
उत्तराखंड भाजपा की बागडोर दूसरी बार संभालने के बाद महेंद्र भट्ट के सामने पहली और सबसे बड़ी चुनौती त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के रूप में खड़ी है। ये चुनाव केवल ग्राम प्रधान, ग्राम पंचायत सदस्य और क्षेत्र पंचायत सदस्यों के आंकड़ों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इनसे भाजपा के संगठनात्मक कौशल, ग्रामीण मतदाताओं पर पकड़ और 2027 विधानसभा चुनाव के लिए जमीन तैयार होने या खिसकने का फैसला होना है।
संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट
भट्ट के पहले कार्यकाल की उपलब्धियों में 2024 का लोकसभा चुनाव और नगर निकाय चुनाव की बड़ी जीत शामिल है, जिसने भाजपा को प्रदेश में राजनीतिक बढ़त दिलाई। हरिद्वार जिले में हुए पिछले पंचायत चुनाव में भाजपा ने समर्थित प्रत्याशी उतारकर प्रयोग किया और अपेक्षित सफलता भी हासिल की। इसी प्रयोग को अब शेष 12 जिलों में आजमाने की तैयारी है।
लेकिन इस बार दांव कहीं बड़ा है।


ग्रामीण राजनीति की नई कसौटी
पंचायत चुनाव की 358 जिला पंचायत सदस्य सीटें तय करेंगी कि 12 जिलों में जिला पंचायत अध्यक्ष किस पार्टी का होगा। जिला पंचायत अध्यक्ष भले ही प्रत्यक्ष चुनाव से न चुनकर सदस्यों के वोट से तय होता हो, पर उसका असर राजनीतिक संदेश पर बेहद गहरा होता है। भाजपा जानती है कि जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर कब्जा संगठनात्मक ताकत और जनता की नब्ज पर पकड़ का प्रमाणपत्र माना जाएगा।
भाजपा ने इस चुनाव में ग्राम प्रधानों और क्षेत्र पंचायत सदस्यों के स्तर पर भी अपने प्रतिनिधियों की संख्या बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। इन दोनों पदों पर सफलता का मतलब है – भाजपा का संगठनात्मक विस्तार गांव की चौपालों तक।
यही वजह है कि कांग्रेस ने भी रणनीति बनाने में तेजी दिखाई है। नगर निकाय चुनाव में भले ही कांग्रेस को प्रदेश स्तर पर अपेक्षित सफलता न मिली हो, लेकिन ग्रामीण सीमा से लगे निकायों में उसका प्रदर्शन कहीं बेहतर था। कांग्रेस को उम्मीद है कि वही वोट-बेस पंचायत चुनाव में भी उसे फायदा देगा।
पंचायत चुनाव बनाम 2027 विधानसभा
राजनीतिक विश्लेषकों की नजर इस पर है कि भाजपा का पंचायत चुनाव में प्रदर्शन कैसा रहता है। क्योंकि पंचायत चुनाव के नतीजे केवल स्थानीय सत्ता का समीकरण नहीं बदलते, बल्कि राजनीतिक मनोविज्ञान पर भी असर डालते हैं।
- यदि भाजपा बड़ी जीत दर्ज करती है, तो इससे महेंद्र भट्ट का नेतृत्व मजबूत होगा और 2027 के लिए कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार होगा।
- यदि प्रदर्शन अपेक्षा से कमजोर रहा, तो कांग्रेस को यह कहने का मौका मिलेगा कि भाजपा के खिलाफ ग्रामीण इलाकों में नाराजगी बढ़ रही है।
भट्ट को इस बार दोहरी चुनौती का सामना करना है। एक तरफ कार्यकर्ताओं की बढ़ी हुई अपेक्षाएं हैं, तो दूसरी तरफ कांग्रेस की आक्रामकता।
भाजपा ने 12 जिलों के 59 विधानसभा क्षेत्रों में जिला पंचायत सदस्यों के दावेदारों के पैनल तैयार कर लिए हैं। इसका मतलब है कि पार्टी सोच-समझकर, गणित बिठाकर चुनावी बिसात बिछा रही है। लेकिन पंचायत चुनाव में जातीय समीकरण, स्थानीय मुद्दे और व्यक्तिगत प्रभाव अक्सर पार्टी रणनीति को मात दे देते हैं।
क्या ग्रामीण रुझान भाजपा के साथ है?
भाजपा ने अपने पहले कार्यकाल में सड़क, बिजली, पानी, राशन और स्वास्थ्य सेवाओं के मुद्दों पर काफी काम किया है। लेकिन राज्य में पलायन, बेरोजगारी और खेती-किसानी की समस्याएं आज भी जमीनी हकीकत हैं। कांग्रेस इन्हीं मुद्दों को उठाकर ग्रामीण मतदाताओं को साधना चाह रही है।
लोकसभा और नगर निकाय चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन जरूर दमदार रहा, लेकिन पंचायत चुनाव का गणित अलग होता है। लोग स्थानीय चेहरों को तरजीह देते हैं, चाहे वो किसी भी पार्टी का हो। खासकर ग्राम प्रधान और क्षेत्र पंचायत सदस्य जैसे पदों पर व्यक्तिगत छवि और व्यक्तिगत संबंध ज्यादा असर डालते हैं।
अभी तक जो रुझान आ रहे हैं, उनमें ग्रामीण मतदाता भाजपा की उपलब्धियों को तो सराहते हैं, पर महंगाई, बेरोजगारी और स्थानीय विकास की असमानता पर सवाल भी उठा रहे हैं। यही वजह है कि कांग्रेस को उम्मीद है कि वह ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकती है।
निष्कर्ष
महेंद्र भट्ट के लिए यह चुनाव केवल पंचायत की कुर्सियों का सवाल नहीं है। यह उनके नेतृत्व की दूसरी अग्निपरीक्षा है। भाजपा इस चुनाव को 2027 की तैयारियों के नजरिए से देख रही है। अगर भाजपा पंचायत चुनाव में प्रचंड जीत दर्ज करती है, तो यह साबित होगा कि पार्टी की जड़ें गांवों तक मजबूत हैं। पर अगर नतीजे उम्मीद से कमजोर रहे, तो यह संदेश जाएगा कि ग्रामीण जनता और भाजपा के बीच दूरी बढ़ रही है।
यही वजह है कि सबकी नजरें महेंद्र भट्ट और उनके संगठनात्मक कौशल पर टिकी हैं। यह पंचायत चुनाव तय करेगा कि भाजपा प्रदेश में “सत्ता में वापसी” की राह पर कितनी मजबूती से आगे बढ़ती है।

