रुद्रपुर, 19 अप्रैल।शहर के प्रतिष्ठित व्यापारी श्री भारत भूषण कालरा जी की धर्मपत्नी, सात दशक की जीवन यात्रा पूर्ण कर चुकीं, श्रीमती प्रेम कालरा जी का आज लम्बी बीमारी के पश्चात देहावसान हो गया। उनके निधन की खबर ने पूरे क्षेत्र को शोकसंतप्त कर दिया। समाज के हर वर्ग, जनप्रतिनिधियों, व्यापारिक जगत के लोगों और बड़ी संख्या में क्षेत्रवासियों ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।


शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता
लेकिन इस दुःखद घड़ी में भी कालरा परिवार ने जो किया, उसने समाज के सामने सेवा और समर्पण का एक विलक्षण उदाहरण प्रस्तुत कर दिया। प्रेम कालरा जी के निधन के पश्चात, उनके पति श्री भारत भूषण कालरा जी और परिजनों ने नेत्रदान की सहमति देकर यह सुनिश्चित किया कि प्रेम जी की आंखें मृत्यु के बाद भी किसी की दुनिया रोशन कर सकें।
उनके नेत्रदान से दो नेत्रहीन लोगों को दृष्टि मिलेगी। यह न केवल दिवंगत आत्मा के लिए पुण्य है, बल्कि मानवता के लिए प्रेरणा भी। भारत विकास परिषद रुद्रपुर शाखा की देखरेख में मुरादाबाद आई/नेत्र विभाग की टीम ने कानूनी औपचारिकताओं के बाद कॉर्निया सुरक्षित रूप से प्राप्त किया।
एक आंख जो स्वयं बंद हो गई, पर किसी और की दुनिया खोल गई।
परिषद के नेत्रदान प्रकल्प संयोजक श्री संजय ठुकराल ने बताया कि समाज में नेत्रदान को लेकर कई भ्रांतियां हैं – जैसे आंख निकाल ली जाती है या चेहरा बिगड़ जाता है – जो पूरी तरह गलत हैं। वास्तव में केवल कॉर्निया (आंख की पारदर्शी परत) को ही सावधानीपूर्वक निकाला जाता है, जिससे चेहरे की संरचना यथावत रहती है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भले ही किसी ने जीवनकाल में नेत्रदान की घोषणा न की हो, फिर भी परिवार की सहमति से मृत्यु के बाद भी यह महान कार्य किया जा सकता है।
भारत विकास परिषद के प्रांतीय वित्त सचिव श्री अमित गंभीर ने बताया कि भारत में कॉर्नियल अंधता के लगभग 12 लाख से अधिक मामले हैं, और हर वर्ष 20-25 हजार नए मरीज सामने आते हैं। ऐसे में नेत्रदान से दो लोगों को रोशनी देना, जीवन के सबसे पवित्र कार्यों में से एक है।
नेत्रदान के इस महादान को सम्पन्न करवाने में श्री राजीव सेतिया (भाई), मोहित कालरा (पुत्र), आशीष, दीपक और अमित गंभीर (भांजे), सुरेन्द्र अरोड़ा, राजकुमार जी और रोहित ढल्ल (दामाद) सहित परिवार के अन्य सदस्यों का विशेष योगदान रहा।
इस अवसर पर परिवार और भारत विकास परिषद ने क्षेत्रवासियों से अपील की कि वे भी मृत्यु के उपरांत नेत्रदान का संकल्प लें और इस प्रयास को जनआंदोलन बनाएं।
ब्रह्मलीन श्रीमती प्रेम कालरा जी की आंखें अब भी किसी के जीवन में नई सुबह बनकर चमकेंगी। यह केवल एक नेत्रदान नहीं, बल्कि प्रेम का प्रतीक बन गया है — प्रेम, जो मृत्यु के बाद भी जीवित है।
“मृत्यु अंत नहीं, शुरुआत है – किसी और की रोशनी की।”

