कहीं ‘कुर्सी रोपण कार्यक्रम’ तो नहीं? अबकी बार धान की रोपाई, कुर्सी छोड़ने की नहीं बुलाई!”लेखक: अवतार सिंह बिष्ट, हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स

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सावन की रिमझिम फुहारें पड़ते ही उत्तराखंड की धरती पर इस बार कुछ अलग ही हरियाली देखने को मिल रही है। नागरा तराई के खेतों में जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खुद अपने हाथों से धान की रोपाई करते नजर आए, तो कई राजनीतिक जानकारों की आंखें चौंधिया गईं। लगा जैसे कह रहे हों — “अबकी बार खेती नहीं, नेतागिरी की फसल तैयार कर रहे हैं धामी जी!”

आखिरकार जब बीजेपी में चुनाव नजदीक आते ही मुख्यमंत्री बदलने की परंपरा रही है, तो फिर सीएम धामी का ये खेत में उतरना… कहीं ‘कुर्सी रोपण कार्यक्रम’ तो नहीं?


खेत में धामी, सोशल मीडिया में सुनामी!धान की पौध लगाते मुख्यमंत्री धामी की तस्वीरें जैसे ही सोशल मीडिया पर आईं, नेटिजन बोल पड़े — “वाह! अब तो ट्रैक्टर नहीं, ट्रेंडिंग में है ट्रैक्टर वाले सीएम!”हुड़किया बौल की धुनों के बीच, सीएम जी इतने भाव विभोर हो गए कि ऐसा लगा जैसे धान नहीं, 2027 के टिकट की गारंटी बो रहे हों।

किसी ने व्हाट्सएप पर फॉरवर्ड कर दिया:

“धान बोया, उम्मीदें सींचीं, अब देखना है फसल वोटों की कितनी लहलहाती है!”


पूर्व सीएम का तंज, “धान नहीं, ध्यान दो कुर्सी पर!”पूर्व मुख्यमंत्रियों की टोली, जो अब “वेटिंग लाउंज ऑफ पॉलिटिक्स” में बैठे हैं, उन्होंने तुरंत कटाक्षों की क्यारी सींच दी। एक ने तो यहां तक कह दिया —

“ये रोपाई नहीं, विदाई का अभ्यास है!”

दूसरे ने चुटकी ली — “साहब का बूट कीचड़ में फंसा या सियासत की दलदल में?”


रोपाई के बहाने एक तगड़ी बुआई…

धरती माता, इंद्र देव, मेघराज और हुड़किया बौल — यह दृश्य केवल एक सांस्कृतिक यज्ञ नहीं था, यह तो राजनीतिक ‘प्लांटेशन ड्राइव’ थी।

मुख्यमंत्री का संदेश स्पष्ट था —

“देखिए, मैं सिर्फ ‘कुर्सी’ का नेता नहीं, ‘खेत’ का बेटा भी हूं।”

और जनता के मन में सवाल उठने लगे:

“क्या अब बीजेपी में मुख्यमंत्री बदलने की आदत पर भी धामी जी ने हल चला दिया है?”

“या फिर पार्टी हाईकमान को यह खेत वाली समर्पण मुद्रा दिखाकर 2027 की टिकट के लिए खाद-पानी दे रहे हैं?”


हेलीकॉप्टर से खेत तक

एक दिन पहले धामी जी देहरादून में उड्डयन सम्मेलन में ‘हेलीपोर्ट्स की उड़ान’ का ब्लूप्रिंट दिखा रहे थे, और अगले दिन खेत में ‘धान की पहचान’ बनते नजर आए।

जैसे संदेश दे रहे हों —

“धरती से जुड़कर ही आसमान छुआ जा सकता है।”

एक विपक्षी नेता ने हंसते हुए कहा —

“वाह, अब तो धामी जी हेलीकॉप्टर से उतरकर सीधे हल पकड़ने लगे हैं, कहीं अगली बार बैल बन कर न खींचने लगें!”


“कुर्सी की रोपाई” या “संघ की दिखाई”?कुछ विश्लेषकों का मानना है कि धामी जी की यह रोपाई केवल किसानों से जुड़ाव नहीं, बल्कि संघ की उस “भूमि आधारित राष्ट्रवाद” की प्रयोगशाला का हिस्सा है, जिसमें एक मुख्यमंत्री को जनता के खेत में पसीना बहाते देखना, 2027 का भावनात्मक प्रचार है।

कई कार्यकर्ताओं के बीच यह चर्चित हो गया —

“साहब रोपाई नहीं कर रहे, वो दरअसल बीजेपी की ‘सेल्फी विद किसान’ मुहिम चला रहे हैं।”


हास्य रस की फसल: जनता की जुबानी

जनता ने भी खूब चुटकियां लीं।

एक किसान बोला —

“पहली बार किसी नेता को धान लगाते देखा, वरना तो सब कुर्सी उगाते हैं।”

दूसरा बोला —

“लगता है इस बार मंत्री नहीं बदले जाएंगे, सिर्फ बीज बदलेंगे।”

और एक पुराना चौधरी तो यहां तक कह गया —

“साहब ने तो ट्रैक्टर छोड़, फावड़ा पकड़ लिया, अब देखो दिल्ली से आदेश आता है या ट्रांसफर लेटर।”


धामी जी अब ‘धानमंत्री’ बनें?उत्तराखंड की राजनीति में अगर कोई नेता खेत में उतरकर भावनात्मक बीज बोता है, तो जनता उसका स्वागत तो करती है, लेकिन भूलती नहीं कि “धान बोने से वोट नहीं उगते, नीति और नीयत का पानी भी चाहिए।”सीएम धामी की यह खेत यात्रा जहां एक तरफ उनकी जमीनी छवि को मजबूत करती है, वहीं दूसरी ओर ये व्यंग्यात्मक सवाल भी खड़ा करती है —

“धान बोया है या दांव?”तो पाठकों से पूछना चाहेंगे:

क्या धामी जी ने 2027 के चुनाव की रोपाई कर दी है या पार्टी आलाकमान उनके लिए कटाई का आदेश लाने वाला है?अब फैसला खेत की फसल नहीं, राजनीति की परिपक्वता करेगी।


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