संपादकीय:बिंदुखेड़ा में भाजपा की सेंध—परिवर्तन की बयार का संकेत !कांग्रेस का गढ़ बचाने में बीफल रही सुनीता सिंह – कुरैया सीट से भाजपा को बड़ा झटका✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स

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उधम सिंह नगर की कुरैया जिला पंचायत सीट (वार्ड 14), 2025 के त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों की सबसे चर्चित सीटों में रही। यह सीट सिर्फ कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा की नहीं थी, बल्कि भाजपा के लिए “गढ़ में सेंध” का लक्ष्य भी था। तमाम रणनीति और प्रयासों के बावजूद भाजपा समर्थित प्रत्याशी कोमल चौधरी को हार का सामना करना पड़ा, जबकि कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी सुनीता सिंह ने भारी मतों से जीत दर्ज कर पारंपरिक गढ़ को बचाने में सफलता प्राप्त की।


कलम-दवात की जीत, उगता सूरज फीका पड़ा?सुनीता सिंह को “कलम-दवात” चुनाव चिन्ह मिला था। वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आश्रित परिवार से हैं, शिक्षित, सामाजिक कार्यकर्ता और कांग्रेस की सक्रिय समर्थक भी।

उनके सामने भाजपा समर्थित प्रत्याशी कोमल चौधरी थीं, जिन्हें “उगता सूरज” चुनाव चिन्ह पर समर्थन मिला और जिनका प्रचार विधायक शिव अरोड़ा और ओबीसी मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष उपेंद्र चौधरी ने पूरी ताकत से किया।परंतु, जब नतीजे सामने आए, तो यह साफ हो गया कि जनता ने अनुभव, विश्वसनीयता और स्थानीय जुड़ाव को तरजीह दी।

हार क्यों हुई? भाजपा की रणनीति और उसकी सीमाएं?कोमल चौधरी को जिताने के लिए भाजपा ने जमीन से लेकर मंच तक हर स्तर पर जोर लगाया।उपेंद्र चौधरी ने बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया।विधायक शिव अरोड़ा ने सघन जनसंपर्क और सभाएं कीं।लेकिन कई क्षेत्रों में अन्य भाजपा नेताओं का आत्मविश्वास अति आत्मविश्वास में बदल गया, और यही प्रचार आधारित राजनीति स्थानीय मुद्दों के सामने कमजोर पड़ गई।

बिंदुखेड़ा जैसे सिख बहुल क्षेत्रों में भाजपा को चुनावी इतिहास में पहली बार सबसे अधिक वोट मिले। यहां कांग्रेस का जनाधार बचा नहीं,

त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2025 के परिणामों ने कई राजनीतिक मिथकों को तोड़ते हुए एक नए जनादेश की बुनियाद रखी है। खासतौर पर बिंदुखेड़ा जैसे सिख बहुल इलाकों में भारतीय जनता पार्टी को पहली बार जबरदस्त जनसमर्थन मिला, जो न केवल चौंकाने वाला है बल्कि कांग्रेस के पारंपरिक जनाधार पर गहरा आघात भी है। यह परिणाम भाजपा की स्थानीय संगठन क्षमता, बूथ प्रबंधन और सामाजिक संवाद की रणनीति की सफलता का परिचायक है।

बिंदुखेड़ा वह क्षेत्र रहा है जहां कांग्रेस वर्षों से निर्विरोध बढ़त बनाए हुए थी। परंतु इस बार भाजपा प्रत्याशी ने न केवल मुकाबला किया, बल्कि मतदाताओं के विश्वास को जीतकर निर्णायक बढ़त भी हासिल की। यह राजनीतिक रूपांतरण संयोग नहीं, बल्कि विधायक शिव अरोड़ा द्वारा संगठित प्रयास, समाज के साथ बेहतर संवाद और बदलाव की जन-इच्छा का परिणाम है।

ऐसे कई अन्य बूथ भी रहे हैं जहां कांग्रेस परंपरागत रूप से मजबूत थी, लेकिन भाजपा ने मजबूत सेंध लगाई। यदि यही रणनीति और मजबूती अन्य कांग्रेस गढ़ों पर भी दिखाई देती, तो पंचायत चुनाव का परिदृश्य और भी नाटकीय हो सकता था।

सुनीता सिंह की जीत में क्या रहा खास?

  • वे शिक्षित और साफ-सुथरी छवि की महिला प्रत्याशी थीं।

  • क्षेत्रीय संतुलन, जातीय समीकरण और कांग्रेस का सांगठनिक समर्थन उनके पक्ष में रहा।

  • कई पुराने कार्यकर्ता और महिलाओं का सक्रिय जुड़ाव, कांग्रेस के लिए गेमचेंजर साबित हुआ।यह जीत बताती है कि कांग्रेस अब भी ग्रामीण राजनीति में प्रासंगिक और प्रभावशाली है — खासकर तब जब स्थानीय नेतृत्व सक्रिय हो।
    हवाई प्रचार बनाम स्थानीय उपस्थिति?कोमल चौधरी को मैदान में उतारकर भाजपा ने कुरैया सीट को ‘पायलट प्रोजेक्ट’ की तरह लिया था। लेकिन यह प्रोजेक्ट तब विफल हो गया जब कांग्रेस ने गहराई से हर बूथ पर रणनीति बनाई और उसे ज़मीन पर उतारा।

हवाई प्रचार, सोशल मीडिया और बड़े मंचों की राजनीति ने स्थानीय रिश्तों और व्यक्तिगत विश्वसनीयता के आगे हार मान ली।

सुनीता सिंह की जीत केवल एक महिला प्रत्याशी की जीत नहीं थी — यह उन मूल्यों की जीत थी जिन पर ग्रामीण राजनीति आज भी टिकी है:

वहीं भाजपा के लिए यह चुनाव एक सीख है कि हर सीट को सिर्फ रणनीति और प्रचार से नहीं जीता जा सकता, वहां स्थानीय मुद्दों, विश्वास और कार्यकर्ताओं की पकड़ ही निर्णायक होती है।
कभी-कभी एक हार बहुत कुछ सिखा जाती है। भाजपा को अब यह समझना होगा कि सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने और गांव की गलियों में भरोसा कमाने में बड़ा अंतर होता है। सुनीता सिंह ने यह अंतर साबित कर दिखाया।कोमल चौधरी ने कुरैया जिला पंचायत चुनाव में लोकतांत्रिक मर्यादाओं का पालन करते हुए एक सुनियोजित और गरिमापूर्ण चुनाव लड़ा। उन्होंने विधायक शिव अरोड़ा, उपेंद्र चौधरी, महापौर विकास शर्मा, सुरेश कोहली और अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ समन्वय बनाकर संगठित रूप से जनसंपर्क और मुद्दों पर आधारित प्रचार किया। उनका प्रयास दलगत एकता और रणनीतिक प्रबंधन का उदाहरण बना। हालांकि परिणाम पक्ष में नहीं आया, लेकिन कोमल चौधरी ने जनभावनाओं को आदर दिया और लोकतंत्र में आस्था प्रकट की, जो राजनीतिक शुचिता और प्रतिबद्धता का प्रमाण है।



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