यह प्रस्ताव सिर्फ एक आर्थिक लक्ष्य नहीं, बल्कि नाटो को और मजबूत करने के साथ-साथ चीन, रूस और आतंकवाद से निपटने के लिए किया जा रहा है. इस खतरे की आड़ में अमेरिका यह दबाव बना रहा है. जर्मनी जैसे कुछ देश भी इस मांग के आगे झुकने भी लगे हैं.


संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)
तुर्की के अंटाल्या में आयोजित नाटो विदेश मंत्रियों की बैठक में अमेरिका की इस नई मांग पर गंभीर चर्चा हुई. अमेरिका चाहता है कि सभी नाटो सदस्य देश अगले सात सालों में अपने रक्षा बजट को अपनी जीडीपी के 5 प्रतिशत तक बढ़ाएं. फिलहाल यह लक्ष्य 2 प्रतिशत है, जिसे भी एक तिहाई सदस्य देश आज तक पूरा नहीं कर पाए हैं. लेकिन अब अमेरिका 3.5 प्रतिशत पारंपरिक रक्षा खर्च और 1.5 प्रतिशत रक्षा से जुड़ी अधोसंरचना (जैसे सड़कें, पुल, बंदरगाह, एयरपोर्ट) पर खर्च की मांग कर रहा है.
क्या बोल रहा नाटो?
नाटो महासचिव मार्क रुटे ने कहा कि रूस, आतंकवाद और अब चीन जैसे खतरे को देखते हुए सैन्य निवेश को काफी हद तक बढ़ाने की जरूरत है. उन्होंने स्पष्ट किया कि यूक्रेन युद्ध खत्म होने के बाद रूस महज 3 से 5 साल में अपनी सेना को फिर से खड़ा कर सकता है. इसी संभावना को देखते हुए अमेरिका चाहता है कि उसके सहयोगी समय रहते तैयार हो जाएं. इस तरह के बयानों से यह स्पष्ट है कि अमेरिका युद्ध की आशंका को आधार बनाकर सैन्य खर्च को लगातार बढ़ावा दे रहा है.
सभी नाटो सदस्यों को आदेश
इस मुद्दे पर अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा कि गठबंधन उतना ही मजबूत है जितना उसकी सबसे कमजोर कड़ी. 5 प्रतिशत खर्च की मांग 21वीं सदी के खतरों के मुकाबले के लिए जरूरी है. ट्रंप ने यह भी संकेत दिया है कि अगर देश निर्धारित सैन्य खर्च नहीं करते हैं, तो अमेरिका उन देशों की रक्षा को लेकर अपनी प्रतिबद्धता पर पुनर्विचार कर सकता है. यह सीधा दबाव है, जो नाटो सहयोगियों को मजबूर कर रहा है.
नाटो के आगे झुका जर्मनी
जर्मनी ने इस अमेरिकी मांग को सैद्धांतिक रूप से स्वीकार कर लिया है. जर्मन विदेश मंत्री योहान वेडेफुल ने अंटाल्या बैठक के दौरान कहा कि हम अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप की 5 प्रतिशत मांग का समर्थन करते हैं. वर्तमान में जर्मनी अपनी जीडीपी का लगभग 2 प्रतिशत रक्षा पर खर्च करता है और हर अतिरिक्त प्रतिशत करीब 45 अरब यूरो (लगभग 50.5 अरब डॉलर) अतिरिक्त व्यय लाएगा. जर्मन चांसलर फ्रेडरिक मर्ज़ ने संसद में ऐलान किया है कि वे जर्मनी की सेना को यूरोप की सबसे ताकतवर पारंपरिक सेना में बदलेंगे.
कौन सा देश कितना खर्च करता है?
इस मांग को लेकर नाटो सदस्य देशों की स्थिति बेहद भिन्न है. अमेरिका अभी अपनी जीडीपी का 3.37% रक्षा पर खर्च करता है, जो किसी भी देश से कहीं ज्यादा है. ब्रिटेन ने 2027 तक 2.5 प्रतिशत और 2029 तक 3 प्रतिशत तक रक्षा बजट बढ़ाने का लक्ष्य रखा है. दूसरी ओर, कई सदस्य देश आज तक 2 प्रतिशत के मौजूदा लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाए हैं जैसे बेल्जियम (1.3%), कनाडा (1.37%), इटली (1.49%), पुर्तगाल (1.55%) और स्पेन (1.28%). स्पेन ने 2025 तक 2 प्रतिशत तक पहुंचने का वादा किया है.
आसान नहीं 5 परसेंट का टार्गेट
मार्क रुटे ने यह स्वीकार किया कि 5 प्रतिशत का लक्ष्य बहुत कठिन है, इसलिए उन्होंने समझौता प्रस्ताव दिया 3.5 प्रतिशत पारंपरिक रक्षा और 1.5 प्रतिशत रक्षा-संबंधित अधोसंरचना. उन्होंने कहा कि पुल और सड़कें सिर्फ यातायात के लिए नहीं, युद्धकाल में टैंकों के भार को भी झेलने लायक होनी चाहिए. यानी अब सड़कों से लेकर बंदरगाह तक, हर सार्वजनिक संरचना को सैन्य नजरिए से देखा जा रहा है.
ट्रंप के पक्ष में ये देश
लिथुआनिया, पोलैंड और यूके जैसे देश अमेरिका की इस मांग के पक्ष में हैं. लिथुआनिया के विदेश मंत्री केस्टुटिस बुड्रीस ने कहा, रूस अपनी सेना को बहुत तेजी से फिर से तैयार कर रहा है. इसलिए हमें 2032 तक नहीं, उससे पहले ही 5 प्रतिशत लक्ष्य हासिल करना चाहिए. ब्रिटेन के विदेश मंत्री डेविड लैमी ने कहा कि इंडो-पैसिफिक और यूरोप में कई संकट पैदा हो रहे हैं, और इस समय अमेरिका के साथ कदम मिलाकर चलना बहुत जरूरी है.

