
एक सुनहरा सपना या मौत का फंदा?


रुद्रपुर,उत्तराखंड का औद्योगिक और शहरी चेहरा बन चुका रुद्रपुर आज अपने हाईराइज अपार्टमेंट्स और मॉल्स के कारण एक मेट्रो सिटी की छवि को ग्रहण कर चुका है। लेकिन इसी चमक-धमक के पीछे एक ऐसी सच्चाई छिपी है, जो दिल दहलाने वाली है। रुद्रपुर की मेट्रोपोलिस सिटी, रेडिसन ब्लू होटल के सामने बसी एक पॉश हाउसिंग सोसाइटी, आज सुरक्षा मानकों की अनदेखी और प्रशासनिक लापरवाही के कारण जनहित के गंभीर संकट में है। यहाँ रहने वाले 1700 से अधिक परिवार सिर्फ किराया या किश्त नहीं भरते, बल्कि हर दिन अपनी जान जोखिम में डालकर जी रहे हैं।
मेट्रोपोलिस सिटी को रुद्रपुर का नया प्रतीक माना जाता है, जहाँ आधुनिकता के नाम पर कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए गए हैं। इस कॉलोनी में रहने वालों में सिडकुल क्षेत्र की नामी हस्तियाँ, व्यापारी, रिटायर्ड अधिकारी, और वरिष्ठ नागरिक शामिल हैं। लेकिन इस पूरे समूह को जोड़ने वाला दुखद पहलू है=असुरक्षा
सुरक्षा मानकों की भयावह अनदेखी
कॉलोनी में फायर सेफ्टी के जो उपकरण लगाए गए हैं, वे ना सिर्फ पुराने हैं, बल्कि उनकी गुणवत्ता भी दोयम दर्जे की है। फायर सिलेंडरों में प्रयोग होने वाला पाउडर मानक स्तर का नहीं है, जो किसी भी आपातकालीन स्थिति में पूरी तरह से असफल हो सकता है। हाइड्रेंट पाइप लाइन में कहीं पानी नहीं, कहीं प्रेशर नहीं और कहीं कनेक्शन ही नहीं है।
लिफ्टों की दुर्दशा,मेट्रोपोलिस में रहने वाले लोग लिफ्ट को लेकर वर्षों से शिकायत करते आ रहे हैं। आए दिन लिफ्ट अटक जाती है, फंस जाती है या फिर उसमें कोई तकनीकी खराबी आती रहती है। कई बार बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग इसमें घंटों तक फंसे रहते हैं। लिफ्ट के मेंटेनेंस के नाम पर भारी वसूली होती है, लेकिन कोई ठोस सुधार नहीं दिखता।
. पहले की आगजनी की घटनाएँ और नुकसान,कुछ समय पूर्व एक फ्लैट में आग लगने की घटना सामने आई थी। वहाँ जो फायर सिलेंडर उपयोग में लाया गया, वह आग बुझाने में पूरी तरह नाकाम रहा क्योंकि उसमें जो पाउडर भरा गया था, वह निम्न स्तर का था। लाखों का सामान जल गया, लेकिन प्रशासन की ओर से कोई ठोस मुआवज़ा या सहायता नहीं दी गई।
अग्निशमन विभाग की संदिग्ध भूमिका,सूत्रों के अनुसार, मेट्रोपोलिस को अग्निशमन विभाग द्वारा हर बार NOC (No Objection Certificate) कैसे मिल जाती है, यह एक बड़ा सवाल है। बिना सही जांच, बिना ग्राउंड ऑडिट के कैसे अग्निशमन विभाग आँखें मूँद लेता है? क्या यह विभागीय मिलीभगत का परिणाम नहीं है?
सोसाइटी प्रबंधन की जवाबदेही
मेट्रोपोलिस वासी हर महीने मेंटेनेंस शुल्क देते हैं, जिसमें बिजली, सड़क, लाइटिंग, सफाई और सुरक्षा जैसी सुविधाएं शामिल होती हैं। लेकिन जब मूलभूत अधिकार—”सुरक्षित जीवन” ही खतरे में हो, तब बाकी सुविधाएं व्यर्थ हैं। प्रबंधन सिर्फ सोशल मीडिया पर प्रचार करता है, जमीनी हकीकत कुछ और है। प्रशासन और नगर निगम की भूमिका,नगर निगम, जिला प्रशासन और रेरा जैसे नियामक निकायों की जिम्मेदारी बनती है कि वे ऐसे हाईराइज अपार्टमेंट्स की सुरक्षा जांच नियमित रूप से करें। लेकिन यहाँ वर्षों से किसी भी प्रकार की सख्त कार्रवाई नहीं हुई है।
मेट्रोपोलिस निवासियों की आवाजें और संघर्ष
कई बार निवासियों ने ज्ञापन सौंपा, प्रबंधन को चेताया, शिकायतें दर्ज कीं, लेकिन हर बार बात आई-गई हो गई। कुछ जागरूक नागरिकों ने अपने स्तर पर हाइड्रेंट पाइप टेस्ट करवाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें तकनीकी बहानों में उलझा दिया गया।
कानूनी और नैतिक सवाल
अगर किसी दिन शॉर्ट सर्किट या किसी अन्य कारण से कोई बड़ा अग्निकांड होता है, और जनहानि होती है, तो क्या यह गैर-इरादतन हत्या नहीं कहलाएगा? क्या यह लापरवाही नहीं, बल्कि हत्या की साजिश मानी जानी चाहिए? भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर नागरिक को जीवन और सुरक्षा का अधिकार प्राप्त है। यह अधिकार मेट्रोपोलिस में रहने वाले नागरिकों से छीना जा रहा है।
अब समय आ गया है कि जिला प्रशासन, अग्निशमन विभाग, नगर निगम और अन्य सम्बंधित संस्थाएं मेट्रोपोलिस सिटी की सुरक्षा की गंभीर समीक्षा करें। सभी हाइड्रेंट सिस्टम, लिफ्ट्स और फायर सिलेंडर्स की स्वतंत्र ऑडिट कराई जाए। साथ ही, सोसाइटी प्रबंधन की जवाबदेही तय की जाए और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए।
साथ ही, हम हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स के माध्यम से निवासियों से अपील करते हैं कि वे संगठित हों, RTI और जनहित याचिकाओं के ज़रिए अपनी आवाज़ उठाएँ। हमें याद रखना होगा कि जागरूक नागरिक ही सुरक्षित समाज का निर्माण कर सकते हैं।
मेट्रोपोलिस में कोई अग्निकांड या हादसा भविष्य में हो, उससे पहले यह चेतावनी है—कि अब भी समय है, वरना कीमत चुकानी पड़ेगी इंसानी जानों से।
(रिपोर्ट: अवतार सिंह बिष्ट, विशेष संवाददाता, हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर)( उत्तराखंड)

