गोवर्धन पूजा के दिन गोवर्धन पर्वत के रूप में श्रीकृष्ण की ही पूजा की जाती है. गोवर्धन पर्वत को गिरिराज जी का स्वरूप बताया गया है और दोनों ही एक-दूसरे का नाम धारण करते हैं. एक प्राचीन लोक मान्यता है कि गोवर्धन पूर्व जन्म में श्रीकृष्ण के ही भक्त थे और गोलोक धाम से आए थे.

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कहीं-कहीं उनकी कथा का जुड़ाव रामकथा से भी मिलता है.

रामकथा से जुड़ते हैं गोवर्धन के तार
एक लोककथा में ऐसा जिक्र आता है कि गोवर्धन पर्वत त्रेतायुग की शुरुआत से ही भगवान का भक्त था. वह हिमालय की एक पर्वत श्रेणी में भगवान की अखंड-अविचल तपस्या में लीन था और इस इंतजार में था कि किसी दिन भगवान के काम आ सकूंगा.
फिर प्रभु ने रावण के अत्याचार का अंत करने के लिए श्रीराम रूप में अवतार लिया. फिर एक समय आया कि सागर पार करने के लिए पुल बांधना था. तब हनुमान जी समेत कई वानर जो उड़ सकते थे वह पत्थरों के बड़ेृ-बड़े टुकड़े ला रहे थे.

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

हनुमान जी मथुरा लाए थे गोवर्धन पर्वत
इसी क्रम में हनुमान जी हिमालय की पर्वत माला से गोवर्धन पर्वत को भी उठाकर लाने लगे, तब गोवर्धन पर्वत ने उनसे कहा कि हनुमान मुझे यहां से न ले चलो, मैं भगवान की तपस्या में लीन हूं और इंतजार कर रहा हूं कि वह मुझे दर्शन देने आएंगे. तब हनुमान जी ने कहा- आपकी तपस्या सफल हुई है, मैं आपको भगवान के दर्शन के लिए ही ले चल रहा हूं. ऐसा कहकर उन्होंने सागर पर पुल बांधने की पूरी बात बताई. गोवर्धन पर्वत बहुत खुश हो गया और जल्दी से सागर तट पर पहुंचाने के लिए कहने लगा.

हनुमान जी ने दिया प्रभु मिलन का आश्वासन
अभी हनुमान जी गोवर्धन पर्वत को लेकर आकाश मार्ग में ही थे कि सागर पर पुल बनने का काम पूरा हो गया. तब आकाशवाणी हुई कि सागर पर पुल बन चुका है इसलिए और पत्थर न लाएं. इस बात को प्रभु इच्छा मानकर हनुमान जी गोवर्धन पर्वत को मथुरा की सीमा पर रखकर जाने लगे. तब गोवर्धन ने उनसे कहा कि आप तो मुझे प्रभु से मिलाने सागर तट पर ले जा रहे थे, लेकिन अभी तो सागर आया नहीं, तब हनुमान जी ने बताया कि पुल बनाया जा चुका है और पत्थरों की जरूरत नही है. यह सुनकर गोवर्धन पर्वत बहुत उदास हो गया.

श्रीराम ने दिया था वरदान
तब हनुमान जी ने उसकी निराशा देखकर कर कहा- चिंता मत करो, तुम्हारी भक्ति भावना शुद्ध है. तुम प्रभु के लिए यहां तक आए हो और अब प्रभु खुद चलकर तुम तक आएंगे. कहते हैं कि हनुमानजी ने जब श्रीराम को यह बात बताई तब ही उन्होंने गोवर्धन पर्वत को मन ही मन वरदान दिया था कि मेरे अगले अवतार में मैं गोवर्धन पर्वत के ही नाम से जाना जाऊंगा. गोवर्धन मेरे बाल स्वरूप के लिए खेल का मैदान बनेगा. मेरी लीला में सहभागी होगा. मैं हर दिन उसके पास उससे मिलने जाऊंगा.

श्रीराम ने अपने इस वरदान का मान श्रीकृष्ण अवतार में रखा और गोवर्धन पर्वत के गिरिराज नाम से आज भी पहचाने जाते हैं. इसी वरदान के कारण श्रीकृष्ण की पूजा गोवर्धन स्वरूप में होती है.✧ धार्मिक और अध्यात्मिक


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