उत्तराखंड में नकली सामान और मिलावटी खाद्य पदार्थों का कारोबार अब इस कदर फैल चुका है कि यह नशे के धंधे से भी बड़ा खतरा बन गया है। यह खतरा इसलिए ज्यादा गंभीर है क्योंकि नशा लेने वाला व्यक्ति सीमित है, लेकिन नकली दूध, तेल, नमक, मसाले, आटा, चावल, साबुन और पैकेटबंद पानी हर घर में पहुंचता है। यानी यहां ज़हर हर रोज़ आम आदमी की थाली में परोसा जा रहा है।✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)


सबसे चिंताजनक मामला है दूध और डेयरी उत्पादों का। रुद्रपुर, देहरादून, हल्द्वानी, काशीपुर और राज्य के अन्य शहरों में हर गली-मोहल्ले में खुली बड़ी-बड़ी डेयरियां रोज़ाना हजारों लीटर दूध बेच रही हैं। यह दूध अक्सर दिल्ली, यूपी और हरियाणा से थोक में आता है, जहां इसे सस्ते रसायनों, पाउडर और स्टार्च मिलाकर तैयार किया जाता है। दुकानदारों को यह थैलियां ₹30 प्रति किलो के हिसाब से दी जाती हैं, और वही दूध उपभोक्ता को ₹60 में बेचा जाता है।
सवाल उठता है—क्या प्रशासन, खाद्य सुरक्षा विभाग और सरकार को इस नेटवर्क की जानकारी नहीं? या फिर दूध माफिया, नौकरशाह और सत्ताधारी नेताओं के बीच ऐसा गठजोड़ है, जो इस गोरखधंधे को संरक्षण दे रहा है?यह खेल सिर्फ दूध तक सीमित नहीं। राज्य के बाजारों में नकली खाने का तेल, नमक, मसाले, साबुन, डिटर्जेंट, शैंपू, क्रीम, आटा और चावल तक खुलेआम बिक रहे हैं। पैकेजिंग इतनी असली जैसी होती है कि उपभोक्ता पहचान ही नहीं पाते।

