कर्ण और अर्जुन भले ही एक ही मां कुंती की कोख से जन्मे थे लेकिन दोनों एक-दूसरे के शत्रु थे. महाभारत युद्ध में कर्ण और अर्जुन आमने-सामने थे.

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युद्ध के दौरान एक ऐसा मौका आया जब कर्ण, अर्जुन पर तीर चला रहे थे ल‍ेकिन अचानक उन्‍हें अर्जुन के प्राण लेने की बजाए बचाने का काम करना पड़ा.

कर्ण के बाण पर बैठ गया था अश्‍वसेन नाग

दरअसल, जैसे ही सूर्यपुत्र कर्ण ने कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में अर्जुन पर वार करने के लिए धनुष-बाण उठाया और तीर चढ़ाया तो उन्‍होंने देखा कि एक नाग बेहद सूक्ष्‍म रूप में आकर उनके तीर पर बैठ गया है, कर्ण ने उस नाग को अपने तीर से हटाने की खूब कोशिश की लेकिन वह नहीं हटा. तब कर्ण समझ गए कि यह सामान्‍य नाग नहीं हैं. इसके बाद कर्ण ने नाग से अपना परिचय देने के लिए कहा और बाण से ना हटने की वजह पूछी.

अर्जुन के प्राण लेने आया था नाग

कर्ण के पूछने पर अश्वसेन ने अपना परिचय देते हुए कहा- “मैं खांडवप्रस्थ वन में रहने वाला अश्वसेन हूं और अर्जुन से बदला लेने आया हूं.” जब कर्ण ने इसकी वजह पूछी तो अश्‍वसेन ने बताया कि एक बार अर्जुन ने खांडवप्रस्थ वन में आग लगाई थी, जिसमें अश्‍वसेन की मां जलकर मर गई थी, वहीं अश्‍वसेन किसी तरह बच गया था. तब से ही अर्जुन से बदला लेने के लिए आतुर था. लेकिन हर बार अर्जुन उससे बच गया. लिहाजा इस बार उसने योजना बनाई कि महावीर योद्धा कर्ण के बाण पर बैठकर वह अर्जुन के प्राण लेगा क्‍योंकि कर्ण का वार खाली नहीं जा सकता.

कर्ण ने बताया सत्‍य

इसके बाद कर्ण ने अश्‍वसेन नाग को जो सत्‍य बताया उसे सुनकर अश्‍वसेन नाग ने अर्जुन के प्राण लेने का इरादा ही छोड़ दिया. कर्ण ने बताया कि जब कौरव और पांडवों में सिंहासन और जमीन के बंटवारे को लेकर लड़ाई चल रही थी, तो पांडवों को शांत करने के लिए दुर्योधन ने पांडवों को खांडवप्रस्थ दिया था. खांडवप्रस्थ की जमीन घने वनों से ढकी होने के कारण रहने लायक नहीं थी. ऐसे में उस जमीन को रहने लायक बनाने के लिए अर्जुन ने खांडवप्रस्थ के सूखे वनों में आग लगा दी थी, जिसमें अश्‍वसेन नाग की मां जलकर मर गई थी. कर्ण ने अश्‍वसेन नाग से कहा कि, “हे अश्वसेन नाग! मुझे दुख है कि तुम्हें इस त्रासदी से गुजरना पड़ा है लेकिन मैं तुम्हें यह समझाना चाहता हूं कि अर्जुन ने जानबूझकर तुम्हारी मां की हत्या नहीं की है. खांडवप्रस्थ वन में आग लगाना अर्जुन की मजबूरी और जरुरत दोनों थी. इसका लक्ष्य तुम्हें या तुम्हारे परिवार को नुकसान पहुंचाना नहीं था. मैं एक योद्धा की तरह से अर्जुन से युद्ध करूंगा. तुम्हारी मदद लेकर मैं छल से उसकी जीवन लीला समाप्त नहीं कर सकता. एक योद्धा का कर्तव्य युद्ध करना और सम्मानपूर्वक जीत या वीरगति को प्राप्त करना होता है. कृपया मुझे क्षमा करो और रणभूमि से वापस लौट जाओ.”

कर्ण के मुख से यह सत्य सुनकर अश्वसेन अर्जुन को बिना नुकसान पहुंचाए वापस लौट गया. इस तरह कर्ण ने अपने शत्रु अर्जुन के प्राण बचाए.


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