हिमालयी धरोहर की सजग प्रहरी बनीं प्रोफेसर सावित्री के जंतवाल — राज्यपाल ने किया सम्मानित, उत्तराखंड की सांस्कृतिक परिकल्पना को साकार करने वाला अद्वितीय योगदान — विशेष रिपोर्ट, नैनीताल से

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नैनीताल। उत्तराखंड की सांस्कृतिक चेतना और ऐतिहासिक परंपराओं को जीवित रखने वाली एक समर्पित शिक्षाविद् और इतिहासविद् प्रोफेसर सावित्री के जंतवाल को उनके अद्वितीय योगदान के लिए राज्यपाल महोदय द्वारा हाल ही में सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल के डी.एस.बी. परिसर स्थित हिमालय संग्रहालय में उल्लेखनीय कार्य के लिए प्रदान किया गया।

प्रोफेसर जंतवाल, जो कि इतिहास विभाग की पूर्व अध्यक्ष तथा संग्रहालय की प्रभारी एवं पूर्व संयोजक भी रही हैं, ने न केवल इस संग्रहालय को एक शैक्षणिक व सांस्कृतिक केंद्र के रूप में स्थापित किया, बल्कि उत्तराखंड राज्य की मूल अवधारणा — “स्थानीय संस्कृति, लोक ज्ञान और हिमालयी विरासत का संरक्षण” — को मूर्त रूप दिया।

हिमालय संग्रहालय: एक सांस्कृतिक तीर्थ

प्रोफेसर जंतवाल की अगुवाई में हिमालय संग्रहालय ने केवल वस्तुओं का संकलन भर नहीं किया, बल्कि यह उत्तराखंड के सामाजिक, ऐतिहासिक, पर्यावरणीय और लोक कलात्मक पक्षों को सहेजने और जनमानस से जोड़ने का कार्य करता रहा। यहां गढ़वाल-कुमाऊं की लोक कलाएं, पारंपरिक वेशभूषाएं, ऐतिहासिक अभिलेख, औजार, धार्मिक प्रतीक और जनजातीय संस्कृति की झलक देखने को मिलती है — जो आज के युवाओं को अपनी जड़ों से जोड़ने का अनुपम माध्यम बन चुका है।

राज्य की परिकल्पना से संग्रहालय तक

उत्तराखंड राज्य की स्थापना का मूल उद्देश्य केवल प्रशासनिक सुविधा नहीं था, बल्कि यह पहाड़ की अस्मिता, संस्कृति और संसाधनों के संरक्षण की मांग से जुड़ा था। प्रोफेसर जंतवाल का कार्य इस व्यापक परिकल्पना का हिस्सा बनता है, जहाँ उन्होंने संग्रहालय के माध्यम से उस विचार को साकार किया, जिसमें उत्तराखंड की आत्मा बसती है।

उन्होंने इस संस्था को केवल संग्रह का केंद्र न बनाकर, शोध, संवाद और सांस्कृतिक पुनरुत्थान का मंच बना दिया। उनके प्रयासों से अनेक शोधार्थियों, विद्यार्थियों और पर्यटकों को उत्तराखंड की पारंपरिक विरासत से रुबरु होने का अवसर मिला है।

सम्मान की पृष्ठभूमि

राज्यपाल महोदय द्वारा दिया गया यह सम्मान न केवल प्रोफेसर जंतवाल के व्यक्तिगत समर्पण का मूल्यांकन है, बल्कि यह एक प्रतीक है उस सोच का, जो स्थानीय ज्ञान और सांस्कृतिक पुनरुद्धार को उत्तराखंड के सतत विकास के केंद्र में रखती है। यह पुरस्कार उनके वर्षों के अनुसंधान, संग्रहण, प्रशिक्षण और प्रशासनिक योगदान का प्रतिफल है।

प्रोफेसर सावित्री के जंतवाल: प्रेरणा स्रोत

इतिहास विषय की गहराई से अध्येता होने के साथ-साथ प्रोफेसर जंतवाल ने महिला सशक्तिकरण, लोकविज्ञान, और पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण पर भी कार्य किया है। उनकी सोच स्पष्ट रही है — “यदि हम अपनी जड़ों को नहीं पहचानेंगे, तो आधुनिकता हमें उखाड़ देगी।”

वे छात्रों को बार-बार यह प्रेरणा देती रही हैं कि उत्तराखंड की परंपरा और हिमालय की चेतना केवल किताबों तक सीमित न रह जाए, बल्कि जीने की पद्धति में समाहित हो।


उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी: प्रोफेसर सावित्री के जंतवाल का सम्मान केवल एक शिक्षिका का सम्मान नहीं, बल्कि यह हिमालय, उसकी संस्कृति और उत्तराखंडी अस्मिता का सम्मान है। उनके द्वारा हिमालय संग्रहालय में किया गया कार्य आने वाली पीढ़ियों के लिए एक धरोहर है। यह सम्मान उत्तराखंड राज्य की उस परिकल्पना को नया आयाम देता है, जिसमें “संस्कृति ही विकास का मार्ग है” यह मूल भावना निहित है।

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट


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