संपादकीय :पेपर लीक नहीं, परीक्षा को बदनाम करने की शरारत — सरकार की सख्ती से टूटा भ्रम

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उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) की स्नातक स्तरीय परीक्षा एक बार फिर सुर्खियों में है। रविवार 21 सितंबर 2025 को आयोजित इस परीक्षा में पेपर शुरू होने के करीब 35 मिनट बाद प्रश्नपत्र के तीन पन्ने सोशल मीडिया पर वायरल हुए। इससे राज्यभर में अचानक हड़कंप मच गया और एक बार फिर “पेपर लीक” जैसे शब्द तूल पकड़ने लगे। हालांकि, हकीकत यह है कि यह पेपर लीक का प्रकरण नहीं बल्कि परीक्षा की साख पर सवाल खड़ा करने की साजिश थी। सरकार और पुलिस की तत्परता ने इसे तुरंत स्पष्ट कर दिया।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

सरकार की सक्रियता: मिनटों में हिरासत

देहरादून से लेकर हरिद्वार तक पुलिस और प्रशासन की चौकसी ने दिखा दिया कि राज्य सरकार परीक्षा की पवित्रता से कोई समझौता करने वाली नहीं है। जैसे ही सोशल मीडिया पर सवाल उठे, पुलिस हरकत में आई और दो लोगों को तत्काल हिरासत में लिया गया। एसएसपी अजय सिंह ने प्रेसवार्ता में साफ कहा कि प्रथम दृष्टया यह किसी संगठित गैंग का काम नहीं है। यह वन-टू-वन स्तर पर स्क्रीनशॉट शेयर करने का मामला है। यानी न तो इसमें बड़े पैमाने पर कोई गैंग शामिल है और न ही परीक्षा की निष्पक्षता प्रभावित हुई है।

आयोग का स्पष्ट रुख

आयोग के अध्यक्ष गणेश सिंह मर्तोलिया ने भी साफ किया कि इस घटना को “पेपर लीक” कहना सही नहीं होगा। उनके अनुसार, “पेपर लीक का मतलब है परीक्षा शुरू होने से पहले प्रश्नपत्र बाहर जाना। यहां मामला उल्टा है — परीक्षा शुरू होने के बाद किसी केंद्र से कुछ पन्ने बाहर आए।” यह स्थिति परीक्षा की शुचिता को प्रभावित नहीं करती क्योंकि लाखों अभ्यर्थियों के बीच यह महज कुछ तस्वीरों तक ही सीमित रही।

विरोधियों की राजनीति बनाम वास्तविकता

राजनीतिक दल और कुछ सामाजिक कार्यकर्ता इस घटना को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहे हैं। खासकर सामाजिक कार्यकर्ता बॉबी पंवार पर सवाल उठे हैं कि उन्होंने बिना सत्यापन किए प्रश्नपत्र के स्क्रीनशॉट्स को वायरल कर दिया। सरकार मानती है कि इस तरह की जल्दबाजी परीक्षा की पवित्रता को संदेह के घेरे में डालने की अनावश्यक कोशिश है। यह किसी भी जिम्मेदार नागरिक के आचरण के अनुरूप नहीं कहा जा सकता।

वास्तविकता यह है कि परीक्षा में 1 लाख 54 हजार अभ्यर्थी शामिल हुए। इतने बड़े पैमाने पर परीक्षा का शांतिपूर्वक और निष्पक्ष संचालन अपने आप में सरकार और आयोग की सफलता है।

यूकेएसएसएससी परीक्षा के दौरान प्रश्न पत्र बाहर कैसे बाहर आ गया, इसे लेकर तमाम सवाल उठ रहे हैं। अधीनस्थ सेवा चयन आयोग फुल प्रूफ व्यवस्था का दावा कर रहा था। अब वह खुद हैरान है कि कैसे उनका फुलप्रूफ प्लान क्रैक हो गया। यह स्थिति तब सामने आई जब परीक्षा केंद्रों तक मोबाइल, इलेक्ट्रानिक्स डिवाइस तो छोड़िए पैन ले जाने तक की इजाजत नहीं थी। सभी परीक्षा केंद्रों पर जैमर तक लगे होने के दावे किए जा रहे थे। फिर भी 11 बजे परीक्षा शुरू होती है और 15 मिनट के भीतर ही प्रश्न पत्र के तीन पेज सोशल मीडिया में वायरल होने लगते हैं।

अतीत की गलतियों से सीख

यह भी सच है कि साल 2022 में हाकम सिंह प्रकरण ने उत्तराखंड की परीक्षा प्रणाली को गहरी चोट पहुंचाई थी। हाकम सिंह और उसके सहयोगियों की गिरफ्तारी ने साबित कर दिया था कि तब गहरी साजिशें सक्रिय थीं। लेकिन उस घटना से सीख लेकर सरकार ने तंत्र को और सख्त किया है। आज की घटना में पुलिस और आयोग की त्वरित प्रतिक्रिया बताती है कि सरकार कोई लापरवाही नहीं बरत रही।

हाकम सिंह जैसे अपराधियों को न्यायालय ने सजा दी, और राज्य सरकार ने उन्हें कठघरे में खड़ा किया। आज जब दोबारा ऐसे आरोप उठे, तो उसी क्षण सरकार ने अपनी सतर्कता दिखा दी। यह सरकार की नीयत और नीति दोनों को स्पष्ट करता है।

परीक्षा व्यवस्था की चुनौती

सच यह है कि लाखों अभ्यर्थियों वाली परीक्षा में तकनीकी चुनौतियां और सुरक्षा चूक की संभावना को पूरी तरह समाप्त करना असंभव है। प्रश्नपत्र को किसी भी केंद्र से मोबाइल कैमरे में खींचकर बाहर भेजा जा सकता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि पूरे तंत्र को दोषी ठहरा दिया जाए।

आज जिस तरह से पुलिस ने सोशल मीडिया पर वायरल हुए स्क्रीनशॉट्स की जांच कर सच्चाई सामने लाई, वह बताता है कि परीक्षा पारदर्शी और सुरक्षित थी। एक-दो व्यक्तियों की हरकतों को आधार बनाकर पूरी प्रणाली को कटघरे में खड़ा करना न तो अभ्यर्थियों के हित में है और न ही राज्य की साख के लिए।

विपक्ष का दोगला रवैया

उत्तराखंड सरकार दुख की बात है कि विपक्ष इस मुद्दे पर भी सस्ती राजनीति कर रहा है। राज्य सरकार को घेरने के लिए “पेपर माफिया”, “भ्रष्टाचार” जैसे शब्दों का प्रयोग किया जा रहा है, जबकि हकीकत यह है कि इस बार परीक्षा में किसी भी तरह की संगठित लीकिंग की संभावना सामने नहीं आई। यह सिर्फ एक तकनीकी चूक और शरारत है, जिसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है।

अभ्यर्थियों को भरोसा बनाए रखना होगा

सबसे बड़ी जिम्मेदारी अभ्यर्थियों की है कि वे इस तरह की अफवाहों में न फंसें। आयोग और सरकार की ओर से यह स्पष्ट कर दिया गया है कि पेपर की शुचिता प्रभावित नहीं हुई है। परीक्षा देने वाले लाखों युवाओं को अपनी मेहनत और ईमानदारी पर भरोसा रखना चाहिए।

सरकार की सख्त मंशा

इस घटना ने एक बार फिर यह साबित किया कि सरकार किसी भी स्तर पर ढिलाई नहीं बरतेगी। दोषियों को चिन्हित कर लिया गया है, और जरूरत पड़ने पर उन्हें रिमांड पर लेकर कठोर पूछताछ की जाएगी। सरकार का संदेश साफ है — उत्तराखंड में अब किसी को भी पेपर लीक जैसे अपराधों से अभ्यर्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने की इजाजत नहीं दी जाएगी।

परीक्षा प्रणाली को लेकर उठे ताजा विवाद ने एक बार फिर बहस को जन्म दिया है, लेकिन तथ्य यह स्पष्ट करते हैं कि यह पेपर लीक का मामला नहीं था बल्कि परीक्षा को बदनाम करने की सोची-समझी कोशिश थी। सरकार और आयोग ने तेजी से कदम उठाकर यह दिखा दिया है कि परीक्षा की शुचिता और पारदर्शिता पर कोई आंच नहीं आने दी जाएगी।

आज आवश्यकता है कि विपक्ष और कुछ गैर-जिम्मेदार लोग अनावश्यक भ्रम फैलाने की बजाय सरकार के प्रयासों का समर्थन करें, ताकि अभ्यर्थियों का भरोसा मजबूत बना रहे। उत्तराखंड सरकार ने यह साबित किया है कि वह पारदर्शिता और ईमानदारी के साथ युवाओं के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए प्रतिबद्ध है।



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