
पहाड़गंज, रुद्रपुर में मस्जिद के लिए भूमि आवंटन को लेकर उठे विवाद ने अब नया मोड़ ले लिया है। कुछ हिंदूवादी संगठनों द्वारा विधायक शिव अरोड़ा के खिलाफ नारेबाजी और पुतला दहन की घटनाओं के बीच, ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है।
📍 विवाद की जड़: नजूल भूमि का मसला?विवादित भूमि, जो कथित रूप से मस्जिद के निर्माण के लिए आवंटित की गई है, वह नगर निगम की नजूल भूमि है। नजूल भूमि का स्वामित्व राज्य सरकार के अधीन होता है, लेकिन इसका प्रबंधन और आवंटन नगर निकाय—इस मामले में रुद्रपुर नगर निगम—के अधिकार क्षेत्र में आता है। नगर निगम के किसी भी भूमि आवंटन में विधायक की भूमिका वैधानिक रूप से शून्य होती है।
🧾 महापौर की भूमिका बनी संदेह के घेरे में?सूत्रों के अनुसार, उक्त भूमि का आवंटन नगर निगम के महापौर विकास शर्मा के निर्देशों पर और निगम अधिकारियों के माध्यम से किया गया। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब पूरा प्रशासनिक नियंत्रण नगर निगम के पास है, तो विधायक शिव अरोड़ा को इस विवाद में क्यों घसीटा जा रहा है?
🎭 राजनीतिक आरोपों का खेल?
स्थानीय विश्लेषकों का मानना है कि महापौर विकास शर्मा ने इस विवाद से अपनी भूमिका छिपाने के लिए हिंदूवादी संगठनों का सहारा लेते हुए ध्यान विधायक पर शिफ्ट कर दिया है। इससे न सिर्फ जनता की नजरें वास्तविक जवाबदेही से भटक रही हैं, बल्कि जनता में भ्रम भी फैल रहा है।
🗣️ विधायक शिव अरोड़ा की प्रतिक्रिया?विधायक शिव अरोड़ा ने इस प्रकरण पर अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन उनके करीबी सूत्रों का कहना है कि वह इस अनावश्यक राजनीतिक निशानेबाजी से क्षुब्ध हैं और जल्द ही मीडिया के माध्यम से अपनी स्थिति स्पष्ट करेंगे।
🏛️ नजूल भूमि के आवंटन में विधायक की कोई भूमिका नहीं
नजूल भूमि का आवंटन एक प्रशासनिक प्रक्रिया है, जो नगर निगम के माध्यम से होती है। इसमें विधायक न तो प्रस्तावकर्ता होते हैं, न ही अनुमोदक। ऐसे में विधायक शिव अरोड़ा का नाम लेकर नारेबाजी करना कानूनी और नैतिक दृष्टिकोण से अनुचित है।
इस घटनाक्रम ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि किस तरह स्थानीय प्रशासनिक निर्णयों को राजनीतिक रंग देकर जनता को गुमराह किया जाता है। ऐसे में ज़रूरत है तथ्यों के आधार पर जवाबदेही तय करने की, न कि अंधभक्ति या राजनीतिक रणनीति के आधार पर।
