
रुद्रपुर,शुभ दीपावली!यह सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि उस उजाले का प्रतीक है जो अंधेरे को मिटाता है — और इस बार रुद्रपुर की दीपावली में यह उजाला सिर्फ घरों में नहीं, बल्कि व्यवस्था में भी फैला है। मेयर विकास शर्मा ने जो कदम उठाया, उसने न केवल सड़कों को जाम और अव्यवस्था से मुक्त किया, बल्कि उस अनकही वसूली संस्कृति का भी अंत किया जो सालों से गरीब ठेलेवालों, रेहड़ीवालों और लघु दुकानदारों की कमाई पर डाका डाल रही थी।

रुद्रपुर की ‘परंपरा’ या अवैध वसूली की आदत?
शहर के कुछ व्यापारी सोशल मीडिया पर रोने बैठे कि “बाजार की पुरानी परंपरा खत्म कर दी गई” — लेकिन जनता पूछ रही है कि कौन सी परंपरा? वो जिसमें ठेलेवालों से ₹300 से ₹500 रोज वसूले जाते थे? या वो जिसमें फुटपाथ और सड़क दोनों पर कब्जा कर ग्राहक को निकलने तक की जगह नहीं छोड़ी जाती थी?
रुद्रपुर के मुख्य बाजार की सच्चाई यह है कि यहाँ बड़े दुकानदारों ने लंबे समय से छोटे व्यापारियों की मेहनत पर “परंपरा” के नाम पर मोटी कमाई की। ये लोग ठेलेवालों से रोजाना किराया लेते थे, और जब नगर निगम ने सख्ती की, तो अब “परंपरा” याद आने लगी।
विकास शर्मा का मेला — व्यवस्था और अवसर का संगम?इस बार गांधी पार्क में नगर निगम द्वारा आयोजित दीपावली मेला सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि नए युग की शुरुआत है।
यहाँ न केवल ठेलेवालों को दुकानें दी गईं, बल्कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों, देशभक्ति गीतों, एकल-युगल गायन और रंगारंग मंचन से रुद्रपुर की आत्मा को सजाया गया।
यह पहला अवसर है जब गरीब लघु व्यापारी बिना किसी “गुंडा टैक्स” या किराया वसूली के डर के अपनी दुकान लगा रहे हैं।
✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी
लोगों ने कहा — “पहले दुकान लगाते थे तो जाम लगता था, अब सब कुछ व्यवस्थित है।”
यह केवल प्रशासनिक बदलाव नहीं, बल्कि सोच में बदलाव है।
सुशील गाबा का बयान और जनता की प्रतिक्रिया — सोशल मीडिया पर जनता का ‘जनमत संग्रह’
रुद्रपुर के समाजसेवी और कॉलोनाइजर सुशील गाबा ने सोशल मीडिया पर एक बयान जारी किया —नया मेला और पुरानी परंपराएँ दोनों ही शहर के लिए जरूरी हैं। दीपावली मेला अपने आप में अच्छा है, लेकिन बाजार की पुरानी परंपराओं को भी साथ रखा जाना चाहिए।”
उनकी इस पोस्ट के बाद सोशल मीडिया पर जैसे जनता ने जनमत संग्रह कर दिया।
कमेंट्स की बाढ़ आ गई — और उनमें से अधिकांश ने सुशील गाबा के “परंपरा प्रेम” को गरीबों के शोषण से जोड़ दिया।
यहाँ कुछ प्रतिक्रियाएँ हर नागरिक के मन की आवाज़ थीं —
- “कौन सी परंपरा, छोटे ठेली रेहड़ीवालों से हजारों रुपये लेने की परंपरा? अब वो नहीं चलेगी।”
- “बड़े दुकानदार पहले हराम की कमाई कर रहे थे, अब बंद हुई तो पेट में दर्द हो रहा है।”
- “पहले ठेलेवालों से ₹500 रोज लेते थे, अब नगर निगम ने गांधी पार्क में मुफ्त जगह दी, तो रोना क्यों?”
- “पब्लिक को खुली जगह मिली है, अब मेला में जाकर खरीदारी का मजा आ रहा है।”
- “भाई ये कोई परंपरा नहीं थी, ये भ्रष्टाचार था, जो अब खत्म हुआ है।”
इन प्रतिक्रियाओं ने गाबा जैसे लोगों को आईना दिखा दिया कि जनता अब सिर्फ दुकानदारों की ‘भावनाओं’ पर नहीं, न्याय और समान अवसर पर खड़ी है।
जनता की राहत — अब सड़कों पर जाम नहीं, और बाजार में रौनक है?पिछले सालों में दीपावली के दौरान रुद्रपुर का मुख्य बाजार मानो युद्धक्षेत्र बन जाता था —
हर गली में ठेले, हर मोड़ पर बाइकें, हर जगह जाम।
इस बार स्थिति बिलकुल उलट है।
नगर निगम ने ट्रैफिक डायवर्जन और गांधी पार्क में पार्किंग की व्यवस्था की, जिससे लोगों को सुकून मिला।
सड़कें साफ हैं, सुरक्षा बल मुस्तैद हैं, और ठेलेवाले बिना डर के व्यापार कर रहे हैं।
यह बदलाव कोई मामूली बात नहीं — यह प्रशासनिक इच्छाशक्ति और संवेदनशीलता का प्रमाण है।
गरीब का दिया भी जलेगा अब — क्योंकि अब वसूली बंद है?वर्षों से दीपावली की रौनक अमीर बाजारों में सिमटी हुई थी।
ठेलेवाला अपनी कमाई का आधा हिस्सा वसूली में खो देता था, और बाकी से मुश्किल से अपने बच्चों को मिठाई खरीद पाता था।
लेकिन इस बार, विकास शर्मा के प्रयासों से वसूली बंद हुई —
गरीब का ठेला अब उसकी रोजी है, किसी और की ‘आय का स्रोत’ नहीं।
रुद्रपुर की यह दीपावली वास्तव में समावेश की दीपावली है —
जहाँ अमीर के साथ गरीब के घर भी दिया जला है।
बदलाव का विरोध क्यों?हर बदलाव के साथ कुछ लोग असहज होते हैं —
क्योंकि बदलाव उनके “लाभ के ढांचे” को तोड़ देता है।
इसीलिए जो लोग पहले सड़कों पर कब्जा कर दुकानें लगवाते थे और वसूली करते थे, वे अब “परंपरा” के नाम पर सहानुभूति बटोरने निकले हैं।
लेकिन जनता अब जानती है — यह बदलाव शहर की आत्मा को बचाने के लिए जरूरी था।
विकास शर्मा: राजनीतिक नहीं, सामाजिक नेतृत्व का उदाहरण?महापौर विकास शर्मा ने यह दिखा दिया कि नेतृत्व केवल घोषणाओं से नहीं, कार्रवाई से सिद्ध होता है।
उन्होंने एक साथ तीन मोर्चों पर काम किया —
- व्यवस्था: बाजार से जाम और अतिक्रमण हटाया।
- संवेदना: ठेलेवालों के लिए सुरक्षित और सम्मानजनक स्थान दिया।
- संस्कृति: गांधी पार्क में मेला लगाकर रुद्रपुर की पहचान को जीवित रखा।
यह निर्णय कोई राजनीतिक स्टंट नहीं, बल्कि उस रुद्रपुर की आत्मा को लौटाने का प्रयास है, जो पहले अराजकता और भ्रष्टाचार में दब गई थी।
जब जनता बोले — “अब सही दीपावली है!”इस बार हर घर में यह चर्चा है —
“पहले तो ठेलेवालों से झगड़ा, जाम और धक्का-मुक्की होती थी; अब आराम से घूमो, खरीदो और मेला का आनंद लो।”
लोगों ने सोशल मीडिया पर भी लिखा —>इस बार की दीपावली में व्यवस्था दिखी है, सफाई दिखी है, और गरीब का भी चेहरा मुस्कराया है।”
यह दीपावली सिर्फ बिजली की नहीं — ईमानदारी की भी है?रुद्रपुर में इस बार बिजली के दीये तो जल रहे हैं,
पर उससे बड़ी बात यह है कि ईमानदारी का दीया भी जल उठा है।
जो वसूली संस्कृति वर्षों से “परंपरा” बन चुकी थी, उस पर प्रहार हुआ है।
अब हर गरीब ठेलेवाला अपने बच्चों के लिए मिठाई खरीद सकता है,
क्योंकि अब उसकी कमाई उसके पास रह रही है।
समाजसेवी सुशील गाबा के लिए सबक?सुशील गाबा जैसे लोगों को जनता ने एक सशक्त संदेश दिया है —
सहानुभूति दिखाना बुरा नहीं,
लेकिन जनता अब “भावनात्मक राजनीति” नहीं, “वास्तविक न्याय” चाहती है।
यदि गाबा वास्तव में समाजसेवी हैं, तो उन्हें यह समझना चाहिए कि गरीब के साथ खड़ा होना केवल बयान देने से नहीं,
बल्कि उसकी कमाई बचाने वाले निर्णयों का समर्थन करने से होता है
यह दीपावली रुद्रपुर की आत्मा की जीत है?रुद्रपुर की इस दीपावली ने यह साबित कर दिया कि विकास केवल इमारतें बनाने से नहीं, बल्कि न्यायपूर्ण व्यवस्था बनाने से आता है।
मेयर विकास शर्मा ने यह दिखाया कि यदि इच्छा शक्ति हो तो भ्रष्टाचार और अवैध वसूली जैसी “परंपराओं” का अंत भी संभव है।
आज शहर की सड़कों पर न जाम है, न झगड़े हैं,
गांधी पार्क में बच्चों की हंसी है,
और गरीब ठेलेवाले की आँखों में भी एक दीया जल रहा है।
वास्तव में इस बार दीपावली का असली अर्थ साकार हुआ है —
“अंधकार पर प्रकाश की जीत।”
और यह प्रकाश, केवल घरों में नहीं,
रुद्रपुर के सिस्टम में भी जल उठा है।
शुभ दीपावली — हर गरीब के घर जला दिया!
— संपादकीय , हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स
सरुद्रपुर में विकास की दीपावली — जब ठेलों से निकला उजाला!”रुद्रपुर के बाजारों में इस बार दीपावली की असली रौनक गांधी पार्क से फूटी है — जहाँ मेयर विकास शर्मा ने न केवल सड़कों को जाम और अराजकता से मुक्त कराया, बल्कि उस वसूली राज का भी पटाखा फोड़ दिया जो सालों से ठेलेवालों की जेब से 300-500 रुपये रोजाना खा जाता था।
कुछ व्यापारी “पुरानी परंपरा” के नाम पर आंसू बहा रहे हैं — पर जनता ने पूछ लिया, “कौन सी परंपरा? ठेलेवालों से वसूली की?”
अब गरीब का ठेला गांधी पार्क में, ग्राहक को खुली सड़क पर जगह, और पूरे शहर में व्यवस्था की मिठास!
सोशल मीडिया पर सुशील गाबा ने जब “पुरानी परंपरा” की वकालत की, तो जनता ने उनके कमेंट सेक्शन में सच्चाई का दीपक जला दिया — ‘अब हराम की कमाई नहीं चलेगी!’
रुद्रपुर की इस दीपावली में पहली बार गरीब का भी दिया जला है, और शहर ने देखा कि विकास सिर्फ नाम नहीं, विकास शर्मा भी एक भावना है!
यह दीपावली, भ्रष्टाचार पर ईमानदारी की जीत की दीपावली है!रुद्रपुर की नई व्यवस्था स्वागत योग्य?नगर निगम रुद्रपुर द्वारा गांधी पार्क में दीपावली मेला लगाने और ठेलेवालों से ₹500 से ₹5000 तक का शुल्क लेना एक सकारात्मक कदम है। यह राशि किसी व्यक्ति की जेब में नहीं, बल्कि नगर निगम और उत्तराखंड सरकार के राजस्व खाते में जा रही है। इससे एक ओर शहर में व्यवस्था बनी रहेगी, दूसरी ओर नगर निगम की आय बढ़ेगी, जिससे विकास कार्यों को गति मिलेगी। वर्षों से चली आ रही अव्यवस्था और अवैध वसूली अब समाप्त हो रही है — यही है रुद्रपुर में व्यवस्था और विकास की नई शुरुआत!


