रुद्रपुर ब्लॉक प्रमुख का चुनाव इस बार सामान्य मुकाबला नहीं, बल्कि “घर के अंदर की जंग” जैसा नज़ारा पेश कर रहा है। एक तरफ भाजपा की अधिकृत प्रत्याशी ममता जल्होत्रा हैं, तो दूसरी ओर किच्छा के भाजपा नेता जितेंद्र गौतम की पत्नी रीना गौतम ने मैदान में उतरकर राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है। दिलचस्प बात यह है कि दोनों ही प्रत्याशी भाजपा से जुड़े होने के बावजूद एक-दूसरे के आमने-सामने हैं — यानी जो भी जीते, कुर्सी भाजपा के ही खाते में जाएगी।
✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)


लेकिन चुनाव केवल नाम और चेहरे का खेल नहीं, यह आंकड़ों और समीकरणों का भी अखाड़ा है।
सूत्रों के मुताबिक, रीना गौतम को पूर्व विधायक एवं वरिष्ठ भाजपा नेता राजेश शुक्ला का मजबूत समर्थन प्राप्त है। शुक्ला का यह समर्थन यूं ही नहीं है — किच्छा और रुद्रपुर की राजनीति में उनकी पकड़, कार्यकर्ताओं में उनकी सक्रियता और संगठन के भीतर उनका असर उन्हें “समीकरण बनाने वाले” नेता के रूप में स्थापित करता है। बताया जा रहा है कि 26 बीडीसी सदस्यों में से अधिकांश उनके खेमे में हैं, जबकि अधिकृत प्रत्याशी ममता जल्होत्रा के पास बहुमत का स्पष्ट आंकड़ा फिलहाल नहीं है।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि अगर रीना गौतम की जीत होती है तो इसका असर केवल ब्लॉक प्रमुख पद तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि आगामी विधानसभा चुनाव में भी दिखाई देगा। विशेषकर अनुसूचित जाति के मतदाताओं के बीच भाजपा की स्थिति किच्छा क्षेत्र में और मजबूत हो सकती है।
राजेश शुक्ला का राजनीतिक कौशल
पूर्व विधायक राजेश शुक्ला को अक्सर विरोधियों से भी सम्मान इसलिए मिलता है क्योंकि वे क्षेत्रीय मुद्दों को उठाने, कार्यकर्ताओं को एकजुट करने और संकट के समय संगठन की दिशा तय करने में निपुण हैं। रुद्रपुर और किच्छा के विकास में उनकी भूमिका, चाहे सड़क निर्माण हो, शिक्षा संस्थानों का विस्तार हो या किसानों के लिए योजनाओं का क्रियान्वयन — उन्हें एक परिणाम-उन्मुख नेता के रूप में पहचान देती है।
इस चुनाव में उनका दांव केवल राजनीतिक प्रतिष्ठा का नहीं, बल्कि संगठन के आगामी समीकरण तय करने का भी है।
बाजपुर में भी गरमाया माहौल
उधर बाजपुर में भाजपा प्रत्याशी विकास शर्मा और कांग्रेस प्रत्याशी सुखमन कौर (उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री बलदेव औलख की पुत्री) ने नामांकन दाखिल कर दिया है। लेकिन यहां चुनावी सरगर्मी के साथ-साथ कानूनी पेंच भी जुड़ गए हैं। एक बीडीसी सदस्य के पिता की तहरीर पर पुलिस ने सुखमन कौर के पति जोरावर सिंह, बलदेव औलख के बेटे और केलाखेड़ा के पूर्व चेयरमैन हामिद के खिलाफ अपहरण का मुकदमा दर्ज कर लिया है।
इस घटना ने बाजपुर चुनाव को केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि कानूनी मोर्चे पर भी सुर्खियों में ला दिया है।
संपादकीय दृष्टिकोण
राजनीति में कभी-कभी सबसे रोचक मुकाबले वे होते हैं, जब लड़ाई अलग-अलग दलों के बीच नहीं, बल्कि एक ही दल के भीतर होती है। रुद्रपुर का यह चुनाव इस बात का प्रमाण है कि भाजपा जैसे बड़े संगठन में भी स्थानीय समीकरण और व्यक्तिगत नेटवर्क जीत-हार का निर्धारण कर सकते हैं।
यहां “शुक्ला फैक्टर” न केवल एक प्रत्याशी के पक्ष में माहौल बना रहा है, बल्कि यह संकेत भी दे रहा है कि राजनीति में केवल टिकट मिलना ही निर्णायक नहीं होता — असली ताकत उस जमीनी जुड़ाव और नेतृत्व क्षमता में है, जो वर्षों की सक्रियता और सेवा से बनती है।
रुद्रपुर और बाजपुर, दोनों जगह के चुनाव नतीजे यह तय करेंगे कि पार्टी के भीतर कौन-सा धड़ा आने वाले विधानसभा चुनाव में संगठन का चेहरा और रणनीति तय करेगा। लेकिन इतना तय है — इन मुकाबलों में राजनीति के साथ-साथ नेतृत्व की असली परीक्षा भी हो रही है।

