
कई बार मन में यह सवाल आता है कि अगर हनुमान अमर हैं, तो कलियुग में उनका निवास स्थान कहां है। आइए, जानते हैं कलियुग में हनुमान जी कहां रहते हैं।


गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं हनुमान जी
श्रीमद्भागवत कथा के अनुसार हनुमान जी त्रेता युग और द्वापर युग दोनों में ही विद्यमान थे। कलियुग की शुरुआत में हनुमान जी ने गंधमादन पर्वत पर रहने का निर्णय लिया। यह पर्वत हिमालय में कैलाश पर्वत के उत्तर में है। प्राचीन काल में गंधमादन पर्वत सुमेरु पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित गजदंत पर्वतों में से एक था। महर्षि कश्यप ने यहां तपस्या की थी। यह पर्वत कुबेर के क्षेत्र का हिस्सा था। पहले इस स्थान पर फूलों और पौधों की मनमोहक खुशबू हुआ करती थी। इसीलिए इसे गंधमादन पर्वत कहा जाता था। वर्तमान में यह क्षेत्र तिब्बत में है।
आज भी हनुमान जी अलग-अलग रूप में गंधमादन पर्वत पर आते हैं।
रामायण काल से जुड़े गंधमादन पर्वत का विशेष महत्व है। हनुमान जी गंधमादन पर्वत पर अपने मित्रों के साथ बैठकर युद्ध की योजना बनाते थे। आज भी इस पर्वत पर हनुमान जी का मंदिर है। मंदिर में राम जी की मूर्ति भी है। लोगों का मानना है कि हनुमान जी रूप बदलकर अपने भक्तों को दर्शन देने आते हैं। यहां भगवान राम के पैरों के निशान भी हैं।
महाभारत की कथा में भी गंधमादन पर्वत का उल्लेख मिलता है।
महाभारत की कथा के अनुसार पांडव वनवास के दौरान हिमवंत पार करके गंधमादन पर्वत पर पहुंचे थे। वहां भीम सहस्र दल कमल लेने गंधमादन पर्वत पर गए थे। वहां उन्होंने हनुमान जी को विश्राम करते देखा। हनुमान जी ने एक बूढ़े बंदर का वेश धारण करके भीम की परीक्षा ली थी। भीम ने हनुमान से उनकी पूंछ हटाने को कहा, लेकिन वे ऐसा नहीं कर सके। इस तरह जब हनुमान जी ने भीम को अपनी असली पहचान बताई तो उनका अपनी शक्ति का घमंड भी टूट गया।
गंधमादन पर्वत तक पहुंचना हर इंसान के लिए संभव नहीं
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कैलाश पर्वत के उत्तर में गंधमादन पर्वत पर महर्षि कश्यप ने तपस्या की थी। यहां गंधर्व, किन्नर, अप्सराएं और सिद्ध ऋषि रहते हैं। किसी भी वाहन या इंसान के लिए इस पर्वत की चोटी तक पहुंचना बहुत मुश्किल है। इस पर्वत को दिव्य माना जाता है। वर्तमान में गंधमादन पर्वत तिब्बत क्षेत्र में स्थित है। बदलते समय के साथ इसका स्वरूप भी काफी बदल गया है, लेकिन हनुमान जी के भक्तों में इस पर्वत को लेकर गहरी आस्था है कि कलियुग में भी हनुमान जी अपना रूप बदलकर अपने भक्तों को दर्शन देते हैं।

