
6-7 मई की रात जब पूरा देश गहरी नींद में था, तब भारतीय सेना एक ऐसे ऐतिहासिक मिशन को अंजाम दे रही थी, जिसकी गर्जना आज दुनिया के हर कोने में सुनाई दे रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित ‘ऑपरेशन सिंदूर’ कोई साधारण सैन्य कार्रवाई नहीं थी, यह भारत की न्याय की अखंड प्रतिज्ञा का वह रूप था जिसे अब कोई अनदेखा नहीं कर सकता।भारत ने पहली बार सार्वजनिक रूप से इस स्तर पर पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर निर्णायक, सटीक और लक्षित प्रहार किए, और दुनिया ने देखा कि यह नया भारत अब शब्दों से नहीं, परिणामों से जवाब देता है।
zसंवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)
प्रफुल्ल बख्शी की प्रतिक्रिया: यह भाषण इतिहास में दर्ज होगा,पूर्व विंग कमांडर और रक्षा विशेषज्ञ प्रफुल्ल बख्शी का बयान न केवल विशेषज्ञ दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि मोदी का नेतृत्व सैन्य रणनीति और राष्ट्रीय नीति दोनों में एक नई चेतना लेकर आया है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा—“हमने ऐसी बातें पहले कभी नहीं सुनीं। प्रधानमंत्री ने भारत के दृष्टिकोण को स्पष्टता से दुनिया के सामने रखा है।”
यह भाषण भारत की सैद्धांतिक विदेश नीति का निचोड़ था, जिसने यह स्पष्ट कर दिया कि अब भारत पानी और खून को एक साथ बहने नहीं देगा। सिंधु जल समझौते को निलंबित कर, पीएम मोदी ने दशकों की एकतरफा सहनशीलता को पीछे छोड़ दिया और दुनिया को दिखाया कि अब हम अपनी शर्तों पर जीने वाले राष्ट्र हैं।
सिंदूर ऑपरेशन: राष्ट्रीय एकता का प्रतीक,प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में कहा—जब देश एकजुट होता है, राष्ट्र सर्वोपरि होता है, तब फौलादी फैसले लिए जाते हैं और परिणाम लाए जाते हैं।”यह बयान केवल शब्द नहीं था, यह वह भावना थी जिसने सेना को ताकत दी, राष्ट्र को एकजुट किया और पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग कर दिया। भारत ने पहली बार सैन्य कार्रवाई को खुलकर स्वीकारा, और इस पारदर्शिता ने विश्व मंच पर भारत की प्रतिष्ठा को और मज़बूत किया।
विपक्ष की भूमिका: क्या आलोचना ही राष्ट्रभक्ति है?जब राष्ट्र संकट में हो और सेना अपना सर्वस्व न्यौछावर कर रही हो, तब कुछ विपक्षी नेताओं द्वारा इस ऑपरेशन की “कमियां गिनाना” न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है बल्कि राष्ट्रीय चरित्र पर भी प्रश्नचिह्न है। वे कौन से लोग हैं, जो आतंकवाद पर करारा जवाब देने को भी चुनावी स्टंट बताते हैं?
क्या उनके लिए राजनीति, राष्ट्रहित से ऊपर हो चुकी है?क्या उन्हें यह दिख नहीं रहा कि भारत ने पहली बार ऐसे मिशन को अंजाम दिया जिसमें अमेरिका, फ्रांस, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे तमाम वैश्विक शक्तियाँ भारत के साथ खड़ी थीं? केवल तुर्की—जो खुद भी लोकतंत्र और आंतरिक स्थिरता के संकट से जूझ रहा है—पाकिस्तान के साथ खड़ा था।यह भविष्य की पीढ़ियों को यह बताने के लिए पर्याप्त है कि कौन सही था और कौन केवल राजनीतिक अस्तित्व के लिए झूठ का सहारा ले रहा था।
राष्ट्रीयता पर कटाक्ष करने वालों के लिए आईना,जो लोग ऑपरेशन सिंदूर की आलोचना कर रहे हैं, क्या वे बता सकते हैं कि किसके पक्ष में बोल रहे हैं? भारत के या उसके दुश्मनों के?
उनकी बातें सुनकर यह भ्रम नहीं रह जाता कि कहीं वे ‘राजनीतिक विरोध’ के नाम पर ‘राष्ट्रविरोध’ की राह तो नहीं पकड़ चुके हैं?क्या आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई भी अब राजनीति का शिकार होगी?राष्ट्र की अस्मिता पर हमला होने पर चुप रहने वाले, और जवाब मिलने पर प्रश्न उठाने वाले, दरअसल स्वयं सवाल बन चुके हैं।
नरेंद्र मोदी का नेतृत्व: निर्णायकता की नई परिभाषा!प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत पहली बार ऐसी भाषा बोल रहा है जिसे दुनिया समझती है—निर्णय, साहस और स्पष्टता। उनका यह कहना कि “न्यूक्लियर ब्लैकमेल अब नहीं चलेगा,” केवल पाकिस्तान के लिए नहीं, बल्कि उन सभी शक्तियों के लिए संदेश है जो भारत की सहनशीलता को कमजोरी समझते रहे हैं।हम आतंक की सरपरस्त सरकार और उसके आकाओं को अब अलग नहीं देखेंगे, यह बयान एक रणनीतिक नीति बदलाव का संकेत है। इससे यह स्पष्ट होता है कि भारत अब केवल घटनाओं की प्रतिक्रिया में नहीं, बल्कि उनकी जड़ तक जाकर उन्हें समाप्त करने की रणनीति पर काम करेगा।


सिंदूर से खींची गई एक लकीर ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की ओर से आतंक के विरुद्ध खींची गई एक मर्यादा रेखा खींच दी है—जो अब लांघी नहीं जा सकती। यह एक ऐसा क्षण है जिसे इतिहास लंबे समय तक याद रखेगा।जो लोग इस गर्व के क्षण में भी आलोचना के लिए मंच ढूंढ रहे हैं, उन्हें याद रखना चाहिए—जब राष्ट्र पर संकट हो, तब आलोचना नहीं, समर्थन इतिहास रचता है।
प्रधानमंत्री मोदी, भारतीय सेना और भारत की एकजुट जनता को इस सफल ऑपरेशन के लिए सलाम।

