राजनीति और अध्यात्म का संगम: उज्जैन में महाकाल की शरण में पहुंची मीना शर्मा रिपोर्ट: अवतार सिंह बिष्ट, विशेष संवाददाता, हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स गुजरात प्रवास का राजनीतिक परिप्रेक्ष्य

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जब राजनीति की व्यस्त गलियों से निकलकर कोई जनप्रतिनिधि अध्यात्म की शरण में जाता है, तो वह केवल निजी नहीं बल्कि सामाजिक ऊर्जा का भी नवसंचार करता है। कुछ ऐसा ही दृश्य हाल ही में उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में देखने को मिला, जहाँ उत्तराखण्ड महिला कांग्रेस की वरिष्ठ उपाध्यक्ष और पूर्व पालिका अध्यक्ष मीना शर्मा ने दर्शन कर अध्यात्मिक ऊर्जा अर्जित की।

गुजरात प्रवास के क्रम में जब रुद्रपुर की जनता की जननेत्री मीना शर्मा उज्जैन पहुंचीं, तो उनके साथ उनका समर्पित राजनीतिक और पारिवारिक दल भी मौजूद था। उज्जैन पहुँचकर उन्होंने पहले महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में विधिवत पूजा-अर्चना की, फिर श्री काल भैरव मंदिर में आरती में भाग लिया। इस यात्रा ने यह संदेश दिया कि आज की राजनीति में भी आध्यात्मिकता का स्थान न केवल आवश्यक है, बल्कि यह जनसेवा को संबल भी प्रदान करता है।

महाकाल की नगरी में श्रद्धा का प्रवाह

महाकालेश्वर मंदिर भारत के १२ ज्योतिर्लिंगों में एक है और विशेषत: तंत्र साधना व भैरव पूजा के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ पहुंचकर मीना शर्मा ने न केवल व्यक्तिगत शांति की तलाश की बल्कि अपने क्षेत्र की खुशहाली, सामाजिक सौहार्द्र, और समुचित विकास के लिए विशेष प्रार्थना भी की। उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा, “मेरे लिए राजनीति केवल सत्ता का माध्यम नहीं, सेवा का मार्ग है। और सेवा का सही रास्ता तभी मिलता है जब हम अंदर से संतुलित हों। महाकाल के दरबार में आकर मुझे वही संतुलन मिलता है।”

राजनीतिक जीवन की धारा में अध्यात्म की कल-कल

उत्तराखण्ड की राजनीति में मीना शर्मा का एक अलग स्थान है — महिला सशक्तिकरण से लेकर स्थानीय समस्याओं की मुखर वकालत तक, वे हमेशा जनता के बीच सक्रिय रही हैं। लेकिन उनके राजनीतिक जीवन में अध्यात्म भी उतना ही गहरा जुड़ा हुआ है। चाहे वह हरिद्वार कुंभ में उनकी सक्रियता रही हो या बाबा नीम करौली की स्थली कैंची धाम में दर्शन — हर बार वे सामाजिक सरोकारों के साथ-साथ अध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करती रही हैं।

उज्जैन यात्रा के साथियों की अनुभूतियाँ

उनकी इस यात्रा में शामिल कांग्रेस नेता अनिल शर्मा ने बताया, “मीना जी का जीवन दर्शन संतुलन पर आधारित है। वे एक साथ जनसेविका भी हैं और अध्यात्म की साधिका भी। उज्जैन की इस यात्रा में उन्होंने जो श्रद्धा प्रकट की, वह केवल पूजा नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक संदेश है।”

मीना शर्मा के परिजनों ने भी अनुभव साझा करते हुए कहा कि उन्हें उज्जैन यात्रा से मन की शांति प्राप्त हुई और राजनेता के रूप में मीना शर्मा को इस यात्रा से नई ऊर्जा मिली है।

गुजरात प्रवास का राजनीतिक परिप्रेक्ष्य

मीना शर्मा का गुजरात दौरा केवल धार्मिक नहीं, राजनीतिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण रहा। उन्होंने महिला कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की, संगठन की मजबूती और उत्तराखण्ड की भावी राजनीति को लेकर चर्चा की। स्थानीय महिला कार्यकर्ताओं से संवाद करते हुए उन्होंने कहा कि आने वाला समय महिलाओं का है और कांग्रेस पार्टी नारी शक्ति को निर्णयात्मक भूमिका में लाने का संकल्प ले चुकी है।

धार्मिक यात्रा के बहाने सामाजिक सरोकारों पर चर्चा

उज्जैन प्रवास के दौरान मीना शर्मा ने कई सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों से मुलाकात कर क्षेत्रीय विकास, महिला सुरक्षा, और धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने जैसे मुद्दों पर विचार-विमर्श किया। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि उत्तराखण्ड सरकार को भी अपने राज्य के धार्मिक स्थलों के विकास के लिए मध्यप्रदेश के उज्जैन मॉडल से प्रेरणा लेनी चाहिए।

राजनीति और आध्यात्मिकता का संतुलन: एक नई दिशा

राजनीति और अध्यात्म के बीच संतुलन बनाना आसान नहीं, लेकिन मीना शर्मा ने यह कर दिखाया है। आज जब राजनीति केवल सत्ता और विवादों तक सीमित होती जा रही है, ऐसे में उनकी उज्जैन यात्रा एक सुकूनदायक उदाहरण बनकर सामने आई है। उन्होंने यह सिद्ध किया कि एक राजनेता का मन और लक्ष्य दोनों पवित्र हों तो राजनीति भी सेवा का माध्यम बन सकती है।

जनता में सकारात्मक संदेश

रुद्रपुर और पूरे कुमाऊँ क्षेत्र में मीना शर्मा की उज्जैन यात्रा को लेकर चर्चाएं हैं। लोग सोशल मीडिया पर उनके महाकाल दर्शन की तस्वीरें साझा कर रहे हैं और इसे एक सकारात्मक संकेत मान रहे हैं। कई युवाओं ने यह भी कहा कि राजनीति में ऐसे चेहरे चाहिए जो केवल नारे न लगाएं बल्कि आध्यात्मिक मूल्यों को भी जिएं।

समापन: आस्था, सेवा और नेतृत्व का समन्वय

मीना शर्मा की उज्जैन यात्रा राजनीति में एक नई हवा लेकर आई है। यह केवल एक धार्मिक प्रवास नहीं बल्कि एक संदेश था — कि सत्ता पाने की होड़ से ऊपर उठकर भी नेतृत्व किया जा सकता है। आस्था, सेवा और नेतृत्व का यह समन्वय आने वाले समय में राजनीति की दिशा को बदल सकता है।

महाकाल की नगरी में की गई यह यात्रा इस बात की पुष्टि करती है कि सच्चा नेता वही है जो अपने भीतर के संतुलन को पहचानता है और समाज के लिए वह ऊर्जा लेकर लौटता है।


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