
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, जबकि कई लोग कहते और मानते हैं कि संसद सर्वोच्च है, मेरे हिसाब से भारत का संविधान सर्वोच्च है। लोकतंत्र के तीनों अंग संविधान के तहत काम करते हैं।


अपनी बात को पुष्ट करते हुए न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि संसद के पास केवल संशोधन करने का अधिकार है, लेकिन वह संविधान के मूल ढांचे में बदलाव नहीं कर सकती। ‘मूल ढांचे’ का सिद्धांत सर्वोच्च न्यायालय के 1973 के ऐतिहासिक फैसले से विकसित हुआ है, जो केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले में दिया गया था। 13 न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला सुनाया कि संविधान का ‘मूल ढांचा’ अपरिवर्तनीय है और संसद द्वारा इसमें संशोधन नहीं किया जा सकता। मुख्य न्यायाधीश ने इस बात पर जोर दिया कि न्यायाधीशों को संविधान द्वारा एक कर्तव्य सौंपा गया है और इस बात पर जोर दिया कि सरकार के खिलाफ आदेश पारित करने मात्र से कोई स्वतंत्र नहीं हो जाता।
केवल सरकार के खिलाफ आदेश पारित करना ही स्वतंत्रता नहीं है। हम नागरिकों के अधिकारों और संवैधानिक मूल्यों और सिद्धांतों के संरक्षक हैं। हमारे पास केवल शक्ति नहीं है, बल्कि हम पर एक कर्तव्य भी डाला गया है। न्यायमूर्ति गवई ने यह भी कहा कि न्यायाधीश को इस बात से निर्देशित नहीं होना चाहिए कि लोग उनके फैसले के बारे में क्या कहेंगे या क्या महसूस करेंगे। उन्होंने कहा कि हमें स्वतंत्र रूप से सोचना होगा। लोग क्या कहेंगे, यह हमारी निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बन सकता।

