
‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ यानी टीआरएफ ने पहलगाम में हुए इस आतंकी हमले की जिम्मेदारी ली है. पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों के इशारे पर काम कर रहा टीआरएफ पिछले कुछ साल से जम्मू-कश्मीर में लगातार हमले कर रहा है.


जानकारी के मुताबिक, ये आतंकी हमला मंगलवार दोपहर करीब ढ़ाई बजे के आसपास हुआ है. पहलगाम के बैसरन इलाके के में पर्यटक हॉर्स राइडिंग कर रहे थे. तभी वहां आतंकी पहुंचे और अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दिया. फिलहाल आतंकियों को पकड़ने के लिए सुरक्षा बलों ने सर्च ऑपरेशन शुरू कर दिया है. सीआरपीएफ की अतिरिक्त क्विक रिएक्शन टीम घटनास्थल पर पहुंच चुकी है. हालांकि, परेशानी ये है कि जम्मू और कश्मीर में फ्लैश फ्लड और लैंड स्लाइडिंग के कारण सड़कें टूटी हुई हैं. ऐसे में आवाजाही मुश्किल हो रही है.
लश्कर-ए-तैयबा का एक मुखौटा है ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’
इस हमले की जिम्मेदारी लेने वाला आतंकी संगठन ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (टीआरएफ) लश्कर-ए-तैयबा का एक मुखौटा है. पाकिस्तान में बैठा शेख सज्जाद गुल इसका प्रमुख है. उसी के इशारे पर टीआरएफ का लोकल माड्यूल जम्मू-कश्मीर में लगातार हमलों को अंजाम दे रहा है. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटाए जाने के बाद टीआरएफ एक ऑनलाइन यूनिट के रूप में शुरू हुआ था. माना जाता है कि टीआरएफ को बनाने का मकसद लश्कर जैसे आतंकी संगठनों को कवर देना है. बैकडोर से पाक सेना और आईएसआई इसकी मदद करती है.
टीआरएफ ज़्यादातर लश्कर के फंडिंग चैनलों का इस्तेमाल करता है. गृह मंत्रालय ने मार्च में राज्यसभा को बताया था, “द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का एक मुखौटा संगठन है. ये साल 2019 में अस्तित्व में आया था.” इस संगठन को बनाने की साजिश सरहद पार से रची गई थी. टीआरएफ को बनाने में लश्कर-ए-तैयबा और हिज्बुल मुजाहिद्दीन के साथ-साथ पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का भी हाथ रहा है. इसका गठन इसलिए किया गया ताकि आतंकी हमलों में सीधे पाक का नाम न आए.
पाकिस्तानी सेना और आईएसआई की ढाल है टीआरएफ
14 फरवरी 2019 को पुलवामा में बड़ा आतंकी हमला हुआ था. इसके बाद दुनियाभर में पाकिस्तान बेनकाब हो गया. इस हमले को जैश-ए-मोहम्मद ने अंजाम दिया था. जब दुनियाभर से पाकिस्तान पर दबाव बढ़ा तो वो समझ गया कि आतंकी संगठनों के खिलाफ कुछ न कुछ करके दिखाना होगा. इसके बाद उसने ऐसा संगठन बनाने की साजिश रची, जिससे भारत में आतंक भी फैल जाए और उसका नाम भी न आए. तब जाकर आईएसआई और पाकिस्तानी सेना ने लश्कर-ए-तैयबा के साथ मिलकर द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) बनाया था.
साल 2022 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में, जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कहा कि कश्मीर में सुरक्षा बलों द्वारा 90 से ज़्यादा ऑपरेशनों में 42 विदेशी नागरिकों सहित 172 आतंकवादी मारे गए. घाटी में मारे गए आतंकवादियों में से ज़्यादातर (108) द रेजिस्टेंस फ्रंट या लश्कर-ए-तैयबा के थे. इसके साथ ही आतंकवादी समूहों में शामिल होने वाले 100 लोगों में से 74 टीआरएफ द्वारा भर्ती किए गए थे, जो पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी समूह से बढ़ते ख़तरे को दर्शाता है. टीआरएफ का नाम पहली बार साल 2020 में कुलगाम में हुए हत्याकांड के बाद सामने आया.
टारगेट किलिंग पर फोकस करते हैं टीआरएफ के आतंकी
उस समय बीजेपी कार्यकर्ता फिदा हुसैन, उमर राशिद बेग और उमर हाजम की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी. टीआरएफ कश्मीर में फिर से वही दौर लाना चाहता है, जो कभी 90 के दशक में था. टीआरएफ के आतंकी टारगेट किलिंग पर फोकस करते हैं. वो ज्यादातर गैर-कश्मीरियों को निशाना बनाते हैं ताकि बाहरी राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर आने से बचें. 26 फरवरी, 2023 को संजय शर्मा अपनी पत्नी के साथ कश्मीर के पुलवामा में स्थानीय बाजार जा रहे थे, तभी आतंकवादियों ने उन पर गोलियां चला दीं. इस हमले में उनकी मौत हो गई.
इस हत्याकांड के पीछे द रेजिस्टेंस फ्रंट का ही हाथ था. उसने संजय शर्मा की हत्या का एकमात्र कारण यह चुना कि वह एक कश्मीरी पंडित थे. साल 2019 से जब से यह आतंकी संगठन अस्तित्व में आया है तब से वह दर्जनों आतंकी हमलों में शामिल रहा है. खासकर घाटी में अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाकर हमला कर रहा है. इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से फोन पर बातचीत की है. उन्होंने उचित कदम उठाने का निर्देश दिया है. गृहमंत्री ने आपात बैठक बुलाई है, जिसमें कई बड़े अधिकारी शामिल हैं.
