शार्प शूटर की मीठी जुबान और एक गलती, जिसने उजाड़ दिया हरिद्वार का एक परिवार

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रिपोर्टर विशेष | हरिद्वार-मुजफ्फरनगर,जेल की सलाखों के पीछे खड़ा एक नौजवान। चेहरे पर मासूमियत। जुबान पर शहद घुली बातें। देखने वाला यकीन ही नहीं कर सकता था कि यह वही शख्स है, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड तक गैंगवार और सुपारी किलिंग का हिस्सा रहा है। नाम है शाहरुख पठान — वही शार्प शूटर, जिसे कुख्यात माफिया संजीव उर्फ जीवा ने अपने गिरोह में शामिल किया था।

संवाददाता,हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/ अवतार सिंह बिष्ट/उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी!

एक गलती, जिसने उजाड़ दिया घर,साल था 2017। मुजफ्फरनगर में पुलिस के शिकंजे से भागा जीवा, हरिद्वार में एक दुश्मन को खत्म करने की साजिश रच रहा था। निशाना था — सुभाष सैनी, जो कनखल के हाईवे किनारे बहुमूल्य जमीन के विवाद में जीवा के निशाने पर आ चुके थे। एक बार पहले भी सुभाष पर जानलेवा हमला हुआ था, जिसमें वे कमर में गोली लगने के बावजूद बच गए थे।

इस बार जीवा ने अपने भरोसेमंद शार्प शूटर शाहरुख पठान को हरिद्वार भेजा। साथ में कुछ और गुर्गे भी थे। प्लान सिंपल था — सुभाष सैनी को निर्मला छावनी इलाके में ठिकाने लगाना। लेकिन किस्मत ने एक निर्दोष की जिंदगी छीन ली।

निर्मला छावनी में जिस घर पर नजर रखी जा रही थी, वहीं पास से अचानक एक शख्स बाहर निकला। नाम था — अमित दीक्षित उर्फ गोल्डी, हरिद्वार का कंबल व्यापारी। हुलिया मिलता-जुलता था। शाहरुख ने बिना वक्त गंवाए गोलियां दाग दीं। गोल्डी वहीं ढेर हो गया।

हरिद्वार थर्रा उठा। मामला विधानसभा तक गूंजा। अमित दीक्षित के परिवार की दुनिया उजड़ गई। एक गलती ने सब छीन लिया।

कैसे हुआ खुलासा?हत्या के बाद हरिद्वार पुलिस और उत्तराखंड एसटीएफ ने कड़ी मेहनत की। लोकेशन ट्रैकिंग, मुखबिरों की सूचना और इंटेलिजेंस इनपुट्स के दम पर शाहरुख पठान, महताब समेत अन्य को गिरफ्तार किया गया। केस की जांच में साफ हुआ कि असली निशाना सुभाष सैनी था, लेकिन गलत पहचान ने निर्दोष व्यापारी की जान ले ली।

शाहरुख करीब दो साल रोशनाबाद जिला कारागार में बंद रहा। जिला कारागार के वरिष्ठ अधीक्षक मनोज कुमार आर्य बताते हैं —

“वह बहुत प्यार से बात करता था। उसे देखकर और उसकी बात सुनकर यकीन करना मुश्किल था कि वह इतना दुर्दांत शूटर हो सकता है। जबकि उसके कारनामे हरिद्वार से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक आम चर्चा थे।”

जेल से बाहर और फिर एनकाउंटर,शाहरुख को कोर्ट से उम्रकैद की सजा हुई थी, लेकिन हाईकोर्ट से जमानत पर रिहाई मिली। बाहर निकलने के बाद भी उसका जुड़ाव गैंगवार और आपराधिक गतिविधियों से बना रहा।

और फिर आया मुजफ्फरनगर का एनकाउंटर। उत्तर प्रदेश एसटीएफ ने हाल ही में मुठभेड़ में संजीव उर्फ जीवा और शाहरुख पठान दोनों को ढेर कर दिया। हरिद्वार में गोल्डी के परिवार के लिए ये खबर कुदरत के इंसाफ जैसी लगी। अमित दीक्षित की विधवा और परिजन कहते हैं —

“हमें नहीं पता कोर्ट से कब न्याय मिलता। लेकिन लगता है ऊपर वाले ने इंसाफ कर दिया।”

व्यापारियों में चर्चा,हरिद्वार के व्यापारी वर्ग में शाहरुख का एनकाउंटर लगातार चर्चा का विषय बना हुआ है। व्यापारी वर्ग का कहना है कि ऐसे पेशेवर शूटर जब खुले घूमते हैं, तो हर कारोबारी असुरक्षित महसूस करता है। गोल्डी की हत्या ने व्यापारियों के बीच दहशत का माहौल खड़ा कर दिया था, जो आज भी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ।

एक व्यापारी नेता का कहना है —गलत पहचान में किसी निर्दोष को मार देना, सबसे बड़ा अपराध है। व्यापारियों में आज भी वही डर बैठा है कि कब कौन गैंगस्टर उनकी ओर निशाना साध ले।”

मीठी जुबान, मगर शार्प निशाना,शाहरुख पठान की कहानी क्राइम की दुनिया में एक अजीब विरोधाभास है। जेल में मधुर व्यवहार और बाहर गोलियों की बौछार। शार्प शूटर की पहचान के बावजूद उसके चेहरे की मासूमियत लोगों को धोखा दे जाती थी।

जीवा गैंग का ये शूटर अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उसके एक गलत निशाने ने जिस परिवार को उजाड़ा, उस जख्म का कोई इलाज नहीं।



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