पर्वतीय क्षेत्रों में तेजी से बढ़ता नगरीकरण और ग्रामीण क्षेत्रों का सिकुड़ना पर्यावरणीय असंतुलन की बड़ी वजह बन रहा है। पहाड़ी राज्यों की बड़ी आबादी नगरों की ओर पलायन कर रही है, जिससे पारंपरिक ग्राम्य संरचना कमजोर हो रही है।

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मिजोरम केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रो. वीपी सती ने यह बातें इंडियन इंस्टीट्यूट आफ जियोग्राफर्स (आइआइजी) के 46वें वार्षिक अधिवेशन व अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के समापन समारोह में कहीं।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के चौरास परिसर में आयोजित तीन दिवसीय सम्मेलन का सोमवार को समापन हो गया। इसमें देश-विदेश के भूगोलवेत्ताओं ने पर्यावरणीय परिवर्तन, गतिशील पृथ्वी, सतत विकास और जलवायु संकट जैसे विषयों पर शोध और निष्कर्ष साझा किए।

समापन समारोह में मुख्य अतिथि गढ़वाल विश्वविद्यालय के कला संकाय की डीन प्रो. मंजुला राणा ने कहा कि विश्वविद्यालय में इस स्तर की अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन एक स्वर्णिम अवसर है। इससे प्राप्त निष्कर्ष न केवल अनुसंधान को नई दिशा देंगे, बल्कि नीति निर्माण में भी सहायक सिद्ध होंगे।

इस अवसर पर आइआइजी के अध्यक्ष प्रो. डीके नायक ने कहा कि उत्तराखंड जैसे संवेदनशील पर्वतीय राज्यों में विकास योजनाएं भौगोलिक दृष्टिकोण से तैयार की जानी चाहिएं, ताकि आपदाओं और पर्यावरणीय क्षति को न्यूनतम किया जा सके।

विशिष्ट अतिथि प्रो. हरभजन सिंह चौहान और परीक्षा नियंत्रक प्रो. जय सिंह चौहान ने भी सम्मेलन में विचार रखे। सम्मेलन समन्वयक प्रो. एमएस पंवार ने बताया कि तीन दिन में प्राप्त सुझावों का संकलन कर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जा रही है, जिसे 31 अक्टूबर से पूर्व नीति आयोग और सेतु आयोग को भेजा जाएगा।

डा. राकेश सैनी ने सम्मेलन की रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए कहा कि इसमें भारत सहित ब्रिटेन, लक्जमबर्ग व नेपाल के 40 से अधिक विश्वविद्यालयों व शोध संस्थानों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

समापन समारोह में प्रो. एमएस नेगी, प्रो. बीपी नैथानी, प्रो. आरएस नेगी, प्रो. गुड्डी बिष्ट, प्रो. विजयकांत पुरोहित, प्रो. एमएस जागलान, प्रो. सीमा जलान, प्रो. पद्मिनी, प्रो. सुचित्रा, डा. कपिल पंवार सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

डा. सागर को ‘यंग भूगोलवेत्ता अवार्ड’

सम्मेलन के अंतिम दिन आयोजित सत्रों में 200 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किए गए, जबकि 300 से अधिक प्रतिभागियों ने भागीदारी की। इस अवसर पर भूगोल शोध के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए डा. सागर को ‘यंग भूगोलवेत्ता अवार्ड’ से सम्मानित किया गया।


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