
भारतीय राजनीति में हर छोटा-बड़ा बयान महज़ शब्दों का खेल नहीं होता, बल्कि उसमें दूरगामी संदेश छुपे रहते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब गृहमंत्री अमित शाह को देश का सबसे लंबे समय तक पद संभालने पर बधाई दी और कहा – “यह तो बस शुरुआत है, हमें अभी लंबा रास्ता तय करना है” – तो यह वाक्य मात्र एक औपचारिकता नहीं था। इसने सियासी गलियारों में भूचाल मचा दिया। विपक्ष से लेकर सत्ता पक्ष तक, हर कोई इस वाक्य की व्याख्या अपने-अपने ढंग से करने लगा।


✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी
अमित शाह का रिकॉर्ड और उसका सियासी महत्व?30 मई 2019 को गृहमंत्री बनने वाले अमित शाह ने 2258 दिनों का कार्यकाल पूरा करते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का रिकॉर्ड पीछे छोड़ दिया। शाह का यह रिकॉर्ड उस समय बना जब अनुच्छेद 370 हटाने की छठी वर्षगांठ भी मनाई जा रही थी। याद रहे, अनुच्छेद 370 का प्रस्ताव संसद में रखने और उसे ऐतिहासिक ढंग से पास कराने का श्रेय शाह को ही दिया जाता है। इस लिहाज़ से यह क्षण उनके राजनीतिक करियर का स्वर्णिम पड़ाव था।
मोदी द्वारा शाह की सार्वजनिक प्रशंसा और “बस शुरुआत है” वाला बयान उसी दिन आना, किसी संयोग से अधिक एक सटीक राजनीतिक संदेश माना गया। भाजपा के सांसदों और नेताओं ने इसे अलग-अलग नज़रिये से समझा, लेकिन सभी इस बात पर सहमत दिखे कि शाह की भूमिका पार्टी में और मज़बूत होने वाली है।
भाजपा की सेवानिवृत्ति आयु और उत्तराधिकार की राजनीति?मोदी-शाह की जोड़ी ने भाजपा में 75 वर्ष की अलिखित सेवानिवृत्ति आयु तय की है। आडवाणी, जोशी, उमा भारती जैसे दिग्गज इसी नियम के तहत हाशिये पर धकेल दिए गए। प्रधानमंत्री मोदी 75 वर्ष की उम्र सीमा की ओर बढ़ रहे हैं और 2029 तक वे इस दहलीज पर पहुंच जाएंगे। ऐसे में पार्टी के भीतर उत्तराधिकारी की चर्चा अब तेज़ होना स्वाभाविक है।
अमित शाह अभी मात्र 60 वर्ष के हैं। संगठनात्मक पकड़, प्रशासनिक अनुभव और मोदी के साथ दशकों पुराने रिश्ते उन्हें स्वाभाविक उत्तराधिकारी की पंक्ति में सबसे आगे खड़ा करते हैं।
योगी आदित्यनाथ का समीकरण?उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अक्सर प्रधानमंत्री पद के संभावित दावेदार के रूप में चर्चाओं में रहते हैं। उनकी हिंदुत्व आधारित राजनीति, प्रचंड जनाधार और प्रशासनिक शैली उन्हें भाजपा के भीतर एक अलग पहचान देती है। लेकिन मोदी के हालिया इशारे को कई राजनीतिक विश्लेषक इस तरह देख रहे हैं कि योगी अब ‘पीएम रेस’ से बाहर कर दिए गए हैं।
कारण साफ हैं—
- योगी की लोकप्रियता भाजपा के लिए संपत्ति तो है, पर केंद्रीय नेतृत्व के लिए यह असहजता का भी कारण है।
- आरएसएस भी योगी की स्वतंत्र और आक्रामक शैली से पूरी तरह सहज नहीं है।
- मोदी-शाह की जोड़ी हमेशा से संगठन पर नियंत्रण बनाए रखने के पक्ष में रही है। ऐसे में योगी जैसा आत्मनिर्भर और स्वतंत्र चेहरा केंद्रीय सत्ता के लिए चुनौती बन सकता है।
संसद का संकेत: मोदी की जगह शाह?संसद के मानसून सत्र में जब ऑपरेशन सिंदूर पर विपक्ष ने सवाल उठाए, तो लोकसभा में जवाब प्रधानमंत्री मोदी ने दिया, जबकि राज्यसभा में यह जिम्मेदारी अमित शाह को सौंपी गई। सामान्यतः ऐसे मुद्दों पर प्रधानमंत्री दोनों सदनों में जवाब देते हैं। लेकिन मोदी का यह निर्णय कई मायनों में संकेत देता है कि वे शाह को अपनी जगह पर और बड़ी जिम्मेदारी के लिए तैयार कर रहे हैं।
आरएसएस और भाजपा का समीकरण?यहाँ एक और बड़ा पहलू है—आरएसएस। संघ लंबे समय से इस कोशिश में है कि भाजपा का संगठन ‘मोदी-शाह’ की कठोर पकड़ से मुक्त होकर अधिक लोकतांत्रिक बने। वह चाहता है कि अगला भाजपा अध्यक्ष महज़ “रबर स्टैम्प” न होकर एक मज़बूत और स्वतंत्र नेता हो। यही कारण है कि संगठन में उत्तराधिकार की लड़ाई महज़ शाह और योगी तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें संघ का भी महत्वपूर्ण दखल रहेगा।
संघ यदि चाहे तो किसी और नेता को भी आगे ला सकता है। लेकिन मोदी के इस सार्वजनिक संदेश ने स्थिति को और जटिल बना दिया है। अब संघ और भाजपा के बीच नए समीकरण गढ़ने होंगे।
भाजपा सांसदों की प्रतिक्रिया?एक भाजपा सांसद ने मीडिया को बयान देते हुए कहा कि “मोदीजी ने यह संकेत दिया कि अमित भाई को अभी लंबा रास्ता तय करना है। यह पार्टी सांसदों के लिए एक संदेश हो सकता है कि शाह उनके उत्तराधिकारी बनने के योग्य हैं।”
दूसरे सांसद ने यह भी कहा कि “प्रधानमंत्री का बयान किसी एक नेता के लिए नहीं, बल्कि पूरे संगठन के लिए सामूहिक संदेश है।”
यहाँ से यह साफ झलकता है कि पार्टी के भीतर भी इस बयान को लेकर दो तरह की व्याख्या हो रही है। लेकिन चर्चा के केंद्र में अमित शाह का नाम ही है।
निशिकांत दुबे का बयान और योगी की मुश्किलें?कुछ समय पहले भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने भी इशारा किया था कि प्रधानमंत्री पद की दौड़ में अमित शाह सबसे मज़बूत दावेदार हैं। इस बयान ने भी योगी खेमे को असहज कर दिया था। उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में अब यह चर्चा तेज़ है कि योगी को जानबूझकर ‘राज्य स्तर’ की राजनीति तक सीमित करने की रणनीति बनाई जा रही है।
विपक्ष की नज़र से?विपक्ष इस पूरे घटनाक्रम को भाजपा की अंदरूनी राजनीति और उत्तराधिकार संकट के रूप में देख रहा है। कांग्रेस, सपा और अन्य दल पहले ही आरोप लगाते रहे हैं कि मोदी-शाह ने पार्टी को “एक व्यक्ति, एक सोच” में बदल दिया है। अब यदि मोदी खुले तौर पर शाह की ओर इशारा करते हैं, तो विपक्ष इसे वंशवाद की नई परिभाषा कहकर हमला कर सकता है।
क्या मोदी ने तय कर लिया उत्तराधिकारी?सवाल यही है। मोदी का यह बयान महज़ औपचारिक था या वास्तव में उन्होंने अमित शाह को उत्तराधिकारी के रूप में प्रस्तुत किया?
यदि संकेतों को जोड़ा जाए—
- संसद में जिम्मेदारी सौंपना
- सार्वजनिक प्रशंसा
- “बस शुरुआत है” वाला वाक्य
- शाह की आयु और संगठनात्मक पकड़
तो यह साफ होता है कि मोदी ने एक तरह से पार्टी को संदेश दे दिया है। लेकिन भाजपा जैसी कैडर आधारित पार्टी में अंतिम निर्णय कई कारकों पर निर्भर करेगा—संगठन का मूड, आरएसएस की राय, जनता की स्वीकार्यता और भविष्य की राजनीतिक परिस्थितियाँ।
सियासी भूचाल अभी बाकी है?मोदी का बयान निश्चय ही राजनीतिक भूचाल ला चुका है। अमित शाह की छवि एक रणनीतिकार से अब संभावित प्रधानमंत्री के रूप में देखी जाने लगी है। योगी आदित्यनाथ सहित अन्य दावेदारों की स्थिति कठिन हो गई है। आरएसएस और भाजपा के अंदर नए समीकरण बन रहे हैं।
लेकिन यह भी सच है कि राजनीति में अंतिम क्षण तक कुछ भी तय नहीं माना जा सकता। मोदी के बाद भाजपा का चेहरा कौन होगा—यह प्रश्न अभी अनुत्तरित है। परंतु इतना तय है कि अमित शाह इस दौड़ में सबसे आगे निकल चुके हैं और मोदी का हालिया बयान उनके पक्ष में निर्णायक साबित हो सकता है।

