
ऊर्जा निगम उत्तराखंड में सामने आया गुरुकुल नारसन उपसंस्थान का मीटर छेड़छाड़ प्रकरण केवल एक तकनीकी गड़बड़ी नहीं, बल्कि एक गहरी साजिश का पर्दाफाश है। जब किसी बड़ी औद्योगिक इकाई के मीटर से छेड़छाड़ होती है, तो यह सीधे-सीधे जनता की जेब पर डाका डालने जैसा है। जो बिजली चोरी उद्योगपति करते हैं, उसका बोझ आम उपभोक्ता पर डाल दिया जाता है।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी
गुरुकुल नारसन में मैसर्स वासू स्टील के मीटर से छेड़छाड़ करते हुए लोगों का पकड़ा जाना और इसमें विभागीय कर्मचारियों की मिलीभगत सामने आना बेहद गंभीर मामला है। ऊर्जा निगम प्रबंधन ने तुरंत कार्रवाई करते हुए एसएसओ अकरम अली को सेवा से हटाया, एफआईआर दर्ज कराई और दो एसडीओ – अनुभव सैनी व गुलशन बुलानी – को निलंबित कर दिया। यह दिखाता है कि अब निगम के शीर्ष अधिकारी मामले को हल्के में लेने के मूड में नहीं हैं।
लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ निलंबन और FIR ही पर्याप्त है? असल समस्या तो उस भ्रष्टाचार की है जिसने विभागीय स्तर पर जड़ें जमा रखी हैं। यदि जिम्मेदार अधिकारियों और कर्मचारियों की जवाबदेही तय नहीं होती, उनकी संपत्ति की जांच नहीं होती और उद्योगपतियों से मिलीभगत के तार नहीं खोजे जाते, तो यह कार्रवाई भी खानापूर्ति बनकर रह जाएगी।
प्रदेश के प्रबंध निदेशक ने सभी लैबों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने और NABL मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं की जांच प्रणाली को मजबूत करने की बात कही है। लेकिन यह तभी प्रभावी होगी जब निगरानी महज कागजों पर नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर हो।
हरिद्वार, सितारगंज, रुद्रपुर और ऊधमसिंहनगर के औद्योगिक शेड्यूल एरिया में बड़े पैमाने पर बिजली चोरी और भ्रष्टाचार की बातें लंबे समय से उठती रही हैं। उद्योगपति अपनी राजनीतिक पकड़ और विभागीय मिलीभगत के कारण बच निकलते हैं, जबकि इसका खामियाजा ईमानदार उपभोक्ता को महंगी बिजली दरों और भारी बिलों के रूप में भुगतना पड़ता है।
अगर वास्तव में “भ्रष्टाचार मुक्त उत्तराखंड” की परिकल्पना को साकार करना है, तो ऊर्जा निगम को केवल मीटर चोरी रोकने तक सीमित नहीं रहना चाहिए। उसे जिम्मेदार अधिकारियों की संपत्ति की गहन जांच करनी चाहिए, ताकि यह सामने आ सके कि किसके पास पद से कहीं अधिक संपत्ति कैसे पहुँची।
गुरुकुल नारसन प्रकरण हमें चेतावनी देता है कि बिजली चोरी सिर्फ तकनीकी नुकसान नहीं है, बल्कि यह राज्य की अर्थव्यवस्था और ईमानदार उपभोक्ताओं के साथ विश्वासघात है। पारदर्शिता, जवाबदेही और कठोर दंड ही इसका समाधान हैं। अब समय आ गया है कि ऊर्जा विभाग को केवल “उपभोक्ताओं पर बोझ डालने” की बजाय भ्रष्टाचार की जड़ों पर वार करना होगा। तभी “भ्रष्टाचार मुक्त उत्तराखंड” का सपना साकार हो पाएगा।


