आज 30 मई को हम सभी हिंदी पत्रकारिता दिवस मना रहे हैं। यह दिन न केवल हमें अपने अतीत की गौरवगाथा की याद दिलाता है, बल्कि पत्रकारिता के मौजूदा संकटों और चुनौतियों पर आत्ममंथन का अवसर भी प्रदान करता है। 1826 में ‘उदन्त मार्तण्ड’ के साथ हिंदी पत्रकारिता की जो यात्रा आरंभ हुई थी, वह आज तकनीक, लोकतंत्र और बाजारवाद के त्रिकोण में उलझी हुई है। इस अवसर पर हम सभी पत्रकारों को हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स और श्रमजीवी पत्रकार यूनियन की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करते हैं — विशेष रूप से रुद्रपुर, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, देश-विदेश के हर कोने में संघर्षरत पत्रकार बंधुओं को।
संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह


पत्रकारिता का हनन: कलम पर मंडराते खतरे
आज की पत्रकारिता उस मोड़ पर खड़ी है जहां उसकी आत्मा और उद्देश्य को बाज़ार, राजनीति और सोशल मीडिया की धुंध में ढंक दिया गया है। कभी जो पत्रकार जनहित की लड़ाई का ध्वजवाहक होता था, आज वह प्रायोजित बहसों और ब्रांडेड खबरों का हिस्सा बनता जा रहा है।
- सत्ताधारी दलों की प्रशंसा में लिप्त मुख्यधारा मीडिया ने ‘वॉचडॉग’ की अपनी भूमिका को लगभग भुला दिया है।
- पत्रकारों पर फर्जी मुकदमे, धमकी, बेरोजगारी और सामाजिक बहिष्कार जैसे हमले आम हो चुके हैं।
- स्थानीय स्तर पर, खासकर उत्तराखंड जैसे राज्यों में ज़मीनी पत्रकारों को कोई सुरक्षा या सम्मान नहीं मिलता।
यह हनन सिर्फ सरकारों द्वारा नहीं बल्कि मीडिया घरानों की व्यवसायिक मानसिकता और कुछ ‘फोटोस्टेट पत्रकारों’ की गैर-जिम्मेदाराना गतिविधियों से भी हो रहा है।
यूट्यूब बनाम पत्रकारिता: भ्रम और भेद
डिजिटल युग में पत्रकारिता और यूट्यूब के बीच की रेखा धुंधली हो गई है। लेकिन दोनों में मूलभूत अंतर हैं:
- यूट्यूबर सामग्री निर्माता होता है, पत्रकार खोजी एवं जिम्मेदार संवाददाता।
- यूट्यूबर को ‘ट्रेंड’ चाहिए, पत्रकार को ‘सत्य’।
- यूट्यूबर का उद्देश्य ‘वायरल’ होना है, पत्रकार का उद्देश्य ‘जन-जागरूकता’।
हालांकि यूट्यूब जैसे मंचों ने स्वतंत्र पत्रकारों को नई ऊर्जा दी है, परंतु इसका दुरुपयोग भी खूब हो रहा है। फर्जी समाचार, भ्रामक वीडियो और व्यक्तिगत एजेंडा पत्रकारिता के मूल्यों को खोखला कर रहे हैं।
पत्रकार की गरिमा की रक्षा कैसे हो?
पत्रकार केवल खबर नहीं लाता, वह लोकतंत्र की सांसें लेता है। उसकी गरिमा बनाए रखना केवल संस्थानों का नहीं, पूरे समाज का उत्तरदायित्व है।
कुछ प्रमुख सुझाव:
- पत्रकार सुरक्षा कानून लागू हो – विशेषकर जमीनी रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को कानूनी सुरक्षा मिले।
- प्रेस काउंसिल की शक्तियों में वृद्धि हो – ताकि वह फर्जी पत्रकारिता और कॉर्पोरेट दबाव के विरुद्ध कार्य कर सके।
- स्थानीय पत्रकारों को सरकारी मान्यता और पेंशन जैसी सुविधा मिले।
- शिक्षण संस्थानों में पत्रकारिता के मूल्यों की शिक्षा दी जाए, ताकि नई पीढ़ी कॉन्टेंट क्रिएटर नहीं, जिम्मेदार पत्रकार बने।
- पत्रकार संगठनों को राजनीतिक दलों से पूर्णतः स्वतंत्र रहना चाहिए।
रुद्रपुर और उत्तराखंड के पत्रकारों को समर्पित एक सकारात्मक लेख
उत्तराखंड, विशेषकर रुद्रपुर जैसे विकसित होते शहरों में पत्रकारिता का स्वरूप न केवल सशक्त हुआ है, बल्कि समाज के प्रत्येक वर्ग की आवाज़ को बुलंद करने में इन पत्रकारों ने एक अहम भूमिका निभाई है। रुद्रपुर के पत्रकार कठिन परिस्थितियों में भी निष्पक्षता, निष्ठा और निर्भीकता के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं।
चाहे बात स्थानीय प्रशासन की कमियों को उजागर करने की हो या फिर समाज में हो रहे सकारात्मक बदलावों को जन-जन तक पहुँचाने की—रुद्रपुर के पत्रकार हमेशा सबसे आगे खड़े नज़र आते हैं। छोटे-बड़े समाचार पत्रों, वेब पोर्टल्स और टीवी चैनलों के माध्यम से ये पत्रकार जनहित के मुद्दों को मजबूती से उठाते हैं, जिससे लोकतंत्र की जड़ों को मज़बूती मिलती है।
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों से लेकर तराई की धरती तक, पत्रकारों ने विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, पलायन, भ्रष्टाचार, युवाओं की समस्याएं और सांस्कृतिक विरासत जैसे मुद्दों को प्रमुखता दी है। अनेक बार जान का जोखिम उठाकर सच्चाई को सामने लाने वाले इन पत्रकारों ने पत्रकारिता को सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि जनसेवा का माध्यम बनाया है।आज जब दुनिया ‘फेक न्यूज़’ और ‘टीआरपी पत्रकारिता’ की बहसों में उलझी है, तब उत्तराखंड के पत्रकार अपनी जड़ों से जुड़े रहकर एक भरोसेमंद पत्रकारिता का उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। यह सच्चे अर्थों में गर्व की बात है।हम रुद्रपुर और उत्तराखंड के सभी पत्रकारों को उनके अद्भुत कार्य, समर्पण और समाज के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण के लिए दिल से सलाम करते हैं। आप सभी राज्य की आत्मा की आवाज़ हैं—आपका योगदान अमूल्य है।

