शून्य गुरुत्वाकर्षण से प्रधानमंत्री तकः शुभांशु शुक्ला की ऐतिहासिक यात्रा”

Spread the love

विशेष संपादकीय रिपोर्ट
हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स
अवतार सिंह बिष्ट, मुख्य संवाददाता
एक गौरवपूर्ण वापसी

भारत ने 21वीं सदी में विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में जिस तेज़ी से प्रगति की है, उसका सबसे शानदार उदाहरण हाल ही में रचा गया इतिहास है। जब भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) से अपनी ऐतिहासिक यात्रा पूरी करके स्वदेश लौटे, तो पूरा देश गर्व से झूम उठा।

दिल्ली के एयरपोर्ट पर उनका स्वागत किसी नायक के लौटने जैसा दृश्य था। केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह, दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता और इसरो प्रमुख वी. नारायणन समेत बड़ी संख्या में गणमान्य व्यक्ति और वैज्ञानिक समुदाय के प्रतिनिधि वहां मौजूद थे। शुभांशु की पत्नी कामना और पुत्र कियाश का आलिंगन इस ऐतिहासिक पल को और भावुक बना गया।

यह क्षण केवल व्यक्तिगत सफलता का नहीं था, बल्कि राष्ट्र की उस सामूहिक चेतना का प्रतीक था जिसने स्वतंत्र भारत को लगातार आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है।


प्रधानमंत्री से ऐतिहासिक भेंट,सोमवार शाम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से शुभांशु शुक्ला की मुलाकात भारतीय अंतरिक्ष अभियान के इतिहास में दर्ज हो चुकी है। पीएम मोदी ने उन्हें गले लगाकर स्वागत किया और कहा कि “भारत के युवाओं के लिए यह प्रेरणा का क्षण है।”

इस मुलाकात के दौरान शुभांशु ने प्रधानमंत्री को अंतरिक्ष में अपने अनुभव, वैज्ञानिक प्रयोगों और मानव शरीर पर शून्य गुरुत्वाकर्षण के प्रभावों के बारे में जानकारी दी। यह जानकारी न सिर्फ भारत के लिए, बल्कि वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय के लिए भी अमूल्य है।

प्रधानमंत्री ने उनकी उपलब्धियों की सराहना करते हुए कहा कि यह केवल विज्ञान की विजय नहीं है, बल्कि “नए भारत के आत्मविश्वास” की भी पहचान है।

अंतरिक्ष में भारत का बढ़ता कद?अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) में भारत की मौजूदगी कई मायनों में ऐतिहासिक है। अब तक अमेरिका, रूस, यूरोप और जापान जैसे देश ही यहां अपना प्रभुत्व रखते थे। शुभांशु शुक्ला की यात्रा ने भारत को इस वैश्विक वैज्ञानिक मंच पर बराबरी का दर्जा दिलाया है।

भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम पहले ही चंद्रयान और गगनयान जैसी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं से दुनिया का ध्यान आकर्षित कर चुका है। लेकिन अब आईएसएस मिशन से जुड़कर भारत ने यह संदेश दिया है कि वह केवल “अनुसरण करने वाला राष्ट्र” नहीं, बल्कि “मार्गदर्शक राष्ट्र” भी बन सकता है।
विज्ञान, साहस और बलिदान?अंतरिक्ष यात्रा सिर्फ तकनीकी चुनौती नहीं होती, बल्कि यह साहस और बलिदान की भी मांग करती है। अंतरिक्ष यात्री महीनों की कठोर ट्रेनिंग, अलगाव और जोखिम भरे हालात का सामना करते हैं। शुभांशु शुक्ला ने न केवल भारतीय वायुसेना की परंपरा को गौरवान्वित किया, बल्कि यह दिखाया कि भारतीय वैज्ञानिक और सैनिक वैश्विक स्तर पर किसी से कम नहीं हैं।

उनकी पत्नी और परिवार ने भी इस सफर में बराबर का योगदान दिया। क्योंकि हर अंतरिक्ष यात्री की सफलता के पीछे परिवार का धैर्य, त्याग और समर्थन छिपा होता है।
युवाओं के लिए प्रेरणा?आज भारत का युवा वर्ग स्टार्टअप्स, विज्ञान और शोध में अपनी पहचान बना रहा है। शुभांशु शुक्ला की यात्रा उन्हें यह विश्वास दिलाती है कि सपने कितने भी बड़े क्यों न हों, उन्हें पूरा किया जा सकता है।

स्कूलों और विश्वविद्यालयों में यह कहानी सुनाई जानी चाहिए ताकि बच्चे विज्ञान और तकनीक की ओर आकर्षित हों। भारत के “अमृतकाल” में यही वह ऊर्जा है जो राष्ट्र को आगे ले जाएगी।
एक नए युग की शुरुआत?भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान की नई दहलीज पर कदम रख दिया है। यह केवल वैज्ञानिक प्रगति का संकेत नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक दृष्टि से भी बेहद अहम है। अंतरिक्ष अब केवल शोध का क्षेत्र नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन का भी हिस्सा बन चुका है।

शुभांशु शुक्ला की सफलता हमें यह बताती है कि भारत इस प्रतिस्पर्धा में न केवल टिकेगा, बल्कि नेतृत्व भी करेगा

शुभांशु शुक्ला की वापसी एक व्यक्ति की विजय नहीं, बल्कि राष्ट्र की सामूहिक जीत है। यह उस सपने का विस्तार है जो डॉ. विक्रम साराभाई ने देखा था और जिसे इसरो ने अपने परिश्रम और समर्पण से साकार किया।आज भारत यह संदेश दुनिया को दे रहा है—
“हमारे लिए आकाश सीमा नहीं, बल्कि शुरुआत है।”

✍️ अवतार सिंह बिष्ट
मुख्य संवाददाता
हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स


Spread the love