नरक चतुर्दशी भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है. इसे हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. यह दिवाली का दूसरा दिन होता है, जो धनतेरस के बाद आता है.

Spread the love

यह दिन भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है. इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले स्नान कर शुभ मुहूर्त में पूजा-पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है. कहा जाता है कि ऐसा करने से भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद सदैव घर पर बना रहता है.लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस पावन त्योहार का नाम नरक चतुर्दशी क्यों पड़ा?हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति अपने जीवन में अधिक पाप करता है, उसे मृत्यु के बाद अपने बुरे कर्मों की सजा भोगने के लिए नरक भेजा जाता है. ऐसे में सवाल उठता है कि इस पर्व को यह नाम क्यों दिया गया और इसकी शुरुआत कैसे हुई? यदि आपके मन में भी कभी ऐसे सवाल आए हैं, तो आप बिल्कुल सही जगह पर हैं. आइए जानते हैं इन सभी प्रश्नों के उत्तर विस्तार से और आसान शब्दों में.

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

नरक चतुर्दशी क्यों मनाई जाती है?( How Narak Chaturdashi Started and Why It Is Celebrated)

शास्त्रों के अनुसार, प्राचीन काल में भौमासुर नाम का एक राक्षस था, जिसे नरकासुर नाम से भी जाना जाता था. नरकासुर अत्यंत क्रूर और शक्तिशाली राक्षस था. उसकी माता ने उसे वरदान दिया था कि वह अजेय रहेगा और उसकी मृत्यु केवल एक स्त्री के हाथों ही हो सकती है. इसके अलावा, उसे भगवान ब्रह्मा से यह वरदान भी प्राप्त था कि न तो कोई देवता और न ही कोई मनुष्य उसे मार सकता है.

इन वरदानों के कारण उसका अहंकार अत्यधिक बढ़ गया और उसने तीनों लोकों में उत्पात मचाना शुरू कर दिया. उसने देवताओं, साधु-संतों और आम लोगों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया. इतना ही नहीं, उसने 16,100 कन्याओं को बंदी बनाकर कैदखाने में डाल दिया.

इन सब अत्याचारों से परेशान होकर देवराज इंद्र भगवान श्रीकृष्ण से मिलने द्वारका पहुंचे और उन्होंने सारी बातें बताईं. उन्होंने कहा कि नरकासुर ने वरुण का छत्र, अदिति के कुंडल और देवताओं की मणि छीन ली है, साथ ही अनेक कन्याओं को बंदी बना लिया है. इंद्र ने भगवान श्रीकृष्ण से नरकासुर को दंड देने की प्रार्थना की.

भगवान श्रीकृष्ण जानते थे कि नरकासुर का वध केवल एक स्त्री के हाथों ही संभव है. इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी सत्यभामा से सहायता मांगी, जो कि एक कुशल योद्धा और धनुर्धारी थीं. इसके बाद श्रीकृष्ण और सत्यभामा गरुड़ पर सवार होकर प्रागज्योतिषपुर पहुंचे. वहाँ पहुंचकर उन्होंने पहले मुर नामक दैत्य और उसके छह पुत्र- ताम्र, अंतरिक्ष, श्रवण, विभावसु, नभश्वान और अरुण का संहार किया.

जब भौमासुर को यह ज्ञात हुआ, तो वह क्रोध में अपनी सेना लेकर युद्ध के लिए निकला. युद्ध के दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने सत्यभामा को अपना सारथी बनाया. लंबे और भीषण युद्ध के बाद, सत्यभामा ने भौमासुर (नरकासुर) का वध किया.

इस पर्व का नाम नरक चतुर्दशी क्यों पड़ा? (Know why this festival called Narak Chaturdashi)

संयोग से जिस दिन सत्यभामा की सहायता से भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का अंत किया, वह दिन कार्तिक मास की चतुर्दशी तिथि थी. इसलिए “नरकासुर” के नाम के पहले भाग ‘नरक’ और तिथि ‘चतुर्दशी’ को मिलाकर इस पर्व का नाम नरक चतुर्दशी पड़ा और इस दिन को अधर्म पर धर्म की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाने लगा.

Narak Chaturdashi 2025: इस साल कब है नरक चतुर्दशी? जानें पूजा की सही तिथि, शुभ मुहूर्त, भोग और महत्व


Spread the love