
उत्तराखंड की शांत वादियों में एक बार फिर ठगी का बड़ा खेल उजागर हुआ है। देहरादून में एक सरकारी शिक्षक द्वारा 15 हजार लोगों से 47 करोड़ रुपये की ठगी की कहानी ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया है। शिक्षक ने अपने परिवार के नाम पर तीन फर्जी कंपनियां—सर्व माइक्रो फाइनेंस इंडिया एसोसिएशन, दून समृद्धि निधि लिमिटेड और दून इन्फ्राटेक कंपनी—खोलीं और निवेशकों को झूठे सपनों का लालच देकर उनकी मेहनत की कमाई हड़प ली। दिलचस्प बात यह है कि यह कोई सड़कछाप ठग नहीं, बल्कि शिक्षा विभाग का अधिकारी निकला, जिसने विश्वास और साख का ही दुरुपयोग किया।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी
इस घटनाक्रम ने एक बार फिर यह उजागर कर दिया है कि उत्तराखंड जैसे अपेक्षाकृत शांत प्रदेश में भी आर्थिक अपराधियों का नेटवर्क अब शिक्षित और प्रतिष्ठित वर्ग तक पहुँच चुका है। शिक्षक, जिन्होंने समाज को ईमानदारी और ज्ञान का पाठ पढ़ाना था, वही अब लालच और बेईमानी के पाठ्यक्रम के प्रतीक बन बैठे हैं।
देहरादून के इस मामले में ठगी के शिकार अधिकांश लोग मध्यमवर्गीय कर्मचारी, पेंशनर, और गृहिणियां हैं—जिन्होंने जीवन भर की पूंजी या तो ब्याज के लालच में लगाई या किसी जानकार के भरोसे पर निवेश किया। एसएसपी अजय सिंह ने इस मामले की जांच तेज कर दी है और कई बैंक खाते फ्रीज किए जा चुके हैं, मगर असली सवाल यह है कि ऐसे फाइनेंस और रियल एस्टेट ठगी के नेटवर्क की जड़ें आखिर कितनी गहरी हैं?
रुद्रपुर में भी घूम रहे ‘प्रॉपर्टी के पंडित’?देहरादून ही नहीं, रुद्रपुर और ऊधमसिंह नगर के शहरी इलाकों में भी पिछले कुछ वर्षों में इसी तरह की ठगी के कई मामले दबे-छिपे सामने आए हैं। “प्रॉपर्टी डीलर” या “रियल एस्टेट कंसल्टेंट” के नाम पर कई ऐसे लोग सक्रिय हैं जो न तो किसी वैध रजिस्टर्ड संस्था से जुड़े हैं, न ही उनके पास लाइसेंस या पारदर्शी व्यावसायिक पहचान है।
ये लोग प्लॉट या फ्लैट दिलाने के नाम पर लाखों रुपये एडवांस में लेकर गायब हो जाते हैं, या फर्जी रजिस्ट्री और कागजात दिखाकर जमीनें बेच डालते हैं, जिन पर बाद में विवाद खड़ा होता है। कई युवाओं ने रोजगार के सपने में या “तेजी से रिटर्न” की उम्मीद में इन जालसाजों के जाल में फँसकर अपने माता-पिता की जमा पूंजी गंवा दी।
उत्तराखंड में प्रॉपर्टी के नाम पर ठगी कोई नई बात नहीं रही। हर महीने ऐसे सैकड़ों लोग सामने आते हैं जो अपनी जिंदगी की पूंजी, बरसों की कमाई और उम्मीदें किसी ‘रियल एस्टेट एजेंट’ या ‘प्रॉपर्टी डीलर’ के भरोसे लगा देते हैं — और फिर शुरू होता है एक अंतहीन चक्कर, तारीख पर तारीख का।
ऐसे ही एक आम उदाहरण से समाज की सच्चाई झलकती है—20 लाख रुपये में एक प्लॉट का सौदा हुआ। 8 लाख रुपये चेक से दिए गए और बाकी 12 लाख रुपये नगद में। बयाना पक्का हुआ, प्लॉट दिखा, रजिस्ट्री की तारीख तय हुई। लेकिन जब रजिस्ट्री का समय आया तो सामने आया धोखे का असली चेहरा। न रजिस्ट्री हुई, न पैसा लौटा। और जब पीड़ित ने पुलिस या कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, तो आरोपी बड़ी सहजता से कह बैठा — “अगर तुमने चेक दिया था तो बैंक में लगा क्यों नहीं?”
असल में, यह ठगी का बहुत चालाक तरीका है। ठग जानबूझकर चेक को बैंक में प्रस्तुत नहीं करते ताकि बाद में यह साबित न हो सके कि पैसे दिए गए थे। दूसरी ओर, पीड़ित पक्ष यह सोचता है कि सौदा तय हो चुका है और बयाना ही भरोसे की निशानी है। लेकिन यहीं पर अपराधी का खेल शुरू होता है।
आज रियल एस्टेट के नाम पर बाजार में दर्जनों फर्जी कंपनियां, काल्पनिक ‘डीलर’ और ‘बिल्डर’ सक्रिय हैं जो भोलेभाले लोगों को जाल में फंसा लेते हैं। इन लोगों के पास नकली एग्रीमेंट, झूठे दस्तावेज़ और प्रभावशाली संपर्कों का झूठा प्रदर्शन होता है। कई बार वे पुलिस या राजनैतिक रसूख का हवाला देकर भी पीड़ितों को डराने की कोशिश करते हैं।
ऐसे मामलों में प्रशासन और पुलिस की भूमिका बेहद अहम बनती है। जिस तरह अपराधियों की संपत्ति जब्त करने की कार्रवाई होती है, उसी तरह प्रॉपर्टी डीलरों की संपत्ति और उनके लाइसेंस की भी जांच होनी चाहिए। हर प्रॉपर्टी डीलर को रजिस्टर्ड होना चाहिए और उनके लेन-देन का डिजिटल रिकॉर्ड अनिवार्य किया जाना चाहिए।
रुद्रपुर के कुछ इलाकों—जैसे ट्रांजिट कैंप, किच्छा रोड और ओमेक्स, रुद्रपुर, भूरा रानी, छतरपुर ,धर्मपुर, गंगापुर,किच्छा, गदरपुर, दिनेशपुर, फाजलपुरक्षेत्र—में ऐसे कई “रियल एस्टेट सलाहकार” खुलेआम काम कर रहे हैं जिनकी न तो कोई वेबसाइट है, न कोई वैधानिक रजिस्ट्री। अफसोस की बात यह है कि स्थानीय प्रशासन और नगर निकाय भी इस दिशा में अब तक ठोस कार्रवाई नहीं कर पाए हैं।
जनता के भरोसे की ठगी – कानून की कमजोरी?इन फर्जी कंपनियों या संपत्ति निवेश योजनाओं की सफलता का मूल कारण है—जनता का अंधा भरोसा और कानून की धीमी प्रक्रिया। अधिकांश लोग कंपनी के विज्ञापन, बैंक अकाउंट या किसी परिचित के कहने पर निवेश कर देते हैं। दूसरी तरफ, जब तक शिकायत दर्ज होती है, आरोपी या तो रकम ट्रांसफर कर चुका होता है या नए नाम से दूसरी कंपनी खोल चुका होता है।
यही कारण है कि उत्तराखंड में प्रॉपर्टी इन्वेस्टमेंट फ्रॉड एक संगठित अपराध का रूप ले चुका है। छोटे निवेशकों से लेकर सेवानिवृत्त कर्मचारियों तक, हर कोई किसी न किसी रूप में इस ठगी के निशाने पर है।
क्या करना होगा सरकार को?राज्य सरकार को चाहिए कि वह रियल एस्टेट रेगुलेशन एक्ट (RERA) के तहत प्रत्येक ब्रोकर, एजेंट और प्रॉपर्टी डीलर को रजिस्टर्ड करने की अनिवार्यता को सख्ती से लागू करे। हर रियल एस्टेट योजना के लिए पारदर्शी वित्तीय ऑडिट हो, और निवेशकों के लिए हेल्पलाइन व शिकायत पोर्टल स्थापित किया जाए।
इसके अलावा, पुलिस विभाग में “साइबर और फाइनेंशियल फ्रॉड सेल” को जिला स्तर पर मजबूत करने की जरूरत है ताकि देहरादून, रुद्रपुर, किच्छा और हल्द्वानी जैसे तेजी से विकसित होते शहरों में इस तरह की ठगी पर समय रहते अंकुश लगाया जा सके।
रियल एस्टेट ठगी अब महज वित्तीय अपराध नहीं रही, बल्कि यह सामाजिक विश्वास पर सीधा प्रहार है। जब एक शिक्षक ही निवेशकों को ठगने लगे, तो यह सिर्फ कानून की विफलता नहीं, बल्कि समाज की नैतिक गिरावट का भी संकेत है।
अब वक्त आ गया है कि हम सिर्फ “लालच में न आएं” कहकर बात खत्म न करें—बल्कि ऐसे हर व्यक्ति, संस्था और नेटवर्क को सार्वजनिक रूप से बेनकाब करें जो “सपनों की प्रॉपर्टी” के नाम पर लोगों के जीवनभर की कमाई निगल रहे हैं।
प्रॉपर्टी के नाम पर ठगी का साम्राज्य: अब उत्तराखंड पुलिस को उठाना होगा बड़ा कदम”
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से अब तक विकास के नाम पर सबसे बड़ा खेल अगर किसी क्षेत्र में हुआ है, तो वह रियल एस्टेट यानी प्रॉपर्टी का क्षेत्र है। आज प्रदेश के हर शहर में — चाहे देहरादून हो, हल्द्वानी, रुद्रपुर या हरिद्वार — जगह-जगह प्रॉपर्टी डीलरों के बोर्ड चमकते दिखाई देते हैं। परंतु इन चमकते बोर्डों के पीछे कितने लोगों की जिंदगी की कमाई अंधेरे में गुम हो चुकी है, इसका अंदाजा आम आदमी नहीं लगा सकता।
असलियत यह है कि उत्तराखंड में बड़ी संख्या में ऐसे प्रॉपर्टी डीलर सक्रिय हैं जिनका न तो कोई विधिक ज्ञान है, न कोई वैधानिक पंजीकरण, और न ही कोई पारदर्शी कार्यशैली। कई डीलर आपराधिक इतिहास वाले हैं, जो जमीन-जायदाद के नाम पर भोले-भाले लोगों को झांसा देकर लाखों-करोड़ों की ठगी कर रहे हैं। किसी से यह कहकर पैसे ले लेते हैं कि “प्लॉट की रजिस्ट्री जल्द होगी”, किसी को “सरकारी जमीन के नाम पर कब्जे की गारंटी” देते हैं, तो किसी को “पार्टनरशिप प्रोजेक्ट” का सपना दिखाकर बेवकूफ बना देते हैं। नतीजा यह होता है कि वर्षों बीत जाते हैं, पर रजिस्ट्री नहीं होती, न पैसा लौटाया जाता है।
ऐसे मामलों में आम नागरिक अक्सर न्याय के लिए पुलिस या कोर्ट का दरवाजा खटखटाता है, लेकिन फर्जी समझौते, लापरवाह जांच और स्थानीय प्रभाव के चलते अपराधी अक्सर बच निकलते हैं। कई बार यह डीलर राजनीतिक संरक्षण प्राप्त कर लेते हैं, जिससे पुलिस भी कार्रवाई करने से हिचकिचाती है। यही कारण है कि प्रॉपर्टी ठगी अब एक संगठित अपराध का रूप ले चुकी है।
अब समय आ गया है कि उत्तराखंड पुलिस और सरकार इस दिशा में सख्त कदम उठाए। जैसे माफिया या अवैध संपत्ति के मामलों में एसआईटी या ईडी जांच होती है, वैसे ही प्रॉपर्टी डीलरों की संपत्ति की भी गहन जांच की जाए। हर पंजीकृत और अपंजीकृत डीलर से उसकी आय, भूमि सौदे, साझेदारी समझौते और बैंक लेनदेन का पूरा ब्यौरा मांगा जाए। जिनके खिलाफ शिकायतें दर्ज हैं, उनकी संपत्ति का सत्यापन और फॉरेंसिक ऑडिट करवाया जाए।
अगर यह जांच ईमानदारी से की जाए, तो निश्चित रूप से कई ऐसे चेहरे उजागर होंगे जिन्होंने वर्षों से लोगों को 10-10 साल तक झूठे आश्वासनों के सहारे लूटा है। कई डीलरों ने अपने नाम नहीं, बल्कि रिश्तेदारों या कर्मचारियों के नाम पर करोड़ों की संपत्ति खड़ी कर रखी है। कई ने पार्टनरशिप के नाम पर निवेशकों के पैसे डकार लिए और फिर खुद को दिवालिया घोषित कर लिया। ये सब खेल एक साजिश के तहत चले हैं, और इनके पीछे ताकतवर लोगों की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता।
उत्तराखंड में रियल एस्टेट अब केवल व्यापार नहीं, बल्कि “ब्लैक मनी वॉशिंग सेंटर” बन चुका है। सरकारी योजनाओं और बिल्डिंग परमिशन के नाम पर भी फर्जीवाड़ा चरम पर है। कई नगर निकायों और प्राधिकरणों में मिलीभगत से अवैध कॉलोनियां फल-फूल रही हैं। आम नागरिक जब तक सच्चाई समझ पाता है, तब तक वह ठगी का शिकार बन चुका होता है।
इसलिए यह जरूरी है कि राज्य सरकार “प्रॉपर्टी रेगुलेटरी अथॉरिटी” को सशक्त करे और हर जिले में “रियल एस्टेट धोखाधड़ी नियंत्रण प्रकोष्ठ” बनाया जाए। प्रत्येक डीलर को वैधानिक लाइसेंस, वार्षिक लेखा-परीक्षा और पुलिस सत्यापन अनिवार्य किया जाए। जिन डीलरों का कोई आपराधिक रिकॉर्ड है या जिन पर धोखाधड़ी के मामले लंबित हैं, उनके लाइसेंस तत्काल निलंबित किए जाएं।
उत्तराखंड पुलिस को भी चाहिए कि वह इस क्षेत्र को केवल “दीवानी विवाद” मानकर नजरअंदाज न करे। जब किसी व्यक्ति से लाखों की ठगी हो और उसका जीवनभर का निवेश डूब जाए, तो यह सिर्फ विवाद नहीं बल्कि अपराध है — और अपराध के सामने कानून को मौन नहीं रहना चाहिए।
प्रॉपर्टी के नाम पर जनता को बेवकूफ बनाना, झूठे वादों से धन ऐंठना, और अपराधी तत्वों को संरक्षण देना — यह सब सामाजिक अपराध की श्रेणी में आता है। अब समय है कि सरकार और पुलिस मिलकर ऐसे तत्वों को बेनकाब करें।
अगर उत्तराखंड सच में पारदर्शी शासन का सपना देख रहा है, तो यह जांच केवल एक कदम नहीं, बल्कि “जन-विश्वास पुनर्स्थापन अभियान” बन सकती है। जिस दिन जनता को यह भरोसा हो जाएगा कि उसके मेहनत के पैसे से कोई खिलवाड़ नहीं कर सकता, उस दिन उत्तराखंड सच में देवभूमि कहलाने के योग्य बनेगा।
– अवतार सिंह बिष्ट
संपादकीय विभाग, हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स


