चौखुटिया अस्पताल में नियुक्त डॉक्टरों के आदेश पर राजनीति का खेल — आर.टी.आई. एक्टिविस्ट संजय पांडे और चंद्रशेखर जोशी का बड़ा खुलासा

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रिपोर्ट — अवतार सिंह बिष्ट, रुद्रपुर

राजनीति भी क्या विचित्र खेल है — कभी मुद्दों को जन्म देती है और कभी सच को छिपा देती है। चौखुटिया के उपजिला अस्पताल में डॉक्टरों की तैनाती को लेकर जहां राजनीतिक दलों ने जमकर शोर मचाया, वहीं आर.टी.आई. कार्यकर्ताओं के खुलासे ने इस हंगामे की पूरी सच्चाई सामने रख दी है।

विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, उत्तराखंड शासन ने 16 अक्टूबर 2025 को ही चौखुटिया अस्पताल के लिए डॉक्टरों की नियुक्ति के आदेश जारी कर दिए थे, परंतु यह आदेश किसी रहस्यमयी कारणवश जिला मुख्यालय तक नहीं पहुँच पाए। अब सवाल यह उठता है — क्या यह महज प्रशासनिक लापरवाही थी, या इसके पीछे कोई सुनियोजित राजनीतिक चाल?

आर.टी.आई. एक्टिविस्टों का बड़ा खुलासा

इस पूरे मामले का खुलासा आर.टी.आई. कार्यकर्ता संजय पांडे और चंद्रशेखर जोशी ने किया है, जिन्होंने लंबे समय से स्वास्थ्य विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। इनका आरोप है कि ट्रांसफर-पोस्टिंग के नाम पर रिश्वतखोरी का गंदा खेल पिछले कई वर्षों से चल रहा है, और आज भी यह सिलसिला जारी है।

संजय पांडे का कहना है —

“सरकारी तंत्र में ट्रांसफर और पोस्टिंग अब एक ‘मंडी’ बन चुकी है। डॉक्टरों और कर्मचारियों से खुलेआम लाखों रुपये लेकर पसंदीदा जगहों पर तैनाती दी जा रही है। हमने कई दस्तावेजी प्रमाण विजिलेंस विभाग को सौंपे हैं ताकि यह काला धंधा बेनकाब हो सके।”

भ्रष्टाचार का रेट-कार्ड उजागर

आर.टी.आई. कार्यकर्ताओं द्वारा विजिलेंस को सौंपी गई शिकायत में विभागीय भ्रष्टाचार का पूरा “रेट-चार्ट” उजागर हुआ है —

  • चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी : ₹60,000 से ₹1 लाख तक
  • फार्मासिस्ट और नर्सिंग स्टाफ : ₹2 से ₹3 लाख तक
  • डॉक्टरों की नियुक्ति : ₹5 से ₹7 लाख तक
  • मनपसंद जगह या पूर्व पद पर बने रहने के लिए : ₹8 से ₹10 लाख तक

संजय पांडे और जोशी के अनुसार, जिनके “ऊँचे संपर्क” हैं, उनके लिए रकम कुछ कम जरूर रखी जाती है, परंतु बिना पैसे कोई आदेश जमीन तक नहीं उतरता

विजिलेंस जांच और उच्चस्तरीय शिकायतें

आर.टी.आई. एक्टिविस्टों ने यह मामला विजिलेंस विभाग, मुख्यमंत्री कार्यालय, प्रधानमंत्री कार्यालय, राज्यपाल, और राष्ट्रपति भवन तक भेजा है।
साथ ही, संदिग्ध अधिकारियों और कर्मचारियों की कॉल डिटेल्स (Call Details) भी विजिलेंस को सौंपी गई हैं ताकि पूरे नेटवर्क का खुलासा हो सके।

इन कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस प्रकरण में स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार और डी.जी. हेल्थ डॉ. सुनीता टम्टा की भूमिका भी जांच के दायरे में आनी चाहिए, क्योंकि आदेश जारी होने के बावजूद वह लागू नहीं हो सके।

“भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग जारी रहेगी” — संजय पांडे

संजय पांडे ने कहा कि वे और उनके सहयोगी चंद्रशेखर जोशी वर्षों से स्वास्थ्य विभाग की गड़बड़ियों को उजागर कर रहे हैं। कई मामलों में इन्हें सफलता भी मिली है, और अब यह मामला पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बन गया है।

उनके शब्दों में —

“हम जानते हैं कि इस लड़ाई में खतरे हैं, लेकिन अगर हम चुप रहे तो आने वाली पीढ़ियाँ हमें माफ नहीं करेंगी। अब वक्त है कि उत्तराखंड में भ्रष्टाचार के इस खेल पर नकेल कसी जाए।”

राजनीतिक दलों की दोहरी नीति

इस पूरे घटनाक्रम ने यह भी उजागर कर दिया कि कई राजनीतिक दल केवल “मुद्दा बनाने” तक ही सीमित रहते हैं। जिन डॉक्टरों की नियुक्ति पहले से आदेशित थी, उन्हीं की मांग पर धरने और बयानबाजी की जा रही थी — जबकि हकीकत यह थी कि आदेश पहले ही शासन स्तर पर जारी किए जा चुके थे।



चौखुटिया अस्पताल का यह मामला अब केवल एक नियुक्ति विवाद नहीं रहा। यह प्रदेश के उस व्यापक रोग का प्रतीक बन चुका है — जिसका नाम है “राजनीतिक हस्तक्षेप और विभागीय भ्रष्टाचार।”
संजय पांडे और चंद्रशेखर जोशी जैसे कार्यकर्ताओं की यह लड़ाई केवल चौखुटिया के लिए नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड की जनता के लिए है — जो हर दिन सिस्टम की इस सड़ांध से जूझ रही है।



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