
छात्राओं को ‘आध्यात्मिक इंटर्नशिप’ के नाम पर फंसाता था चैतन्यानंद, विदेश भेजने का देता था झांसा
रिपोर्ट:विशेष संवाददाता — ✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

धर्म और आस्था के नाम पर छल का खेल खेलने वाले तथाकथित ‘बाबाओं’ की फेहरिस्त में अब एक और नाम तेजी से सुर्खियों में है — चैतन्यानंद।
यह वही व्यक्ति है, जो कभी सफेद वस्त्र पहनकर स्वयं को साधु बताता था और बाद में लाल चोला धारण कर “शंकराचार्य परंपरा” से जुड़ा होने का दावा करने लगा। लेकिन उसके वेश और नाम बदलते रहे, कर्म कभी नहीं।
टिहरी से शुरू हुई थी फरेब की यात्रा?करीब दो दशक पहले टिहरी की वादियों में एक नया साधु दिखाई दिया था।
उस समय उसका नाम पार्थसारथी रुद्र था। वह रामकृष्ण मिशन में सेवा के नाम पर आया था, लेकिन कुछ ही महीनों में लेखा अनियमितताओं और फर्जी दस्तावेजों के आरोपों में पकड़ा गया।
संस्थान से निकाले जाने के बाद उसने अपना नाम बदलकर बी.आर. पार्थसारथी रख लिया और झूठे प्रमाणपत्रों के बल पर खुद को ओंकारानंद इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी, टिहरी का लेक्चरर बताने लगा।
अपने एफिडेविट में उसने यहां तक दावा किया कि वह ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (AICTE) का सदस्य है और 22 किताबें लिख चुका है।
दरअसल, यह सब उसकी “नई पहचान” का हिस्सा था — एक ऐसा चेहरा जो लोगों के बीच विद्वान और संत की छवि बनाता रहा, जबकि अंदर ही अंदर वह अपराधों की जाल बुन रहा था।
विदेशी ट्रेनिंग के नाम पर छात्राओं को जाल में फंसाता था?साल 2014 के बाद उसने नया नाम अपनाया — चैतन्यानंद।
श्रृंगेरी शारदा पीठ से जुड़ने का दावा कर उसने दक्षिण भारत, दिल्ली और उत्तराखंड में अपने अनुयायियों का जाल फैला लिया।
इसी दौरान उसने “आध्यात्मिक शिक्षा”, “संस्कृति मिशन” और “महिला सशक्तिकरण” के नाम पर युवतियों और छात्राओं तक अपनी पहुंच बनाई।
पुलिस और सूत्रों के अनुसार, चैतन्यानंद के आश्रम में युवतियों को “इंटर्नशिप”, “फेलोशिप” और “विदेशी ट्रेनिंग प्रोग्राम” के बहाने बुलाया जाता था।
उन्हें यह बताया जाता कि “दुबई और सिंगापुर” में सांस्कृतिक प्रोजेक्ट पर काम करने का अवसर मिलेगा।
यहीं से शुरू होता था उनका फंसना।
आश्रम पहुंचने के बाद छात्राओं को “सेवा और ध्यान” के नाम पर गुरु के निकट रहने को कहा जाता।
तीन विशेष महिलाएं — जो बाबा की सहयोगी और ‘सेविका’ कहलाती थीं — उन्हीं के माध्यम से नई युवतियों को समझाया जाता कि “गुरु के साथ रहना आत्मोन्नति का मार्ग है।”
धीरे-धीरे इन युवतियों को मानसिक रूप से नियंत्रित किया जाता और फिर उनके साथ शारीरिक शोषण तक की नौबत आती।
जो विरोध करतीं, उन्हें “कर्म फल”, “आध्यात्मिक परीक्षा” या “गुरु का क्रोध” जैसे डर दिखाए जाते।
कई पीड़िताओं ने बाद में बताया कि बाबा उनके परिवारों से भी संपर्क रखता था ताकि किसी को संदेह न हो।
धर्म की आड़ में हवाला और ब्लैकमेलिंग का कारोबार?सूत्रों के मुताबिक, चैतन्यानंद के पास विदेशों से चंदे और दान के नाम पर मोटी रकम आती थी।
इन पैसों का उपयोग न सिर्फ व्यक्तिगत विलासिता में होता, बल्कि विदेशी खातों में हवाला ट्रांसफर के रूप में भी किया जाता था।
पुलिस जांच में यह बात भी सामने आई है कि कुछ छात्राओं को दुबई भेजने के नाम पर उनके दस्तावेज और पासपोर्ट तक अपने पास रखे जाते थे।
अपराध का सफेदपोश चेहरा?पुलिस सूत्रों के अनुसार, चैतन्यानंद के खिलाफ विभिन्न राज्यों में धोखाधड़ी, यौन शोषण और मनी लॉन्ड्रिंग के केस दर्ज हैं।
लेकिन हर बार वह अपने “आध्यात्मिक प्रभाव” और “धार्मिक संरक्षण” का इस्तेमाल कर जांच से बचता रहा।
कई पीड़िताएं सामाजिक शर्म और बदनामी के डर से सामने नहीं आईं।
आस्था को कलंकित करने वाली कहानी?यह मामला केवल एक व्यक्ति की ठगी नहीं, बल्कि समाज की आंख खोलने वाली घटना है।
जो व्यक्ति गीता और उपनिषद की बातें करता था, वही युवतियों को “मोक्ष” के नाम पर शोषण का शिकार बनाता रहा।
धर्म के नाम पर पनप रही इस ठगी ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि —
क्या अब भी हम ऐसे ‘बाबाओं’ पर आंख बंद कर विश्वास करते रहेंगे?
चैतन्यानंद का यह मामला केवल एक अपराधी का नहीं, बल्कि उस अंधभक्ति का प्रतीक है जिसमें समाज आज भी फंसा हुआ है।
जब तक “गुरु” की आड़ में चल रही इन गतिविधियों पर कठोर कार्रवाई नहीं होती,
और पीड़ित छात्राओं को न्याय नहीं मिलता,
तब तक ऐसे “आध्यात्मिक ठग” नए-नए वेश धारण कर समाज को धोखा देते रहेंगे।


