संपादकीय:आपदा की घड़ी में प्रधानमंत्री का संवेदनशील नेतृत्व और उत्तराखंड की सीख?आपदा से जूझते उत्तराखंड को मिला राष्ट्रीय नेतृत्व का सहारा”

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देवभूमि उत्तराखंड बार-बार प्राकृतिक आपदाओं की मार झेलती रही है। कभी बादल फटने से भयंकर बाढ़ आती है, तो कभी पहाड़ दरकते हैं और गाँव-गाँव को निगल जाते हैं। इस बार भी असामान्य बारिश और बाढ़ ने प्रदेश को गहरी चोट दी। हजारों लोग प्रभावित हुए, कई परिवारों ने अपनों को खोया, तो सैकड़ों लोग बेघर हो गए। ऐसे कठिन समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देहरादून आना, राहत-बचाव कार्यों की समीक्षा करना और पीड़ितों को हर संभव मदद का भरोसा देना न केवल एक औपचारिकता थी, बल्कि संवेदनशील नेतृत्व का प्रतीक भी था।

।✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

प्रधानमंत्री का संवाद: एक उम्मीद की किरण

देहरादून में प्रधानमंत्री ने NDRF, SDRF, उत्तराखंड पुलिस और आपदा मित्र स्वयंसेवकों से सीधा संवाद किया। उन्होंने न सिर्फ उनके कार्यों की सराहना की, बल्कि उनके अनुभवों को भी ध्यान से सुना। यह संवाद इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि आपदा प्रबंधन केवल आदेश देने या योजनाएँ बनाने तक सीमित नहीं है, बल्कि जमीनी स्तर पर कार्य करने वाले लोग ही असली योद्धा होते हैं। प्रधानमंत्री का यह संदेश साफ था कि केंद्र सरकार न केवल राज्य सरकार के साथ है, बल्कि हर वह जवान, हर वह स्वयंसेवक और हर वह नागरिक जो राहत-बचाव में लगा है, उनके पीछे देश की पूरी ताकत खड़ी है।

धामी सरकार और केंद्र का तालमेल

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्पष्ट किया कि आपदा की इस विकट घड़ी में प्रधानमंत्री मोदी और केंद्र सरकार ने तुरंत सहयोग दिया। हेलीकॉप्टर, आधुनिक मशीनें, दवाइयाँ, राहत सामग्री—सब कुछ समय पर उपलब्ध कराया गया। यह तालमेल दर्शाता है कि संकट की घड़ी में राजनीति नहीं, बल्कि मानवता और जिम्मेदारी सबसे ऊपर होती है। उत्तराखंड जैसे सीमांत और भौगोलिक दृष्टि से संवेदनशील राज्य के लिए यह सहयोग जीवन रक्षक साबित हुआ।

राहत दलों की सराहना

NDRF और SDRF के जवान, उत्तराखंड पुलिस और “आपदा मित्र” स्वयंसेवक—इन सबकी भूमिका को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। जान हथेली पर रखकर लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाना, पहाड़ों से फंसे लोगों को निकालना, मलबे में दबे जीवन को बचाना—ये सब कार्य केवल कर्तव्य नहीं, बल्कि सेवा भाव की मिसाल हैं। प्रधानमंत्री द्वारा इन्हें धन्यवाद और सम्मान दिया जाना उनके हौसले को और मज़बूत करेगा।

उत्तराखंड: आपदाओं से जूझता राज्य

उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति ही इसे संवेदनशील बनाती है। ऊँचे-ऊँचे पर्वत, संकरी घाटियाँ, अनियंत्रित शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन—ये सब कारक आपदा को और घातक बना देते हैं। केदारनाथ आपदा (2013), चमोली हिमस्खलन (2021), और हाल की बाढ़ें इस बात की याद दिलाती हैं कि हमें केवल तत्काल राहत पर नहीं, बल्कि दीर्घकालिक आपदा प्रबंधन की रणनीति पर ध्यान देना होगा।

प्रधानमंत्री का संवेदनशील पक्ष

प्रधानमंत्री मोदी ने प्रभावित परिवारों के लिए तात्कालिक सहायता राशि की घोषणा की। मृतकों के परिजनों को ₹2 लाख और घायलों को ₹50 हजार की अनुग्रह राशि तुरंत देने का निर्णय लिया गया। यह मदद भले ही किसी के दुख को पूरी तरह कम न कर पाए, लेकिन यह पीड़ित परिवारों को यह एहसास कराती है कि सरकार उनके साथ खड़ी है। मोदी का यह कहना कि “आप अकेले नहीं हैं, पूरा देश आपके साथ है” आपदा से जूझ रहे प्रदेशवासियों के लिए संबल का कार्य करता है।

केवल संवेदनशीलता नहीं, बल्कि दूरदृष्टि की ज़रूरत

हालाँकि, केवल तत्काल राहत और संवेदनशील नेतृत्व काफी नहीं है। उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन को लेकर एक दीर्घकालिक दृष्टि अपनाने की आवश्यकता है।

  1. भूस्खलन की रोकथाम के लिए वैज्ञानिक तरीके से पहाड़ी ढलानों का संरक्षण।
  2. नदी तटों पर अवैध निर्माण पर सख्ती।
  3. स्थायी आपदा प्रबंधन ढाँचा जिसमें स्थानीय लोगों को प्रशिक्षण मिले।
  4. जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए दीर्घकालिक योजनाएँ।

प्रधानमंत्री की यात्रा इन सवालों को भी उठाती है कि क्या राज्य और केंद्र सरकारें मिलकर ऐसा ठोस ढाँचा खड़ा करेंगी, जिससे भविष्य में आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम किया जा सके?

देवभूमि का आभार

उत्तराखंडवासियों ने प्रधानमंत्री के इस दौरे को भावनात्मक रूप से देखा। कठिन समय में जब राष्ट्रीय नेतृत्व खुद आकर हालात का जायज़ा लेता है और प्रभावितों के आँसू पोंछने का प्रयास करता है, तो इससे जनता का विश्वास मज़बूत होता है। मुख्यमंत्री धामी ने सही कहा कि प्रधानमंत्री ने हमेशा मजबूती, तत्परता और संवेदनशीलता के साथ उत्तराखंड का साथ दिया है।

यह संपादकीय केवल प्रधानमंत्री की यात्रा का वर्णन नहीं, बल्कि उत्तराखंड के लिए एक चेतावनी भी है। हमें केवल तात्कालिक राहत और सहायता से संतुष्ट नहीं होना चाहिए, बल्कि दीर्घकालिक आपदा प्रबंधन की ठोस नीति बनानी होगी। मोदी का संवेदनशील नेतृत्व और धामी सरकार का सक्रिय सहयोग मिलकर एक ऐसा मॉडल बना सकता है, जिससे न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे हिमालयी क्षेत्र को सुरक्षित भविष्य मिल सके।

आज जब पहाड़ कराह रहे हैं और नदियाँ उफान पर हैं, तब प्रधानमंत्री का यह संदेश सबसे बड़ा संबल है—संकट चाहे कितना भी बड़ा हो, लेकिन एकजुटता, संवेदनशीलता और तत्परता से हम हर मुश्किल का सामना कर सकते हैं।



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