
सदियों से महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ी है-फिर चाहे वो अंतरिक्ष की ऊंचाइयां हो या समाज में बदलाव लाने की जमीनी लड़ाई। महिला दिवस सिर्फ बधाइयों तक सीमित नहीं, बल्कि उन प्रयासों को तेज करने का आह्वान है, जो महिलाओं को उनके अधिकार, सम्मान और अवसर दिलाने में मदद करें।


प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)
2025 की थीम “Accelerate Action” इस संदेश को और मजबूत बनाती है कि अब समय केवल सोचने का नहीं, बल्कि तेजी से बदलाव लाने का है।
2025 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की थीम
इस साल अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2025 की थीम “Accelerate Action” रखी गई है। इसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं को समानता दिलाने की प्रक्रिया को तेज करना है। ये थीम सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में महिलाओं को आने वाली चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करती है और ठोस कदम उठाने पर जोर देती है। इसका मतलब है कि केवल चर्चा करने के बजाय अब महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है। इसके तहत उन नीतियों और योजनाओं को लागू करने की आवश्यकता है, जो महिलाओं को शिक्षा, रोजगार और निर्णय लेने की शक्ति प्रदान कर सकें।
8 मार्च को ही क्यों मनाया जाता है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस?
8 मार्च को महिला दिवस मनाने की परंपरा 1917 में रूस की महिलाओं द्वारा किए गए प्रदर्शन से जुड़ी है। उस समय रूस में जूलियन कैलेंडर प्रचलित था, जिसके अनुसार फरवरी का अंतिम रविवार 23 फरवरी को पड़ा, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से 8 मार्च था। महिलाओं ने ‘ब्रेड और पीस’ (रोटी और शांति) की मांग करते हुए प्रदर्शन किया, जिसने रूसी क्रांति की नींव रखी। इस आंदोलन के बाद जार शासन समाप्त हुआ और महिलाओं को मतदान का अधिकार मिला। इस ऐतिहासिक घटना के कारण 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में चुना गया।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास
महिला दिवस का इतिहास 20वीं सदी की शुरुआत से जुड़ा है, जब अमेरिका और यूरोप में महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाई।
1908: न्यूयॉर्क में लगभग 15,000 महिलाओं ने काम के बेहतर हालात और मतदान के अधिकार की मांग को लेकर प्रदर्शन किया।
1909: अमेरिका की सोशलिस्ट पार्टी ने पहली बार 28 फरवरी को राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया।
1910: कोपेनहेगन में आयोजित सोशलिस्ट इंटरनेशनल सम्मेलन में जर्मन नेता क्लारा जेटकिन ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का प्रस्ताव दिया।
1911: पहली बार ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में 19 मार्च को महिला दिवस मनाया गया।
1975: संयुक्त राष्ट्र (UN) ने इसे अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में आधिकारिक मान्यता दी।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का महत्व
महिला दिवस केवल महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह लैंगिक समानता और महिला अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने का भी जरिया है।
यह दिन महिला सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है।
घरेलू हिंसा, कार्यस्थल पर भेदभाव और असमानता के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित करता है।
समाज में महिलाओं की भागीदारी और निर्णय लेने की क्षमता को मजबूत करने की दिशा में काम करता है।
