
उनकी उपासना से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है, जीवन में सफलता और मनोकामना की पूर्ति होती है. विधि-विधान से पूजा करने पर साधक को मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग भी सुलभ हो जाता है. चूंकि वे भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता हैं, इसलिए इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है.

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी
मां स्कंदमाता का स्वरूप
मां स्कंदमाता गोद में बाल स्कंद को धारण किए रहती हैं. वे सिंह पर विराजमान होती हैं और उनकी चार भुजाएं हैं.
माता कूष्मांडा की पूजा का महत्व
- सामान्यत: माता कूष्मांडा की पूजा नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है, किंतु इस बार तृतीया तिथि दो दिन होने के कारण पांचवें दिन भी मां कूष्मांडा की पूजा-अर्चना की जा रही है.
- माना जाता है कि मां कूष्मांडा की उपासना से जीवन में ऊर्जा, सृजन शक्ति और आयु का विस्तार होता है.
- उनकी कृपा से रोग और कष्ट दूर हो जाते हैं तथा हर कार्य सिद्ध होता है.
- देवी पुराण और दुर्गा सप्तशती में उल्लेख है कि जब सम्पूर्ण ब्रह्मांड अंधकारमय था, तब मां कूष्मांडा की मंद मुस्कान से सृष्टि की उत्पत्ति हुई. इसलिए वे सृष्टि की जननी और आदि स्वरूपिणी कहलाती हैं.
पूजा के शुभ मुहूर्त (27 सितंबर 2025)
- ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:36 से 5:24 तक
- प्रात:कालीन संध्या: सुबह 5:00 से 6:12 तक
- अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 11:48 से 12:36 तक
- संध्या पूजा मुहूर्त: शाम 6:30 से 7:42 तक
- इन मुहूर्तों में पूजा करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है.
मां स्कंदमाता का भोग
नवरात्रि के पांचवें दिन मां स्कंदमाता को उनका प्रिय केला भोग स्वरूप चढ़ाना चाहिए. इससे मां शीघ्र प्रसन्न होकर कृपा करती हैं.
शुभ रंग (Navratri Day 5 Lucky Color)
इस दिन मां स्कंदमाता की पूजा में पीला रंग अत्यंत शुभ माना गया है. भक्तों को देवी को पीले वस्त्र, चुनरी और आसन अर्पित करना चाहिए.✧ धार्मिक और अध्यात्मिक


