संपादकीय विशेष”आग में जली भारत इंजीनियरिंग फैक्ट्री और सरकार की संवेदनहीन चुप्पी”— अवतार सिंह बिष्ट,हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी

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रुद्रपुर के औद्योगिक हृदय कहे जाने वाले किच्छा बाईपास स्थित भारत इंजीनियरिंग फैक्ट्री में हाल ही में हुआ भीषण अग्निकांड न सिर्फ एक व्यावसायिक दुर्घटना है, बल्कि उत्तराखंड की सरकारी संवेदनहीनता का भी जीता-जागता उदाहरण बनकर सामने आया है। करोड़ों रुपये की मशीनरी और उत्पाद जलकर राख हो गए, एक मेहनती उद्यमी का वर्षों की पूंजी, श्रम और सपना पल भर में धुएं में बदल गया — लेकिन दुर्भाग्यवश उत्तराखंड सरकार और जिला प्रशासन अब तक केवल ‘निरीक्षण’ की औपचारिकता निभाकर लौट आया है।

पूर्व विधायक राजकुमार ठुकराल जैसे जनप्रतिनिधि जब इस पीड़ा को समझते हुए स्वयं मौके पर पहुंचते हैं और पीड़ित परिवार को ढांढस बंधाते हैं, तब सरकार की चुप्पी और अधिक असंवेदनशील प्रतीत होती है। यह घटना महज आग की नहीं, बल्कि एक गहरी नीति विफलता की चिंगारी भी है — एक ऐसी व्यवस्था की, जो केवल उन्हीं उद्यमियों की सुध लेती है जो सत्ताधारी दलों के चहेते हों या उनके चुनावी ‘डोनर’ हों।

उधम सिंह नगर जिले में फैक्ट्रियों में अग्निकांड की घटनाएं कोई नई बात नहीं हैं। हर वर्ष लाखों का नुकसान उठाने वाले लघु और मध्यम उद्योग (MSME) आज भी बीमा, राहत और मुआवजे के नाम पर सरकारी उपेक्षा का शिकार हैं। सवाल यह है — अगर यही फैक्ट्री किसी सत्ताधारी पार्टी के नेता की होती तो क्या अब तक राहत राशि का चेक हाथ में थमा दिया गया होता?

उत्तराखंड सरकार और विशेषकर एमएसएमई विभाग की चुप्पी चिंताजनक ही नहीं, शर्मनाक है। हर चुनाव में रोजगार और उद्योग को लेकर बड़े-बड़े वादे करने वाले दलों और नीतियों की असलियत ऐसे हादसों के बाद सामने आती है, जब कोई भी “वास्तविक उद्यमी” — जो ना तो राजनीति से जुड़ा है और ना ही किसी दल का एजेंडा — अकेला छोड़ दिया जाता है।

यह समझना ज़रूरी है कि जब कोई उद्योगपति किसी औद्योगिक क्षेत्र में अपनी फैक्ट्री लगाता है, तो वह न केवल रोजगार देता है बल्कि राज्य की आर्थिक रीढ़ को मज़बूत करता है। परंतु जब उस पर संकट आता है, तो वह सरकार से न्याय की अपेक्षा रखता है, दया की नहीं।

सरकार को चाहिए कि:

  1. तत्काल प्रभाव से नुकसान का आकलन कर राहत पैकेज घोषित करे।
  2. एमएसएमई और जिला उद्योग केंद्र को सक्रिय भूमिका में लाकर योजनाबद्ध पुनर्स्थापन की पहल करे।
  3. औद्योगिक क्षेत्रों में अग्निशमन की समुचित व्यवस्था सुनिश्चित करे।
  4. एक ‘आपदा राहत फंड’ की स्थापना करे, जो आग, बाढ़, विद्युत हादसों जैसे संकट में फौरन सहायता दे सके।

यदि सरकार ने अब भी आंखें मूंदे रखीं और इसे महज एक “अप्रत्याशित दुर्घटना” बताकर टालने की कोशिश की, तो यह कहना उचित होगा कि उत्तराखंड का औद्योगिक भविष्य केवल नीतियों के विज्ञापनों में सुरक्षित है, ज़मीनी हकीकत में नहीं।

और हां, एक अंतिम बात — यह आग सिर्फ एक फैक्ट्री में नहीं लगी, बल्कि सरकार के उद्यम संवेदनशीलता के दिखावे को भी भस्म कर गई। अगर अब भी राहत नहीं दी जाती, तो यह न केवल एक उद्यमी का दुर्भाग्य होगा, बल्कि पूरे उत्तराखंड औद्योगिक नीति की विफलता का गवाह भी।


संपादक का निवेदन:उत्तराखंड की हर फैक्ट्री, हर मेहनतकश उद्योगपति की यह पुकार है — सरकार त्वरित न्याय दे, वरना अगली आग भरोसे की बुनियाद को जला देगी।


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