मोस्टामानू महोत्सव : आस्था, परंपरा और आध्यात्मिक चेतना का संगम

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मोस्टामानू महोत्सव : आस्था, परंपरा और आध्यात्मिक चेतना का संगम

उत्तराखंड की धरती पर उत्सव केवल मेलों और आयोजनों तक सीमित नहीं होते, बल्कि वे जीवन की आध्यात्मिक गहराई और सामाजिक सामंजस्य के प्रतीक भी हैं। पिथौरागढ़ के मोस्टामानू महोत्सव में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का वर्चुअल संबोधन इसी आध्यात्मिक विरासत को रेखांकित करता है। उन्होंने सही कहा कि यह आयोजन केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि हमारे ग्रामीण जीवन, कृषि, पशुपालन और सामूहिक सांस्कृतिक चेतना का अभिन्न हिस्सा है।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)

मोस्टा देवता, जिन्हें वर्षा का देवता माना जाता है, प्रकृति और मानव के अटूट रिश्ते का स्मरण कराते हैं। जब ग्रामीण उनकी पालकी निकालकर आशीर्वाद लेते हैं, तो यह केवल पूजा का अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धा का उत्सव होता है। पर्वतीय समाज के लिए वर्षा जीवनदायिनी शक्ति है—खेती-बाड़ी, पशुपालन और संपूर्ण आजीविका इसी पर निर्भर करती है। इस प्रकार मोस्टामानू महोत्सव हमें यह शिक्षा देता है कि विकास की दौड़ में भी हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखना होगा।

मुख्यमंत्री ने पिथौरागढ़ के लिए जो घोषणाएँ कीं—विशेषकर भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में ट्रीटमेंट कार्य—वे केवल भौतिक विकास की दिशा में कदम नहीं, बल्कि जीवन और पर्यावरण की रक्षा का प्रयास भी हैं। जब राज्य सरकार धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों को संरक्षण देते हुए आधुनिक विकास की योजनाएँ जोड़ती है, तब एक संतुलित दृष्टि सामने आती है।

आज के युग में जब लोग अपनी जड़ों से कटते जा रहे हैं, तब ऐसे महोत्सव हमारी पहचान को बचाने का कार्य कर रहे हैं। यह मेला हमें याद दिलाता है कि हमारी परंपराएँ केवल अतीत का बोझ नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य के लिए प्रकाशस्तंभ हैं। यहाँ की सामूहिक भागीदारी—ग्रामवासी, जनप्रतिनिधि, प्रशासन और श्रद्धालु—यह प्रमाणित करती है कि आस्था और समाज साथ मिलकर ही शक्ति बनते हैं।

मोस्टामानू महोत्सव के अवसर पर की गई प्रार्थना—प्रदेशवासियों के सुख, समृद्धि और उन्नति के लिए—केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक संदेश है कि जब तक हम सामूहिक भलाई की भावना से प्रेरित रहेंगे, तब तक उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर अमर रहेगी।

यह मेला हमें यह सिखाता है कि पर्वतों के बीच बसा यह छोटा सा भू-भाग केवल भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि आध्यात्मिक चेतना का जीवित केंद्र है।



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