
यहां तक कि तालाब और झीलें भी बर्फ में बदल जाती हैं। ऐसे में हम आपको एक ऐसी झील के बारे में बताने जा रहे हैं जो सर्दियों में पूरी तरह बर्फ से ढक जाती है और जब गर्मियां आती हैं तो बर्फ धीरे-धीरे पिघलने लगती है और फिर झील का अस्तित्व नजर आने लगता है। यह झील उत्तराखंड में स्थित है और इसका नाम रूपकुंड झील है।


वर्ष 1942 में रूपकुंड झील में सैकड़ों नर कंकाल पाए गए थे। कई सालों तक इसका रहस्य कोई नहीं सुलझा सका, लेकिन वर्ष 2012 में वैज्ञानिकों ने इसका रहस्य खोज निकाला। आपको बता दें कि रूपकुंड झील उत्तराखंड के चमोली जिले में है। यह हिमालय में स्थित एक छोटी सी घाटी में मौजूद है। यह हिमालय में 16,499 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह चारों ओर से बर्फ और ग्लेशियरों से घिरा हुआ है। यह झील बहुत गहरी है. यह झील पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र है। रोमांचक यात्राओं के शौकीन लोग इस झील को देखने पहुंचते हैं।
प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता]
पर्यटक ट्रैकिंग करते हुए यहां पहुंचते हैं और इस स्थान पर मौजूद नरकंकालों को देखकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं। रूपकुंड झील में मौजूद नरकंकालों की खोज पहली बार 1942 में हुई थी। इसकी खोज नंदा देवी गेम रिजर्व के रेंजर एच.के.माधवाल ने की थी। जब नेशनल जियोग्राफिक को इस जगह के बारे में पता चला तो उन्होंने भी यहां अपनी एक टीम भेजी। उनकी टीम ने इस स्थान पर 30 और कंकाल खोजे।
तब से यहां नर कंकाल मिलना बंद नहीं हुआ और आज भी यहां नर कंकाल मिलते हैं। इस झील में हर लिंग और उम्र के कंकाल पाए गए। इसके अलावा यहां आभूषण, चमड़े की चप्पलें, चूड़ियां, नाखून, बाल, मांस आदि के कुछ अवशेष भी मिले हैं। जिन्हें संरक्षित करके रखा गया। इन सबमें एक खास बात यह है कि कई कंकालों के सिर पर फ्रैक्चर भी पाए गए, जिसके पीछे अलग-अलग थ्योरीज हैं।
इस झील के साथ कई कहानियाँ और किंवदंतियाँ जुड़ी हुई हैं। स्वीकृत सिद्धांतों में से एक यह था कि यहां मौजूद ये खोपड़ियां कश्मीर के जनरल जोरावर सिंह और उनके आदमियों की हैं। ऐसा माना जाता है कि यह 1841 की बात है जब वह तिब्बत युद्ध के बाद लौट रहे थे। ऐसा माना जाता है कि बीच में हिमालय क्षेत्र में वह रास्ता भटक गए थे।
मौसम ख़राब होने पर स्थिति और भी ख़राब हो गई। जिसके बाद वे लोग वहीं फंस गए और भारी ओलावृष्टि के कारण उनकी मौत हो गई। उनके पास दूर-दूर तक छिपने की कोई जगह नहीं थी। वे लोग हिमालय में आए भयंकर तूफान से अपनी जान नहीं बचा सके। एक कहानी यह भी थी कि ये नरकंकाल जापानी सैनिकों के थे, जो भारत में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे थे।
इसके बाद इस पर शोध किया गया। जिससे पता चला कि ये हड्डियां जापानी लोगों की नहीं बल्कि सैकड़ों साल पुरानी हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार, कन्नौज के राजा जसधवल अपनी गर्भवती पत्नी रानी बलमपा के साथ यहां तीर्थयात्रा पर आए थे। दरअसल, वह देवी के दर्शन के लिए हिमालय पर स्थित नंदा देवी मंदिर जा रहे थे।
हां, हर 12 साल में नंदा देवी के दर्शन का बड़ा महत्व था। राजा बड़ी धूमधाम से यात्रा पर निकले थे, लोगों ने बताया कि कई बार मना करने के बाद भी राजा ने दिखावा नहीं छोड़ा और वह पूरे दल-बल और ढोल-नगाड़ों के साथ इस यात्रा पर निकल पड़े। ऐसा माना जाता था कि इससे देवी नाराज हो जाएंगी। उस दौरान बहुत भयानक और बड़ा ओलावृष्टि और बर्फीला तूफान आया, जिसके कारण राजा-रानी सहित पूरा समूह रूपकुंड झील में डूब गया। हालाँकि, इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
इस झील के कंकालों के साथ कई अन्य ऐसी कहानियाँ भी जुड़ी हुई हैं। अंततः वैज्ञानिकों को इसके पीछे का रहस्य पता चल गया। वैज्ञानिकों ने बताया कि रूपकुंड झील में करीब 200 नरकंकाल मिले हैं। ये सभी नरकंकाल 9वीं शताब्दी के हैं, जो भारतीय आदिवासियों के हैं। जिनकी भारी ओलावृष्टि के कारण मृत्यु हो गई। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने दिखा दिया है
