
उत्तराखंड विधानसभा का मानसून सत्र भराड़ीसैंण (गैरसैंण) में इन दिनों राजनीतिक हंगामे और नारेबाजी का मंच बन गया। नौ विधेयक पारित हुए, 5315 करोड़ का अनुपूरक बजट पास हुआ और चार दिन का सत्र डेढ़ दिन में ही खत्म कर दिया गया। लेकिन सत्र की सबसे बड़ी खबर न विधेयक थे, न बजट—बल्कि गैरसैंण स्थायी राजधानी का मुद्दा, जिस पर खानपुर से निर्दलीय विधायक उमेश कुमार ने आमरण अनशन की घोषणा कर दी।


✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)
जनता पूछ रही है—क्या यह अनशन केवल कैमरों के सामने की एक और नौटंकी होगी, या वास्तव में गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने की दिशा में गंभीर पहल होगी? यह सवाल इसलिए भी बड़ा है क्योंकि गैरसैंण राज्य आंदोलन की आत्मा रहा है। यहाँ स्थायी राजधानी बनाने का वादा उत्तराखंड की हर सरकार ने किया, लेकिन हर बार चुनावी घोषणाओं और जुमलों से आगे यह बात नहीं बढ़ पाई।
सोशल मीडिया पर एक तंज खूब वायरल हो रहा है—“काश, सारे विधायक गैरसैंण को राजधानी बनाने के लिए भी वैसे ही धरने पर बैठते जैसे वे सदन में अपनी-अपनी राजनीति चमकाने के लिए बैठते हैं।” इसमें सच्चाई भी है। जब विधायकों को सत्ता की कुर्सी हिलती नजर आती है तो वे सदन के भीतर धरना-प्रदर्शन तक कर लेते हैं, लेकिन स्थायी राजधानी जैसे जनभावनाओं के मुद्दे पर चुप्पी साध लेते हैं।
सवाल यह भी है कि उमेश कुमार का यह ऐलान जनता के दिल को कितना छू पाएगा। अगर प्रदेश भर से लोग गैरसैंण पहुंचते हैं तो यह साफ संदेश होगा कि उत्तराखंड की जनता अब प्रतीकात्मक राजनीति नहीं, ठोस फैसले चाहती है। लेकिन यदि भीड़ नहीं जुटी तो यह आंदोलन भी महज सुर्खियों तक सीमित रह जाएगा।
वास्तविकता यह है कि गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने का फैसला अब केवल एक विधायक के अनशन या कुछ दिनों के हंगामे से नहीं होगा। इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए। लेकिन दुखद है कि 25 साल पूरे होने के बाद भी सरकारें देहरादून की चमक और कुर्सियों की मजबूरी से बाहर नहीं निकल पाई हैं।
आज जरूरत है कि गैरसैंण राजधानी की मांग को केवल आंदोलनकारियों या कुछ विधायकों तक सीमित न रखकर एक व्यापक जनांदोलन का रूप दिया जाए। यह केवल भौगोलिक सुविधा का मामला नहीं, बल्कि उत्तराखंड की अस्मिता और राज्य आंदोलन के सपनों का सवाल है।
अन्यथा, इतिहास यही लिखेगा कि गैरसैंण केवल हर सत्र में उठने वाला मुद्दा और नेताओं की नौटंकी का मंच बनकर रह गया।

