
इसे लेकर यह माना जाता है कि इस परिक्रमा को करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।

इसके साथ ही दीवाली पर्व के एक दिन बाद गोवर्धन पूजा भी की जाती है। आज आप हम आपको गोवर्धन पर्वत से जुड़ी एक पौराणिक कथा के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके अनुसार, यह पर्वत रोजाना तिल बराबर घटता जा रहा है। चलिए पढ़ते हैं वह पौराणिक कथा।
त्रिलोचन पनेरु कृष्णात्रेय रुद्रपुर उत्तराखंड।
ऋषि पुलस्त्य ने जताई ये इच्छा
कथा के अनुसार, एक बार ऋषि पुलस्त्य तीर्थ यात्रा कर रहे थे। तभी उनकी नजर गोवर्धन पर्वत पर पड़ी और वह उसकी सुंदरता पर मोहित हो गए। उनके मन में यह इच्छा जागी कि क्यों न वह इस पर्वत को काशी ले जाया जाए और वहां स्थापित किया जाए। ताकि वह काशी में रहकर इस दिव्य पर्वत की पूजा-अर्चना कर सकें। तब उन्होंने द्रोणाचल पर्वत से निवेदन किया कि वह अपने पुत्र गोवर्धन को उनके साथ ले जाने की अनुमति दें।
✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी
गोवर्धन पर्वत ने रखी ये शर्त
द्रोणाचल पर्वत ने ऋषि पुलस्त्य को अनुमति को दे दी, लेकिन वह पुत्र वियोग से उदास भी हो गए। तब गोवर्धन ने ऋषि के साथ जाने के लिए यह शर्त रखी कि वह जहां भी गोवर्धन पर्वत को रख देंगे, वह वहीं स्थापित हो जाएगा। पुलस्त्य ऋषि ने गोवर्धन पर्वत की यह शर्त मान ली। तब गोवर्धन पर्वत ने ऋषि से कहा कि मैं दो योजन ऊंचा और पांच योजन चौड़ा हूं, आप मुझे कैसे ले जाएंगे। तब ऋषि ने अपने तपोबल से हथेली पर पर्वत को उठा लिया और काशी की ओर चल दिए।
ऋषि भूले अपना वचन
जब रास्ते में ब्रज आया तो गोवर्धन पर्वत के मन में यह इच्छा जागी कि वह यहीं रूक जाएं, ताकि वह भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का आनंद ले सकें। तब गोवर्धन पर्वत ने अपना भार बढ़ाना शुरू कर दिया। थोड़ी देर बाद जब ऋषि को गोवर्धन पर्वत भारी लगने लगा, तो उन्हें विश्राम करने की आवश्यकता महसूस हुई। ऋषि, गोवर्धन को दिए गए वचन को भूल गए और विश्राम करने के लिए उन्होंने पर्वत को नीचे रख दिया। जब उन्होंने दुबारा पर्वत को उठाने की कोशिश की, तो गोवर्धन से उन्हें वचन याद दिलाया।
क्रोध में आकर दिया ये श्राप
ऋषि पुलस्त्य गोवर्धन को अपने साथ ले जाने की हठ करने लगे, लेकिन गोवर्धन अपनी जगह से नहीं हिला। गोवर्धन की इस जिद के चलते ऋषि को क्रोध आ गया और उन्होंने पर्वत को श्राप दे दिया। ऋषि ने गोवर्धन पर्वत को यह श्राप दिया कि प्रतिदिन तिल-तिल कर तुम्हारा क्षरण होगा और एक दिन ऐसा आएगा जब तुम पूरी तरह से धरती में समाहित हो जाओगे।


