
हालांकि, उर्वशी रौतेला का यह दावा पूरी तरह से गलत है कि उत्तराखंड में बद्रीनाथ धाम के पास उनका एक मंदिर है। ता दें कि यह मंदिर अप्सरा उर्वशी का है, जिनकी उत्पत्ति भगवान विष्णु से हुई थी। चलिए जानते हैं मंदिर के बारे में…
संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह
पौराणिक कथा
भागवत पुराण के अनुसार, जब भगवान नारायण (विष्णु) बद्रिकाश्रम में तपस्या कर रहे थे, तो देवराज इंद्र ने उनकी तपस्या को भंग करने के लिए सुंदर अप्सराओं को भेजा। लेकिन नारायण पर उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। तब नारायण ने अपनी जांघ से एक सुंदर स्त्री का रूप उत्पन्न किया, जिसे उर्वशी नाम दिया गया। उर्वशी का जन्म भगवान नारायण की बाईं जांघ से हुआ था, और वह स्वर्ग की सबसे सुंदर और नृत्य-कला में निपुण अप्सरा मानी जाती हैं।
उर्वशी मंदिर की वास्तविकता
उर्वशी मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले के बामणी गांव में स्थित है, जो बद्रीनाथ धाम से लगभग 1.5 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर दिव्य अप्सरा उर्वशी देवी को समर्पित है। यह स्थान ऋषि गंगा के झरने के पास स्थित है और नीलकंठ पर्वत तथा नारायण पर्वत की गोदी में बसा हुआ है।
कैसे पहुंचे?
यह मंदिर बद्रीनाथ धाम के निकट बामणी गांव में स्थित है और वहां पहुंचने के लिए पैदल यात्रा करनी पड़ती है। उर्वशी रौतेला का इस मंदिर से कोई वास्तविक संबंध नहीं है। मंदिर तक पहुंचने के लिए केवल पैदल मार्ग उपलब्ध है।
मंदिर की विशेषताएं
मंदिर की संरचना साधारण है लेकिन इसकी पवित्रता और ऐतिहासिक महत्व इसे विशेष बनाते हैं। मंदिर के पास ऋषि गंगा का झरना और नीलकंठ पर्वत का दृश्य इस स्थान की सुंदरता को और बढ़ाते हैं।
एक कथा के अनुसार, ऋषि नारद तपस्या कर रहे थे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवराज इंद्र ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। ऋषि नारद ने इंद्र से एक ऐसी अप्सरा मांगी जो सारी दुनिया की सुंदरियों को मात दे। इंद्र ने उनकी इस इच्छा को पूरा किया और ऋषि नारद की जांघ से एक अत्यंत सुंदर अप्सरा का जन्म हुआ, जिसका नाम उर्वशी रखा गया
पुराणों के अनुसार देवताओं के राजा इंद्र है और इनके दरवार में एक से एक सुंदर अप्सराएं रहती हैं। अप्सराओं के विषय में ऐसा कहा गया है कि इनका यौवन कभी ढ़लता नहीं है ।
इंद्र की एक गलती से जन्मी स्वर्ग की सबसे सुंदर अप्सरा उर्वशी
पुराणों के अनुसार देवताओं के राजा इंद्र है और इनके दरवार में एक से एक सुंदर अप्सराएं रहती हैं। अप्सराओं के विषय में ऐसा कहा गया है कि इनका यौवन कभी ढ़लता नहीं है यानी यह हमेशा जवान और खूबसूरत दिखती हैं।
अपने रूप और यौवन से यह स्वर्ग लोक की शोभा बढ़ाती हैं साथ ही अपने नृत्य और अदाओं से देवताओं का मनोरंजन भी करती हैं।
देवराज इंद्र इनका कूटनीतिक इस्तेमाल अपने शत्रुओं को पराजित करने में भी करते हैं। पुराणों में कई ऐसी कथाएं मिलती हैं जिसमें बताया गया है कि इंद्र ने अपने आसान छिन जाने के डर से तपस्या में लीन तपस्वियों के पास अप्सराओं ,,,,,,
अप्सराओं ने अपने रूप यौवन से तपस्वियों को तपस्या से हटाकर घर गृहस्थी में लगा दिया। इसी तरह का एक काम जब इंद्र ने अप्सरा से करवाया तो स्वर्ग की सबसे सुंदर अप्सरा उर्वशी का जन्म हुआ।
ऐसे जन्मीं उर्वशी अप्सरा
एक समय भगवान विष्णु ने नर और नारायण के रुप में अवतार लिया। नर और नारायण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए केदारखंड में उस स्थान पर तपस्या करने लगे जहां पर आज ब्रदीनाथ धाम है।
इनकी तपस्या से इंद्र परेशान होने लगे। इंद्र को लगने लगा कि नर और नारायण इंद्रलोक पर अधिकार न कर लें। इसलिए इंद्र ने अप्सराओं को नर और नारायण के पास तपस्या भंग करने के लिए भेजा।
लेकिन नर और नारायण इनकी ओर आकर्षित नहीं हुए बल्कि नारायण ने इंद्र की अप्सराओं से भी सुंदर अप्सरा को अपनी जंघा से उत्पन्न कर दिया। इस अप्सरा का नाम उर्वशी रखा। नारायण ने इस अप्सरा को इंद्र को भेंट कर दिया।
जब उर्वशी का दिल आया एक इंसान पर
उर्वशी स्वर्ग की सबसे सुंदर अप्सरा थी इसलिए सभी देव इनके रूप पर मोहित थे। इसके बावजूद भी उर्वशी का हृदय पृथ्वी पर रहने वाले एक मनुष्य पर आ गया।
इस मनुष्य का नाम था अर्जुन। बात उस समय कि जब अर्जुन महाभारत युद्घ में विजय प्राप्त करने के लिए इंद्रलोक से दिव्यास्त्र लेने गए थे।
इंद्रलोक में भ्रमण करते हुए एक बार अर्जुन और उर्वशी की नजरें मिली और उर्वशी अर्जुन को दिल दे बैठी। लेकिन अर्जुन ने उर्वशी से विवाह करने से इंकार कर दिया। इससे उर्वशी नाराज हो गई और अर्जुन को नपुंसक होने का शाप दे दिया।
इसलिए अर्जुन ने रूपवती अप्सरा से विवाह करने से इंकार किया
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एक बार इंद्र की सभा में उर्वशी नृत्य कर रही थी। उस सभा में पृथ्वी के एक राजा पुरूरवा भी आए हुए थे। नृत्य करते हुए जब उर्वशी की दृष्टि पुरूरवा पर गई तो वह मोहित हो गई। इससे उर्वशी का ताल बिगड़ गया।
इससे इन्द्र ने उर्वशी को पृथ्वी लोक में जाने का शाप दे दिया। इन्द्र ने उर्वशी से कहा कि जब तुम पुरूरवा को नग्न देख लोगी तब यह शाप समाप्त हो जाएगा इसके बाद वापस स्वर्ग लोक में तुम्हारा आगमन हो सकेगा।
पृथ्वी पर आकर उर्वशी ने पुरूरवा से विवाह किया और इनकी नौ संतान हुई। काफी समय बीत जाने के बाद गंधर्वों के मन में उर्वशी को वापस स्वर्ग लाने की इच्छा हुई।
गन्धर्वों ने विश्वावसु नामक गंधर्व को उर्वशी के मेष चुराने के लिए भेजा। जिस समय विश्वावसु मेष चुरा रहा था, उस समय पुरूरवा नग्नावस्था में थे। आहट सुनकर पुरूरवा उसी अवस्था में विश्वावसु को पकड़ने दौड़े।
अवसर का लाभ उठाकर गन्धर्वों ने उसी समय प्रकाश कर दिया जिससे उर्वशी ने पुरूरवा को नग्न देख लिया। इसके बाद उर्वशी वापस स्वर्ग चली गई।
अर्जुन पुरूरवा के वंशज थे इसलिए उन्होंने उर्वशी को माता के रुप में स्थान दिया। यही कारण था कि अर्जुन ने रूपवती अप्सरा के प्रेम प्रस्ताव को ठुकरा दिया