अपने स्मृति पटल पर हिलोरे मारे रहे कुछ भावों के में यहां प्रकट कर रहां हूं।
हरीश रावत को आप चाहे पसंद करें या ना करें, मगर आप उन्हें अनदेखा नहीं कर सकते हैं। आप उनकी बातों से सहमत हो या ना हो मगर एक पल के लिए जरूर उनकी बातों पर विचार करते हैं। उत्तराखंड के वरिष्ठतम सक्रिय राजनेताओं में एक हरीश रावत उत्तराखंड की राजनीति में तमाम झंझावतों के बावजूद अपनी उपस्थिति बनाए रखते हैं। चाहे फिर वो विरोधियों पर हमला करें या अपनों को नसीहत दें, देखते ही देखते मीडिया की सुर्खियां बन जाते हैं।
हरीश रावत अपनी बात को इस कौशल के साथ कहने में माहिर हैं कि उन पर चर्चा शुरू हो जाती है।उनकी सोशल मीडिया की हर पोस्ट भले ही लच्छेदार हो, मगर उसके पीछे कई मायने होते हैं। वो कई बार पार्टी के भीतर अपनी स्थिति को लेकर पार्टी पर तंज कर देते हैं तो कभी अपनी अनदेखी को सौभाग्य बताकर पार्टी के नेताओं को घेर लेते हैं। शब्दों की तुरपाई में उनका कोई सानी नहीं। अगर वह संन्यास की बात करते हैं तो संदेश युद्ध का होता है और अगर वह आक्रामक होते हैं तो कहीं विवशता भी छिपी होती है।
हरीश रावत के विरोधी उन पर हमले करने का कोई मौका नहीं छोड़ते। राज्य आंदोलनकारी उन्हें चुनौती देते हैं कि वह उत्तराखंड आंदोलन में कहां खड़े थे। उनका हरीश रावत पर सीधा आरोप है कि वह लगातार केंद्र शासित राज्य के पक्षधर रहे। इसका जिक्र उन्होने अपनी पुस्तक में भी किया है। 2 अक्टूबर 1994 की दिल्ली रैली की अव्यवस्था अफरातफरी के लिए हरीश रावत को जिम्मेदार ठहराते हैं। जिस तेजी से हरीश रावत छात्र राजनीति और उसके बाद संजय गांधी की सरपरस्ती में राष्ट्रीय राजनीति में उभरे वो देखने लायक रहा। लेकिन राम लहर के बाद मानो उनकी राजनीति पर लंबा विराम लग गया। सौम्य शालीन और सहज भाजपा के साधारण से नेता स्वर्गीय बच्ची सिंह रावत ने उन्हें अल्मोड़ा जैसी चर्चित लोकसभा सीट से लगातार पटखनी दी। प्रयोग के तौर पर हरीश रावत जी की पत्नी भी लड़ी मगर उन्हें भी शिकस्त झेलनी पड़ी। राजनीति के तीन तिकड़म और चुनावी कला में माहिर हरीश रावत साधारण से बची सिंह रावत से पछाड़ खाते रहे।
राजनीति में टूटना बिखरना फिर खड़ा होना ये कोई हरीश रावत से सीखे। कुमाऊं से गढ़वाल और पहाड़ों से मैदान का प्रयोग उन्हें जिंदा कर गया। 2009 में हुए हरिद्वार लोकसभा सीट से चुनाव जीते और केंद्र में मंत्री बने।अपने संपर्कों और चतुराई से वह हाई कमान के सदैव पसंद रहे और मौके दर मौके में पार्टी ने उन्हें ट्रबल शूटर के रूप में प्रयोग भी किया। विजय बहुगुणा और हरीश रावत का आपसी द्वंद और केदारनाथ आपदा का आधार हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाने की जमीन तैयार कर गया।
हरीश रावत के विरोधी उन पर अलग अलग तरीके के आरोपों से हमला करते रहे हैं लेकिन एक बड़ा सच यहा है कि हरीश रावत की उपस्थिति कभी कम नहीं हुई। उन पर जातिवाद को बढ़ावा दने के साथ साथ उत्तराखंड से बाहर के लोगों को पनपाने, पार्टी में पसंद ना पसंद के हिसाब से लोगों को आगे बढ़ाने रोकने का आरोप लगते रहे। उनकी आम पार्टी, पर्वतीय व्यंजनों की पार्टी, पहाड़ी रसोई से लुप्त हो चुके व्यंजनों पर उनकी चर्चा बार-बार सबका ध्यान खींच लेती है। स्वभाव से सदैव शालीन रहने वाले हरीश रावत अपने बड़े दिल के कारण भरोसेमंद साथियों से छले भी गए हैं और निशाने पर भी रहे हैं। मगर हरीश रावत का शांत व्यवहार उनके अनेक कष्टों को भी अंदर समेटे रहता है। अपने शागिर्दों के अति विश्वास के कारण उन्हें स्टिंग प्रकरण में बड़ी राजनीतिक हानि का सामना करना पड़ा। युवा दामाद का सेना में शहीद होना, युवा पुत्र की बस दुर्घटना में अकाल मृत्यु के बाद भी उनकी सामाजिक क्षेत्र में सक्रियता उनकी जीवटता को बयां करती है
हरीश रावत जी ने एक चिंतक, दूरदर्शी, ठेठ पहाड़ी, किसान और विश्लेषक के रूप में अपना नया कलेवर प्रस्तुत किया है उसकी मुक्त कंठ से प्रशंसा करता हूं। हरीश रावत ने अपनी पुस्तक “मेरा जीवन लक्ष्य उत्तराखंडियत” में समाज लोक संस्कृति, लोक परंपरा गीत संगीत, पर्वतीय जनजीवन खानपान, उद्यमिता, स्वरोजगार ,राज्य के लिए की गई उनकी नवीन पहल, कमोबेश हर पहलू पर अपनी कलम चलाई है। उनकी पुस्तक में जागर लगाने वालों का भी जिक्र है तो ढोल खरीदने के लिए आर्थिक सहायता की बात भी समाहित है। मुझे बस इतना कहना है, अगर उत्तराखंड को बेहतर समझना है, तो राजनीति के हर एक विद्यार्थी को पार्टी लाइन से ऊपर हटकर जरूर एक बार हरीश रावत के विचारों को पढ़ना चाहिए।
धन्यवाद Harish Rawat उत्तराखंड को एक शानदार पुस्तक में पिरोने के लिए।
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