
अगस्त 2025 का महीना अपने आप में अद्भुत संयोग लेकर आया है। एक ओर 15 अगस्त को हमारा राष्ट्र स्वतंत्रता दिवस मनाएगा, तो दूसरी ओर 16 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व होगा। उत्तराखंड समेत देश के कई हिस्सों में इस बार जन्माष्टमी दो दिन मनाई जा रही है—एक आज और एक कल।।✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)
क्यों मनाई जाती है जन्माष्टमी दो दिन?
भागवत पंचांग के अनुसार श्रीकृष्ण का वास्तविक जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि हुआ था। इस वर्ष पंचांग के अनुसार रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि का संगम दो अलग-अलग दिनों पर पड़ रहा है।

- पहला दिन (आज) – करवा/गृहस्थ मंदिरों और अधिकांश मठ-मंदिरों में वही तिथि मानी जाती है जिस दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि का योग रात में उपस्थित हो, अतः आज गृहस्थजन उपवास, पूजन और रात्रि जन्मलीला करते हैं।
- दूसरा दिन (कल) – वैष्णव संप्रदाय, मठों और कुछ मंदिरों में पारंपरिक पद्धति के अनुसार अगले दिन जन्म महोत्सव मनाया जाता है, ताकि पूजन और व्रत की पूर्णता चंद्र दर्शन के बाद हो।
यही कारण है कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कई स्थानों पर दो-दो दिन मनाई जाती है—एक दिन वास्तविक जन्म तिथि का उत्सव, और दूसरे दिन उसका धार्मिक व सामुदायिक आयोजन।
कृष्ण का ऐतिहासिक मुक्ति अभियान और स्वतंत्रता का अर्थ?भगवत पुराण में वर्णित नरकासुर वध का प्रसंग केवल एक धार्मिक कथा नहीं, बल्कि स्वतंत्रता का सनातन प्रतीक है। नरकासुर ने 16,100 स्त्रियों को बलपूर्वक अगवा कर कैद कर लिया था। ये कैद सिर्फ दीवारों की नहीं थी, बल्कि उनके सम्मान और स्वाभिमान की भी बेड़ियां थीं।जब यह अन्याय भगवान कृष्ण तक पहुँचा, तो उन्होंने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ युद्ध कर नरकासुर का अंत किया। मुक्त हुई स्त्रियों को उन्होंने केवल आज़ादी ही नहीं दी, बल्कि सामाजिक गरिमा भी दिलाई—उन सभी से विवाह कर लिया, ताकि किसी के पास उन्हें अपमानित करने का कोई अवसर न रहे।यही स्वतंत्रता का असली अर्थ है—बंधन तोड़ना ही नहीं, बल्कि ऐसा वातावरण बनाना जिसमें सम्मान, सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित हो।
स्वतंत्रता दिवस और जन्माष्टमी का साझा संदेश?जन्माष्टमी केवल भगवान के जन्म की स्मृति नहीं, बल्कि अधर्म और अन्याय पर धर्म की विजय का पर्व है।
1947 में जब भारत ने अंग्रेज़ी हुकूमत से मुक्ति पाई, तो यह हमारे राष्ट्र का नरकासुर वध जैसा ही क्षण था—सदियों के बंधन के बाद गरिमा के साथ जीने का अवसर।इस वर्ष जब स्वतंत्रता दिवस और जन्माष्टमी के बीच सिर्फ एक दिन का फासला है, तो यह मानो समय का संकेत है कि—
- स्वतंत्रता केवल राजनीतिक नहीं, सामाजिक और नैतिक भी होती है।
- अन्याय के सामने झुकना नहीं ही श्रीकृष्ण का भी और हमारे स्वतंत्रता सेनानियों का भी मूल संदेश रहा है।
आज के समय के लिए तीन सीख
- अन्याय के खिलाफ खड़े होना – चाहे वह रावण हो, कंस हो, या नरकासुर—अन्याय के सामने खड़े होने के लिए साहस जरूरी है।
- सिर्फ आज़ादी नहीं, सम्मान भी जरूरी – किसी को बंधन से मुक्त करना पर्याप्त नहीं, गरिमा और आत्मसम्मान लौटाना ही पूर्ण मुक्ति है।
- एकजुटता की ताकत – जब सत्य, साहस और करुणा साथ आते हैं, तो सबसे बड़ा अत्याचारी भी पराजित होता है।
इस बार जब उत्तराखंड के मंदिरों में दो दिन तक जन्माष्टमी की गूंज होगी और तिरंगा हर घर पर लहराएगा, तब यह संयोग हमें याद दिलाएगा—
स्वतंत्रता और धर्म, दोनों की रक्षा तभी संभव है जब हम सत्य, साहस और करुणा को जीवन का आधार बनाएं।
इस साल जन्माष्टमी व्रत को किस दिन रखा जाए, उसे लेकर लोगों में हर साल की भांति कन्फ्यूजन बना हुआ है. पंचांग और शास्त्र के अनुसार किस दिन कान्हा के लिए व्रत रखना उचित रहेगा? आइए व्रत की तारीख और पूजा और मंत्र जप आदि का सही समय धर्म के मर्मज्ञ और जाने-माने ज्योतिषविद् आचार्य राज मिश्र से जानते हैं.
किस चीज को लेकर है कन्फ्यूजन
भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को लेकर पौराणिक शास्त्र कहते हैं कि बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि कालीन चंद्रमा वृष राशि में जब स्थित था, तब उनका जन्म हुआ. जिसे हर साल मनाए जाने वाले कान्हा के जन्मोत्सव के दौरान मिल पाना मुश्किल होता है और इन्हीं सब चीजों में से कुछ के रहने और कुछ के न रहने पर अक्सर लोगों के सामने असमंजस की स्थिति बनी रहती है. इस बार भी कुछ यही स्थिति सामने हैं. सभी चीजें एक साथ नहीं मिल पा रही हैं.
आचार्य राज मिश्रा के अनुसार इस साल भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि 15 अगस्त 2025 की रात को 11:50 बजे प्रारंभ होगी और 16 अगस्त 2025 को रात्रि 09:35 बजे खत्म हो जाएगी. इस तरह देखें तो अष्टमी तिथि जिसमें भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है वह 15 अगस्त 2025 को ही प्राप्त हो रही है. लेकिन हमारे शास्त्र कहते हैं कि सप्तमी युता अष्टमी नहीं ग्रहण करनी चाहिए. हालांकि शास्त्र यही भी कहता है कि जिस समय जिस देवता का जन्म हुआ, उसी समय उस देवता का जन्मोत्सव मनाना चाहिए.
शास्त्रों में बताया गया है ऐसी समस्या का समाधान
व्रत की जिस तारीख को लेकर आम लोगों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है उस समस्या का समाधान हमारे शास्त्रों में बताया गया है. आचार्य राज मिश्र के अनुसार यदि सूर्योदय के बाद यदि कोई तिथि तीन घड़ी यानि लगभग 72 मिनट तक विद्ममान है तो उस तिथि को पूरे दिन स्वीकार किया जा सकता है. इस साल 15 अगस्त 2025 को 11:50 की रात्रि को प्रारंभ होने वाले अष्टमी तिथि सूर्योदय के समय एक समय भी भगवान के जन्म से पहले नहीं प्राप्त हो रही है, जबकि 16 तारीख को ये तिथि पूरे दिन सूर्यास्त के बाद भी रात्रि 09:35 बजे तक रहेगी.
कब मनाया जाएगा जन्माष्टमी का पर्व
आचार्य राज मिश्र के अुनसार मथुरा में मनाए जाने वाले कान्हा के जन्मोत्सव में नवमी युक्ता अष्टमी को स्वीकार किया जाता है क्योंकि द्वापरयुग में भगवान का जन्म रात्रि को हुआ और मथुरावासियों को सुबह लोगों को पता लगा कि नंद के घर आनंद यानि भगवान श्री कृष्ण् का जन्म हुआ है. ऐसी स्थिति में शास्त्र के अनुसार इस साल 16 अगस्त 2025 को ही जन्माष्टमी का पर्व मनाना उचित रहेगा.
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किस दिन करें मंत्र साधना
आचार्य राज मिश्र के अनुसार यदि आप किसी कामना को लेकर कान्हा के मंत्र को जपना चाहते हैं तो इसके लिए 15 अगस्त 2025 की रात्रि का समय ही सबसे शुभ और फलदायी रहने वाला है, लेकिन यदि आप यदि कान्हा का जन्मोत्सव मनाना चाहते हैं तो उसके लिए 16 अगस्त 2025 का दिन ही सभी प्रकार से शुभता लिए हुए है. 16 अगस्त का दिन भगवान श्री कृष्ण के व्रत, पूजन और मंदिर में जाकर दर्शन आदि के लिए अत्यंत ही शुभ रहने वाला है.
अगर रखना हो जन्माष्टमी का व्रत
यदि आप भगवान श्री कृष्ण का व्रत रखना चाहते हैं तो आपको 15 अगस्त 2025 की रात्रि 11:50 से पहले जो भी भोजन करना हो कर लें, उसके बाद जब अष्टमी तिथि लग जाए तो आपको भोजन नहीं करना चाहिए. इसके बाद यदि आप चाहें तो फलहार ले सकते हैं. व्रत के नियम बच्चे, बुजुर्ग और मरीजों पर पूरी तरह से लागू नहीं होते हैं. वे अपनी आस्था और सामर्थ्य के अनुसार जितना संभव हो सके उसका पालन कर सकते हैं.
जन्माष्टमी व्रत का उपाय
व्रत के दौरान व्यक्ति को यदि समय मिले तो उसे भगवान श्रीकृष्ण के मंत्र का जप तुलसी या फिर चंदन की माला से करना चाहिए. श्रीकृष्ण भगवान का मंत्र आप अपनी श्रद्धा और विश्वास के अनुसार चुन सकते हैं.


