
जहाँ हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार के लिए शव को जलाया जाता है और अन्य धर्मों में उसे दफनाया जाता है, वहीं अघोरी न तो शव को जलाते हैं और न ही दफनाते.


शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता
अघोरियों की मान्यता है कि शरीर एक साधन मात्र है और मृत्यु के बाद यह पंचतत्व में विलीन हो जाना चाहिए. वे आत्मा को अमर मानते हैं और शरीर को त्याज्य. अघोरी जब जीवन का अंतिम पड़ाव छूते हैं, तो उनके शरीर को श्मशान के किनारे नदी में बहा दिया जाता है या फिर खुले में छोड़ दिया जाता है. उनका मानना है कि शरीर प्रकृति का हिस्सा है और प्रकृति ही उसका सही उपयोग करेगी — चाहे वह पक्षियों, जानवरों या प्रकृति की अन्य शक्तियों के माध्यम से हो.
अघोरियों का रहस्यमयी अंतिम संस्कार
कुछ मामलों में, अघोरी गुरु या उनके शिष्य मृत शरीर को श्मशान की चिता पर बिना विधिवत जलाए छोड़ देते हैं ताकि वह धीरे-धीरे गल जाए या जलकर खुद-ब-खुद पंचतत्व में विलीन हो जाए. उनका यह दृष्टिकोण मृत्यु के प्रति भय को नकारता है और जीवन-मृत्यु के चक्र को सहज स्वीकार करने की ओर इशारा करता है.
अघोरियों की साधना का केंद्र ही मृत्यु
अघोरियों की साधना का केंद्र ही मृत्यु है, इसलिए वे श्मशान को पवित्र स्थान मानते हैं और अंतिम संस्कार को एक आध्यात्मिक प्रक्रिया rather than a social ritual मानते हैं. उनके लिए मृत्यु कोई अंत नहीं, बल्कि आत्मा की यात्रा का एक चरण है.
समाज के लिए विचलित कर देने वाली
यह प्रक्रिया आम समाज के लिए विचलित कर देने वाली हो सकती है, लेकिन अघोरियों के लिए यह उनकी गहन साधना और प्रकृति से एकाकार होने का प्रतीक है. वे इस बात में विश्वास रखते हैं कि जब जीवन ही मोह-माया से परे था, तो मृत्यु भी उसी मार्ग से होनी चाहिए — मुक्त और निर्बंध.
