कुरैया की प्रचंड लहर और ‘जनता की चोट’ — विजय बाजपेयी का सीट कुरैया पर सियासी समीकरणों का बवंडर

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त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के अंतर्गत औरैया जिले की कुरैया सीट पर आज जो कुछ देखने को मिला, वह महज़ एक चुनावी गतिविधि नहीं, बल्कि जनसमर्थन की वास्तविक परख थी। दिन भर एक प्रचंड लहर चली, जिसने कई कथित “ताकतवर” प्रत्याशियों की सियासी जमीन ही हिला दी। कुछ बूथों पर तो आलम यह रहा कि बस्ते उठाने वाले तक उस लहर में उड़ते नज़र आए।

भाजपा में घुसी ‘कांग्रेस पोषित आत्मा’ और समर्पित कार्यकर्ताओं की पीड़ा

आज की राजनीति में एक विचित्र संक्रमण देखने को मिल रहा है — भाजपा में कांग्रेस पोषित चेहरे अपने स्वार्थ साधते हुए असल में पार्टी संगठन की रीढ़ कहे जाने वाले उन समर्पित कार्यकर्ताओं की निष्ठा को चोट पहुंचा रहे हैं, जिन्होंने 20-30 सालों तक ज़मीन पर दरी बिछाई, नारे लगाए, और पोस्टर चिपकाए।

लेकिन सच्चा कार्यकर्ता जानता है कि ऊपर कम्बल कैसे डालना है, जब कोई “भीतरघाती” स्वाभिमान को ठेस पहुंचाता है। आज का जनादेश भी इसी अंतर्द्वंद की प्रतिक्रिया है — स्वाभिमान बनाम सौदेबाज़ी।

मरी चुहिया को गोबर सुंघाने’ जैसी कोशिशें

सोशल मीडिया पर कुछ पत्रकार साथियों और नेताओं द्वारा जिन ठंडे पड़े उम्मीदवारों को फिर से चर्चा में लाने की कोशिश हो रही है, वह वैसी ही है जैसे बचपन में बच्चों को मरी हुई चुहिया को गोबर सुंघा कर जिंदा करने की बात बुजुर्गों से सुनने को मिलती थी। सियासी शवों में फिर से जान डालने की यह कवायद हास्यास्पद भी है और जनता की समझ का अपमान भी।

नेताओं का ‘पैर पकड़ अभियान’ — पांच साल की दूरी, एक दिन की निकटता

चुनाव आते ही गरीबों के घरों में नेताओं की आमद बढ़ जाती है, वह भी कुछ ऐसे अंदाज़ में कि पैर पकड़कर वोट मांगना अब सामान्य हो गया है। सोचने वाली बात यह है कि यदि ये जनप्रतिनिधि पिछले पांच सालों में एक बार भी सीधे मुंह बात कर लेते, तो शायद हर बार गुहार की नौबत ही नहीं आती।

यह दृश्य जनता के बीच गहरी असंतोष की भावना को रेखांकित करता है। जनसमर्थन वोट तक सीमित नहीं है — वह सम्मान, संवाद और संवेदनशीलता की भी अपेक्षा करता है।


विजय बाजपेयी की फेसबुक पोस्ट — एक सधा हुआ प्रहार

विजय बाजपेयी द्वारा कुरैया सीट को लेकर की गई टिप्पणी न केवल एक प्रतिक्रिया है, बल्कि सधी हुई राजनीतिक चेतावनी भी है। उन्होंने इशारों में साफ कर दिया कि आज यदि सच्चे कार्यकर्ताओं की भावना को बार-बार नजरअंदाज किया गया, तो संगठन के भीतर से ही विरोध की आवाजें मुखर होंगी — कंबल ओढ़ कर घी पीने वालों के लिए यह सीधा संदेश है।


हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स का निष्कर्ष

  1. कुरैया सीट की तस्वीर यह स्पष्ट करती है कि लहरों में वह बह जाते हैं जो ज़मीन से नहीं जुड़े होते।
  2. भाजपा के लिए यह समय आत्मनिरीक्षण का है, खासकर जब पार्टी के भीतर कांग्रेस पोषित तत्वों को टिकट दिलाकर असल कार्यकर्ताओं को हाशिए पर डाला जा रहा है।
  3. चुनावों में जीत सिर्फ रणनीति से नहीं, बल्कि जनता के प्रति सच्चे व्यवहार और कार्यकर्ताओं की ईमानदार मेहनत से मिलती है।
  4. जनता अब ठगने वालों को पहचानने लगी है — उसे अब गोबर सुंघा कर पुरानी चीज़ें जिंदा कराने वाली कहानियों में कोई रुचि नहीं।

अवतार सिंह बिष्ट विशेष संवाददाता हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स के साथ बने रहिए — उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की ज़मीनी सियासत की सच्ची तस्वीर लाने के लिए।




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