
रुद्रपुर,आज हम आपके सामने लेकर आए हैं एक ऐसा मामला, जो रुद्रपुर ही नहीं बल्कि पूरे उत्तराखंड के प्रशासन और राजनीति के चेहरे को बेनकाब करता है। यह मामला है – शैलजा फार्म की 10 एकड़ नजूल भूमि का, जो पिछले 20 सालों से सत्ता, रसूख और भ्रष्टाचार के बीच बंटती रही।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी
2006 में जिलाधिकारी ने इस भूमि पर स्पष्ट रोक लगा दी थी। आदेश था – न कोई रजिस्ट्री होगी, न नामांतरण, न निर्माण। लेकिन, सवाल यह है कि रोक के बावजूद 2009 से 2021 तक 57 रजिस्ट्रियां कैसे हो गईं? और यह भी कि नगर निगम और प्रशासन ने आंखें क्यों मूंद लीं?
आज हम इस पूरे प्रकरण को आपके सामने रखेंगे – दस्तावेज़ों, आदेशों, नोटिसों और रजिस्ट्रियों के आधार पर। ताकि आप खुद तय कर सकें कि यह महज़ ज़मीन का विवाद है या जनता की संपत्ति पर सत्ता और भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा खेल।
2006: विवाद की शुरुआत
12 सितम्बर 2006… जिलाधिकारी उधमसिंह नगर का आदेश –
“शैलजा फार्म की 10 एकड़ भूमि विवादित है। इसका क्रय-विक्रय, नामांतरण और मानचित्र स्वीकृति पूर्णतः वर्जित है।”
इसके बाद, 28 सितम्बर को राम सिंह नामक नक्शानवीस और अन्य पर FIR दर्ज होती है। आरोप – “भूमि को कृषि से आवासीय दिखाकर, कूट रचना कर शासन को गुमराह करना और निजी लाभ दिलाना।”
यानी शुरुआत से ही साफ था कि खेल बड़ा है और खिलाड़ी ताकतवर।
रोक के बावजूद रजिस्ट्रियां
2006 में रोक लग गई, लेकिन 2009 आते-आते जादू शुरू हो गया।
दीपक चौहान नाम का एक शख्स, जो न तो कोई अधिकारी था और न ही उसके पास कोई अधिकार, उसने 2009 से 2021 तक 57 रजिस्ट्रियां कर दीं।
सवाल यह है कि –
जब DM ने रोक लगा दी थी, तो ये रजिस्ट्रियां कैसे हुईं?
कौन लोग थे जो इन कागजों को पास करवा रहे थे?
और क्यों आज तक इनमें से किसी भी रजिस्ट्री का दाखिल-खारिज राजस्व अभिलेखों में नहीं हुआ?
निगम की भूमिका
2013 में मुख्य नगर अधिकारी निधि यादव ने पत्र जारी किया। आदेश था –
“शैलजा फार्म पर यदि कोई निर्माण होता है तो जिम्मेदार होंगे – राम सिंह और बी.सी. रिखाड़ी।”
लेकिन नतीजा?
निर्माण रुके नहीं, बल्कि और तेज हो गए। मंदिर की आड़ में पक्के भवन खड़े कर दिए गए।
नगर निगम ने अन्य जगहों पर अतिक्रमण हटाया, लेकिन शैलजा फार्म पर चुप्पी साध ली।
यह वही निगम है जिसने 24 अप्रैल 2021 को अतिक्रमण हटाने का नोटिस दिया, लेकिन कार्रवाई सिर्फ कागज़ पर रही।
नेताओं और रसूखदारों का खेल
अब आते हैं सबसे बड़े सवाल पर – लाभ किसे मिला?
सूत्र बताते हैं कि इस खेल में सत्ता पक्ष के नेता, उनके परिजन, बड़े ठेकेदार और कुछ सरकारी अफसर सीधे-सीधे शामिल हैं।
कई रजिस्ट्रियां तो एक ही परिवार के नाम पर हैं – नेता, उनकी पत्नी और उनके पिता के नाम।
यानी मामला महज़ प्रशासनिक लापरवाही का नहीं, बल्कि एक सुनियोजित बंदरबांट का है।
FIR और जांच का क्या हुआ?
2006 में मुकदमा दर्ज हुआ था।
राम सिंह पर आरोप लगे थे – गलत रिपोर्ट, कूट रचना और शासन को गुमराह करने के।
लेकिन आज 19 साल बाद, न मुकदमे का अता-पता है, न कोई सजा, न कोई कार्रवाई।
क्यों?
क्योंकि सेटिंग-गेटिंग इतनी मजबूत है कि सरकार चाहे कांग्रेस की हो या बीजेपी की, दोनों ही दौर में यह मामला दबा दिया गया।
मीडिया और जनदबाव
2021 के बाद मीडिया ने मामले को उठाना शुरू किया।
कुछ स्वतंत्र पत्रकारों ने खुलासे किए।
नगर निगम ने डिजिटल मैपिंग करवाई, लेकिन रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं की गई।
यानी सरकार चाहती तो है कि जनता को पता न चले कि असली खेल क्या है।
– 2025 का खुलासा
इस साल यानी 2025 में मामला फिर से सुर्खियों में है।
खुलासा हुआ – रोक के बावजूद 57 रजिस्ट्रियां।
खुलासा हुआ – नेताओं और रसूखदारों के नाम।
खुलासा हुआ – निगम और नजूल विभाग की मिलीभगत।
अब समाजसेवी और वकील इस मामले को नैनीताल हाईकोर्ट ले जाने की तैयारी कर रहे हैं।
यानी आने वाले समय में यह घोटाला बड़े स्तर पर उभर सकता है।
कानूनी पहलू
सवाल सीधा है –
जब DM ने रोक लगा दी थी, तो रजिस्ट्री करना अवैध है।
जब FIR दर्ज हुई थी, तो जांच न होना भ्रष्टाचार है।
जब नोटिस दिए गए थे, तो कार्रवाई न करना मिलीभगत है।
इसलिए यह मामला केवल प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि आपराधिक साजिश है।
जनता की संपत्ति या निजी जायदाद?
नजूल भूमि सरकार की नहीं, जनता की संपत्ति होती है।
लेकिन यहां जनता की जमीन पर नेताओं और अफसरों ने मिलकर कब्जा कर लिया।
गरीबों को तो एक इंच जमीन भी नहीं मिली, लेकिन रसूखदारों ने पूरे-पूरे भूखंड हथिया लिए।
यह सवाल हर रुद्रपुरवासी का है –
क्या हमारी जमीन पर कब्ज़ा करने वालों को कभी सज़ा मिलेगी?
क्या निगम और प्रशासन कभी जिम्मेदार ठहराए जाएंगे?
और सवाल
शैलजा फार्म की यह कहानी सिर्फ 10 एकड़ जमीन की नहीं है। यह कहानी है –
भ्रष्टाचार की,
सत्ता और प्रशासन की मिलीभगत की,
और जनता की संपत्ति को निजी तिजोरी में बदलने की।
आज सवाल हम सबको मिलकर उठाना होगा –
आखिर 57 रजिस्ट्रियां किसके इशारे पर हुईं?
DM के आदेशों को क्यों रद्दी की टोकरी में डाला गया?
FIR दर्ज होने के बावजूद आरोपियों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
और क्या नए मना, आईएएस विशाल मिश्रा, इस मामले को गंभीरता से लेंगे या फिर चुप्पी साध लेंगे।
शैलजा फार्म सिर्फ रुद्रपुर की समस्या नहीं, यह पूरे उत्तराखंड की व्यवस्था पर सवाल है।
अगर जनता की जमीन, जनता का हक़ और कानून का आदेश ही सत्ता के दबाव में बिक सकता है, तो फिर लोकतंत्र का मतलब क्या रह जाता है?
आज हम सबको मिलकर यह सवाल उठाना होगा –
“क्या उत्तराखंड में जनता की ज़मीन सुरक्षित है, या फिर हर शैलजा फार्म किसी न किसी रसूखदार के कब्ज़े में जाएगी?”
शैलजा फार्म की नजूल भूमि – भ्रष्टाचार का किला या जनता की धरोहर?”आज हम आपके सामने लेकर आए हैं एक ऐसा मामला, जो रुद्रपुर ही नहीं बल्कि पूरे उत्तराखंड के प्रशासन और राजनीति के चेहरे को बेनकाब करता है। यह मामला है – शैलजा फार्म की 10 एकड़ नजूल भूमि का, जो पिछले 20 सालों से सत्ता, रसूख और भ्रष्टाचार के बीच बंटती रही।
2006 में जिलाधिकारी ने इस भूमि पर स्पष्ट रोक लगा दी थी। आदेश था – न कोई रजिस्ट्री होगी, न नामांतरण, न निर्माण। लेकिन, सवाल यह है कि रोक के बावजूद 2009 से 2021 तक 57 रजिस्ट्रियां कैसे हो गईं? और यह भी कि नगर निगम और प्रशासन ने आंखें क्यों मूंद लीं?
आज हम इस पूरे प्रकरण को आपके सामने रखेंगे – दस्तावेज़ों, आदेशों, नोटिसों और रजिस्ट्रियों के आधार पर। ताकि आप खुद तय कर सकें कि यह महज़ ज़मीन का विवाद है या जनता की संपत्ति पर सत्ता और भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा खेल।
2006: विवाद की शुरुआत
12 सितम्बर 2006… जिलाधिकारी उधमसिंह नगर का आदेश –
“शैलजा फार्म की 10 एकड़ भूमि विवादित है। इसका क्रय-विक्रय, नामांतरण और मानचित्र स्वीकृति पूर्णतः वर्जित है।”
इसके बाद, 28 सितम्बर को राम सिंह नामक नक्शानवीस और अन्य पर FIR दर्ज होती है। आरोप – “भूमि को कृषि से आवासीय दिखाकर, कूट रचना कर शासन को गुमराह करना और निजी लाभ दिलाना।”
यानी शुरुआत से ही साफ था कि खेल बड़ा है और खिलाड़ी ताकतवर।
रोक के बावजूद रजिस्ट्रियां
2006 में रोक लग गई, लेकिन 2009 आते-आते जादू शुरू हो गया।
दीपक चौहान नाम का एक शख्स, जो न तो कोई अधिकारी था और न ही उसके पास कोई अधिकार, उसने 2009 से 2021 तक 57 रजिस्ट्रियां कर दीं।
सवाल यह है कि –
जब DM ने रोक लगा दी थी, तो ये रजिस्ट्रियां कैसे हुईं?
कौन लोग थे जो इन कागजों को पास करवा रहे थे?
और क्यों आज तक इनमें से किसी भी रजिस्ट्री का दाखिल-खारिज राजस्व अभिलेखों में नहीं हुआ?
निगम की भूमिका
2013 में मुख्य नगर अधिकारी निधि यादव ने पत्र जारी किया। आदेश था –
“शैलजा फार्म पर यदि कोई निर्माण होता है तो जिम्मेदार होंगे – राम सिंह और बी.सी. रिखाड़ी।”
लेकिन नतीजा?
निर्माण रुके नहीं, बल्कि और तेज हो गए। मंदिर की आड़ में पक्के भवन खड़े कर दिए गए।
नगर निगम ने अन्य जगहों पर अतिक्रमण हटाया, लेकिन शैलजा फार्म पर चुप्पी साध ली।
यह वही निगम है जिसने 24 अप्रैल 2021 को अतिक्रमण हटाने का नोटिस दिया, लेकिन कार्रवाई सिर्फ कागज़ पर रही।
नेताओं और रसूखदारों का खेल
अब आते हैं सबसे बड़े सवाल पर – लाभ किसे मिला?
सूत्र बताते हैं कि इस खेल में सत्ता पक्ष के नेता, उनके परिजन, बड़े ठेकेदार और कुछ सरकारी अफसर सीधे-सीधे शामिल हैं।
कई रजिस्ट्रियां तो एक ही परिवार के नाम पर हैं – नेता, उनकी पत्नी और उनके पिता के नाम।
यानी मामला महज़ प्रशासनिक लापरवाही का नहीं, बल्कि एक सुनियोजित बंदरबांट का है।
FIR और जांच का क्या हुआ?
2006 में मुकदमा दर्ज हुआ था।
राम सिंह पर आरोप लगे थे – गलत रिपोर्ट, कूट रचना और शासन को गुमराह करने के।
लेकिन आज 19 साल बाद, न मुकदमे का अता-पता है, न कोई सजा, न कोई कार्रवाई।
क्यों?
क्योंकि सेटिंग-गेटिंग इतनी मजबूत है कि सरकार चाहे कांग्रेस की हो या बीजेपी की, दोनों ही दौर में यह मामला दबा दिया गया।
मीडिया और जनदबाव
2021 के बाद मीडिया ने मामले को उठाना शुरू किया।
पर्वतजन और कुछ स्वतंत्र पत्रकारों ने खुलासे किए।
नगर निगम ने डिजिटल मैपिंग करवाई, लेकिन रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं की गई।
यानी सरकार चाहती तो है कि जनता को पता न चले कि असली खेल क्या है।
– 2025 का खुलासा
इस साल यानी 2025 में मामला फिर से सुर्खियों में है।
खुलासा हुआ – रोक के बावजूद 57 रजिस्ट्रियां।
खुलासा हुआ – नेताओं और रसूखदारों के नाम।
खुलासा हुआ – निगम और नजूल विभाग की मिलीभगत।
अब समाजसेवी और वकील इस मामले को नैनीताल हाईकोर्ट ले जाने की तैयारी कर रहे हैं।
यानी आने वाले समय में यह घोटाला बड़े स्तर पर उभर सकता है।
कानूनी पहलू
सवाल सीधा है –
जब DM ने रोक लगा दी थी, तो रजिस्ट्री करना अवैध है।
जब FIR दर्ज हुई थी, तो जांच न होना भ्रष्टाचार है।
जब नोटिस दिए गए थे, तो कार्रवाई न करना मिलीभगत है।
इसलिए यह मामला केवल प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि आपराधिक साजिश है।
जनता की संपत्ति या निजी जायदाद?
नजूल भूमि सरकार की नहीं, जनता की संपत्ति होती है।
लेकिन यहां जनता की जमीन पर नेताओं और अफसरों ने मिलकर कब्जा कर लिया।
गरीबों को तो एक इंच जमीन भी नहीं मिली, लेकिन रसूखदारों ने पूरे-पूरे भूखंड हथिया लिए।
यह सवाल हर रुद्रपुरवासी का है –
क्या हमारी जमीन पर कब्ज़ा करने वालों को कभी सज़ा मिलेगी?
क्या निगम और प्रशासन कभी जिम्मेदार ठहराए जाएंगे?
और सवाल
शैलजा फार्म की यह कहानी सिर्फ 10 एकड़ जमीन की नहीं है। यह कहानी है –
भ्रष्टाचार की,
सत्ता और प्रशासन की मिलीभगत की,
और जनता की संपत्ति को निजी तिजोरी में बदलने की।
आज सवाल हम सबको मिलकर उठाना होगा –
आखिर 57 रजिस्ट्रियां किसके इशारे पर हुईं?
DM के आदेशों को क्यों रद्दी की टोकरी में डाला गया?
FIR दर्ज होने के बावजूद आरोपियों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
और क्या नए मना, आईएएस विशाल मिश्रा, इस मामले को गंभीरता से लेंगे या फिर चुप्पी साध लेंगे।
शैलजा फार्म सिर्फ रुद्रपुर की समस्या नहीं, यह पूरे उत्तराखंड की व्यवस्था पर सवाल है।
अगर जनता की जमीन, जनता का हक़ और कानून का आदेश ही सत्ता के दबाव में बिक सकता है, तो फिर लोकतंत्र का मतलब क्या रह जाता है?
आज हम सबको मिलकर यह सवाल उठाना होगा –
“क्या उत्तराखंड में जनता की ज़मीन सुरक्षित है, या फिर हर शैलजा फार्म किसी न किसी रसूखदार के कब्ज़े में जाएगी?”


