संपादकीय हरेला की हरियाली पर नेताओं की सियासी परछाईं

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रूद्रपुर के गांधी पार्क और उत्तरायणी पार्क को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सौगात दी है। महापौर विकास शर्मा ने भी इसे अपनी जीत बता दी। स्वागतयोग्य बात है कि शहर को खूबसूरत और हरा-भरा बनाने की योजनाएँ बन रही हैं। लेकिन सवाल यह है कि कब तक हमारी धरोहरें, हमारी संस्कृति, हमारे पर्व—सब नेताओं के “क्रेडिट स्कोर” में तब्दील होते रहेंगे?

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट

अभी हरेला पर्व सिर पर है। यह पर्व सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि उत्तराखंड के लोक-जीवन, खेती, पर्यावरण और हमारी सामूहिक स्मृति से गहराई से जुड़ा हुआ पर्व है। यह हमारी पहाड़ी मिट्टी की खुशबू है, हमारी धरती माँ के प्रति कृतज्ञता है, और हर उस चेतना का हिस्सा है जो कहती है—“हम प्रकृति के ऋणी हैं, मालिक नहीं।”

पर नेताओं को देखिए, जैसे ही हरेला आता है, हाथ में गमला पकड़कर फोटो खिंचवाते नज़र आते हैं। भाजपा हो या कांग्रेस, दोनों के लिए पेड़ लगाना अब वोट लगाने की तरह हो गया है। कैमरे के फ्लैश के साथ गड्ढे खोदे जाते हैं, पौधे रोपे जाते हैं, और अगले दिन वही पौधे सूखकर बेजान हो जाते हैं। असल में, नेताओं के लिए हरेला हरी पत्तियों में लिपटी राजनीतिक ब्रांडिंग का उत्सव बन गया है।

महापौर विकास शर्मा भी कोई अलग नहीं हैं। वे गांधी पार्क और उत्तरायणी पार्क के सौंदर्यीकरण की बातें कर रहे हैं, जो निश्चित रूप से अच्छी पहल है। पर हर सार्वजनिक मंच पर, हर प्रेस विज्ञप्ति में, वे इसे ऐसे पेश कर रहे हैं मानो इन पार्कों के बगैर रूद्रपुर का अस्तित्व ही खतरे में था। सवाल यह नहीं कि पार्क बनें या नहीं। सवाल यह है कि क्या हर योजना का श्रेय खुद तक सीमित रखना और हर संस्कृति-परंपरा पर राजनीतिक झंडा गाड़ देना ज़रूरी है?

विकास शर्मा साहब, रूद्रपुर को स्मार्ट सिटी बनाने की बात करते हैं, पर “स्मार्टनेस” सिर्फ पार्कों की दीवारों और वॉकिंग ट्रैक में नहीं होती। स्मार्टनेस होती है जनता को यह भरोसा देने में कि संस्कृति सिर्फ वोट-बैंक नहीं, हमारी अस्मिता है।

हरेला उत्तराखंड की पहचान है। वह किसी भाजपा, किसी कांग्रेस, या किसी अन्य पार्टी का पेटेंट नहीं। वह खेतों की मेड़ पर उगती हरियाली, महिलाओं के गीतों, बच्चों के खिलखिलाते चेहरों और पहाड़ की मिट्टी की सुगंध में बसता है। उसे राजनीतिक भाषणों में जुमला बना देना हमारी विरासत का अपमान है।

राजनीतिक दलों को समझना होगा कि धर्म, पर्व और संस्कृति लोकजीवन का हिस्सा हैं, चुनावी घोषणापत्र का नहीं। अगर वे वाकई हरेला के मायने समझते हैं, तो सिर्फ एक पौधा लगाकर तस्वीर खिंचवाने से आगे बढ़ें। उन पेड़ों को बचाने की योजना बनाएँ, पानी की व्यवस्था करें, जंगलों की आग पर काबू करें, और हमारी जैवविविधता की रक्षा करें।

विकास शर्मा जैसे नेताओं को याद रखना चाहिए कि गांधी पार्क हो या उत्तरायणी पार्क, यह शहर और इसकी संस्कृति आपसे कहीं बड़ी है। आप आते-जाते रहेंगे, पर यह धरोहर यहीं रहेगी। हरेला किसी नेता का फोटो-ऑप नहीं, बल्कि उत्तराखंड की आत्मा है।

इस बार हरेला मनाएँ, पर नेताओं के साथ नहीं। प्रकृति के साथ। पेड़ लगाएँ, पर अपने नाम की तख्ती गाड़ने के लिए नहीं, बल्कि भविष्य की छाँव के लिए। क्योंकि हरेला पर्व राजनीति नहीं, परंपरा है। और परंपरा पर किसी का कॉपीराइट नहीं होता।

महापौर विकास शर्मा ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का आभार व्यक्त करते हुए कहा गांधी पार्क की डीपीआर शासन को भेजी जा चुकी थी, लेकिन स्वीकृति में अनावश्यक विलंब हो रहा था। मुख्यमंत्री धामी ने इसे मुख्यमंत्री घोषणा में शामिल कर, इसके शीघ्र क्रियान्वयन की राह खोल दी है। इसी तरह उत्तरायणी पार्क भी अब नया स्वरूप पाएगा।

महापौर ने आगे कहा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के मार्गदर्शन और सहयोग से रूद्रपुर में शहर की तस्वीर बदलने के लिए कई और योजनाओं को भी जल्द धरातल पर उतारा जाएगा। हमारा लक्ष्य रूद्रपुर को स्मार्ट सिटी बनाना है।



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