उत्तराखंड का गर्व — जीवन सिंह अधिकारी: बॉक्सिंग के रिंग में गर्जता हुआ कुमाऊं का शेर

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उत्तराखंड की धरती ने सदा से वीरों को जन्म दिया है — ऐसे सपूत जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा में न केवल हथियार उठाए, बल्कि खेल के मैदान में भी अपनी ताक़त और पराक्रम से भारत का नाम ऊँचा किया। इन्हीं वीरों में से एक हैं जीवन सिंह अधिकारी, जिनका जीवन सेना, साहस और संकल्प का जीवंत प्रतीक है।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

द्वाराहाट के धनारी गाँव में जन्मे जीवन सिंह अधिकारी ने वर्ष 1971 में भारतीय सेना की कुमाऊँ रेजीमेंट में भर्ती होकर अपने जीवन की उस यात्रा की शुरुआत की, जो आगे चलकर एक प्रेरक गाथा बन गई। सेना में रहते हुए उन्होंने केवल सीमाओं की रक्षा नहीं की, बल्कि खेल जगत में भी अपना लोहा मनवाया — विशेषकर बॉक्सिंग के रिंग में।

जीवन सिंह अधिकारी, श्रीमतीजानकी देवी, पुत्र वधु तन्नू अधिकारी

🥊 तीन बार सेंटर कमांड बॉक्सिंग चैंपियन — एक निरंतर विजेता

जीवन सिंह अधिकारी का नाम कुमाऊँ रेजीमेंट में आज भी बॉक्सिंग के सुनहरे अध्यायों में दर्ज है। अपने सेवा काल में वे तीन बार सेंटर कमांड बॉक्सिंग चैंपियन बने — यह उपलब्धि बहुत कम सैनिकों को हासिल हो पाती है।
उनकी ट्रेनिंग, अनुशासन और जज़्बे ने उन्हें एक ऐसा मुक्केबाज़ बनाया जो रिंग में केवल मुक्के नहीं, बल्कि सेना की शान और उत्तराखंड की पहचान का भार लेकर उतरता था।

उनके साथी सैनिक आज भी बताते हैं कि जब-जब जीवन सिंह अधिकारी रिंग में उतरते थे, पूरा मैदान “कुमाऊँ का शेर” के नारों से गूंज उठता था। उनके मुक्कों की धार और आंखों की दृढ़ता विरोधी को पहले ही डरा देती थी। यही कारण था कि केंद्र कमान और ऑल इंडिया मिलिट्री चैंपियनशिप में उन्होंने कई बार अपने प्रदर्शन से प्रशंसा बटोरी।


🥇 दिल्ली में जीता गोल्ड — ऑल इंडिया बॉक्सिंग चैंपियन का गौरव

भारतीय सेना में रहते हुए जीवन सिंह अधिकारी ने दिल्ली में आयोजित ऑल इंडिया मिलिट्री बॉक्सिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर न केवल कुमाऊँ रेजीमेंट, बल्कि सम्पूर्ण उत्तराखंड का नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज कर दिया।
उनकी यह उपलब्धि उस दौर में आई जब खेल संसाधनों की कमी थी, प्रशिक्षण सुविधाएँ सीमित थीं, परंतु जज़्बा और मेहनत असीमित थी।

उनकी यह जीत उस युग के उन सैनिक खिलाड़ियों की मिसाल बनी जिन्होंने सीमित साधनों में भी अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धा पैदा की।
सेना के खेल विभाग (OMC – Ordnance Military Command) में उनका प्रदर्शन इतना उत्कृष्ट था कि उन्हें कई बार प्रशिक्षण और टीम चयन में जूनियर सैनिकों के आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया गया।


⚔️ मुक्केबाज़ से योद्धा तक — आतंकवाद और नक्सलवाद के मोर्चे पर भी शौर्य

जीवन सिंह अधिकारी की वीरता केवल खेल के मैदान तक सीमित नहीं रही।
उन्होंने पंजाब के आतंकवाद, असम के चरमपंथी इलाकों और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में कई बार मोर्चे पर हिस्सा लिया। इन अभियानों में उनकी बहादुरी और निर्णय क्षमता ने उन्हें एक अनुकरणीय योद्धा बना दिया।

जहाँ एक ओर वे रिंग में विरोधियों को गिरा रहे थे, वहीं दूसरी ओर सीमाओं पर राष्ट्र विरोधी ताकतों को धूल चटा रहे थे।
उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि सैनिक केवल हथियारों से नहीं, बल्कि अपनी मानसिक और शारीरिक शक्ति से देश की सेवा करते हैं।


🕉️ गृहस्थ और आध्यात्मिक जीवन — देवभूमि के सच्चे पुत्र

आज जीवन सिंह अधिकारी अपने परिवार के साथ बिलासपुर (जिला रामपुर, उत्तर प्रदेश) में निवास कर रहे हैं।
पत्नी श्रीमती जानकी देवी, पुत्र बॉबी अधिकारी, और उच्च शिक्षित पुत्रवधू तन्नू अधिकारी के साथ उनका परिवार आज भी उत्तराखंड की उस संस्कारशील परंपरा को जीवित रखे हुए है, जो “सेवा, श्रद्धा और संयम” की त्रिवेणी है।

सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने गृहस्थ और आध्यात्मिक जीवन अपनाया। अपने नाती-पोतों के साथ वे आज भी अनुशासन, मेहनत और मातृभूमि-भक्ति के संस्कार बाँट रहे हैं।
उनका कहना है — “एक सैनिक कभी बूढ़ा नहीं होता, उसका अनुभव देश का कवच बनता है।”


🇮🇳 कुमाऊँ रेजीमेंट की शान — आज भी प्रेरणा का स्रोत

कुमाऊँ रेजीमेंट के कई अफसर और जवान आज भी जीवन सिंह अधिकारी का नाम आदरपूर्वक लेते हैं।
उनके “स्पोर्ट्समैन स्पिरिट” और “सैनिक अनुशासन” का उदाहरण नए रंगरूटों को दिया जाता है।
उनके बॉक्सिंग मुकाबलों की कहानियाँ आज भी रेजीमेंटल मेस में सुनाई जाती हैं — जब उन्होंने हार मानने के बजाय टूटी नाक के साथ भी फाइनल मुकाबला जीता था।

उनकी कहानी इस बात का प्रमाण है कि कुमाऊँ का जवान केवल बंदूक नहीं चलाता — वह रिंग में भी भारत का झंडा ऊँचा रखता है।


🕊️ सलाम उस फौलादी फौजी को…

आज जब उत्तराखंड का युवा रोजगार और पलायन की चुनौतियों से जूझ रहा है, तब जीवन सिंह अधिकारी जैसी हस्तियाँ यह याद दिलाती हैं कि परिश्रम, अनुशासन और निष्ठा से कोई भी शिखर असंभव नहीं है।
उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि देश सेवा केवल युद्धक्षेत्र में नहीं, बल्कि हर क्षेत्र में की जा सकती है — चाहे वह रिंग हो, खेत हो या परिवार।

यदि कभी आप जीवन सिंह अधिकारी को देखें — तो उन्हें सलाम ज़रूर कीजिए।
वह केवल एक सैनिक नहीं, बल्कि उत्तराखंड की आत्मा का प्रतिनिधि हैं — एक ऐसा योद्धा जिसने “देवभूमि” के नाम को देशभर में गूँजाया।



जीवन सिंह अधिकारी का जीवन उस प्रेरक गाथा की तरह है, जो यह बताता है कि सच्चा सैनिक सेवानिवृत्त नहीं होता — वह हर सांस में “जय हिंद” जीता है।
कुमाऊँ रेजीमेंट को आज भी उन पर गर्व है, और आने वाली पीढ़ियाँ उन्हें सदैव याद रखेंगी — “कुमाऊँ का वह शेर जिसने मुक्केबाज़ी के रिंग में भारत का तिरंगा बुलंद किया।” 🇮🇳



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