रम्पुरा स्थित मंदिर भूमि पर कब्जे के प्रयास पर न्यायालय ने लगाई रोक? भाईचारा एकता मंच ट्रस्ट के पक्ष में आया सिविल जज (सी.डी.) रुद्रपुर का महत्वपूर्ण आदेश?न्यायालयीय आदेश में नगर निगम का नाम न होने से बढ़ी कानूनी जटिलता

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रुद्रपुर, 4 अक्टूबर 2025 (प्रतिवेदन : अवतार सिंह बिष्ट)रुद्रपुर नगर के रम्पुरा क्षेत्र में स्थित एक भूखण्ड पर बने मंदिरों की भूमि को लेकर उठे विवाद में सिविल जज (सी.डी.) रुद्रपुर न्यायालय ने बड़ा आदेश जारी किया है। न्यायालय ने ‘भाईचारा एकता मंच ट्रस्ट (रजि.)’ के पक्ष में अस्थायी निषेधाज्ञा जारी करते हुए प्रतिवादीगण को उक्त भूमि पर किसी भी प्रकार के अतिक्रमण, निर्माण, कब्जा या तीसरे पक्ष को हित सृजन से रोक दिया है।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

मामले की पृष्ठभूमि?वादी श्री कान्ता प्रसाद गंगवार, जो भाईचारा एकता मंच ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं, ने न्यायालय में स्थायी निषेधाज्ञा वाद दायर करते हुए यह आरोप लगाया कि प्रतिवादीगण पिछले कुछ समय से रम्पुरा स्थित ट्रस्ट की भूमि पर कब्जा करने का प्रयास कर रहे हैं।

यह भूखण्ड वार्ड नं. 6/20, मौहल्ला रम्पुरा, तहसील रुद्रपुर, जिला ऊधमसिंह नगर में स्थित है, जिसका आकार लगभग 120 फीट x 125 फीट बताया गया है। इस भूखण्ड पर चन्द्रदेव मंदिर, मां काली मंदिर, भैरव बाबा मंदिर तथा अन्य कमरे बने हुए हैं।

वादी का कहना है कि यह भूमि पिछले लगभग तीस वर्षों से ट्रस्ट के शांतिपूर्ण कब्जे में है। ट्रस्ट द्वारा यहाँ तीनों मंदिरों का निर्माण करवाया गया तथा पूजा-अर्चना के लिए पुजारी भी नियुक्त किया गया है।

दस्तावेजी प्रमाण और स्वामित्व के साक्ष्य?वादपत्र के साथ ट्रस्ट द्वारा कई दस्तावेज न्यायालय में प्रस्तुत किए गए, जिनमें —

  • ट्रस्ट डीड की छायाप्रति,
  • जिलाधिकारी ऊधमसिंह नगर का पत्र,
  • राजस्व निरीक्षक रुद्रपुर की 28 जुलाई 2022 की आख्या,
  • उत्तराखण्ड पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड की विद्युत संयोजन रसीद (2012 से),
  • नगर निगम द्वारा गृहकर निर्धारण एवं भुगतान रसीदें,
  • जीएसटी, 12A, 80G व उद्यम पंजीकरण प्रमाणपत्र,
  • नीति आयोग में पंजीकरण दस्तावेज,
    शामिल हैं।

राजस्व निरीक्षक की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से यह सत्यापित किया गया है कि उक्त भूमि पर भाईचारा एकता मंच ट्रस्ट का कब्जा वैध रूप से विद्यमान है। तहसीलदार किच्छा ने भी इस रिपोर्ट पर प्रतिहस्ताक्षर किए हैं।

कब्जा प्रयास की घटना और विवाद का कारण?वादी के अनुसार दिनांक 18 सितंबर 2025 को प्रतिवादीगण ने विवादित स्थल पर आकर जबरन तारबाड़ कर कब्जा करने का प्रयास किया। यह प्रयास असफल रहा, परंतु प्रतिवादीगण ने 28 सितंबर 2025 को पुनः मौके पर आकर धमकी दी और पुनः कब्जे की कोशिश की। इस घटना के बाद ट्रस्ट ने न्यायालय की शरण ली।

न्यायालय का अवलोकन और निर्णय?प्रभारी सिविल जज (सी.डी.) हेमन्त सिंह ने पत्रावली का अवलोकन करने के बाद कहा कि प्रथम दृष्टया वादी ट्रस्ट उक्त भूमि पर वैध रूप से काबिज है तथा उसके हितों की रक्षा हेतु तत्काल आदेश आवश्यक है।

न्यायालय ने अपने आदेश में कहा—

“यदि इस स्तर पर कोई आदेश न दिया गया तो वादी का वाद संस्थित किये जाने का उद्देश्य विफल होने की संभावना है।”

इसलिए न्यायालय ने प्रतिवादीगण को आदेशित किया कि —

“प्रतिवादीगण, उनके एजेंट, रिश्तेदार, नौकर-चाकर किसी भी प्रकार से उक्त भूमि पर नाजायज हस्तक्षेप, कब्जा, निर्माण, मार्ग अवरुद्ध करने या मंदिर संचालन में बाधा उत्पन्न करने से निषिद्ध रहें।”

साथ ही, न्यायालय ने वादी को निर्देश दिया है कि वह वादपत्र एवं दस्तावेजों की सत्यापित प्रतियां प्रतिवादीगण को तुरंत भेजना सुनिश्चित करे तथा आदेश 39 नियम 3 सीपीसी के अंतर्गत अनुपालन करे।

वाद का विवरण

  • मूल वाद संख्या : 252/2025
  • वाद का प्रकार : स्थायी निषेधाज्ञा
  • वाद का मूल्यांकन : ₹6,00,000
  • वादी पक्ष के अधिवक्ता : श्री अमित कालरा
  • प्रतिवादी पक्ष के अधिवक्ता : अभी नामित नहीं
  • वाद प्रस्तुत तिथि : 04 अक्टूबर 2025
  • आपत्ति / जवाबदावा हेतु अगली तिथि : 14 अक्टूबर 2025
  • समन तिथि : 04 नवम्बर 2025
  • अगली सुनवाई की तिथि : 11 नवम्बर 2025

स्थानीय प्रतिक्रिया?मामले ने रुद्रपुर नगर में धार्मिक-सामाजिक चर्चा को जन्म दे दिया है। क्षेत्र के कई लोगों ने न्यायालय के आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि मंदिर की भूमि की सुरक्षा के लिए यह निर्णय आवश्यक था।

भाईचारा एकता मंच ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री कान्ता प्रसाद गंगवार ने कहा —

“हमने सद्भाव, सेवा और एकता के लिए यह संस्था बनाई है। हमारा उद्देश्य किसी से विवाद नहीं, बल्कि समाज में प्रेम और धार्मिक सद्भाव बनाए रखना है। न्यायालय का आदेश हमारे विश्वास की जीत है।”


रम्पुरा मंदिर भूमि विवाद में नया मोड़ : नगर निगम और ट्रस्ट आमने-सामने,न्यायालयीय आदेश में नगर निगम का नाम न होने से बढ़ी कानूनी जटिलता,रम्पुरा वार्ड नं. 6/20 स्थित मंदिर भूमि विवाद का मामला अब और पेचीदा हो गया है। जहाँ एक ओर सिविल जज (सी.डी.) रुद्रपुर न्यायालय ने “भाईचारा एकता मंच ट्रस्ट” के पक्ष में अस्थायी निषेधाज्ञा जारी की है, वहीं दूसरी ओर नगर निगम रुद्रपुर इस भूमि को नगर निगम की संपत्ति बता रहा है। निगम प्रशासन का कहना है कि यह भूमि सार्वजनिक उपयोग के लिए चिन्हित थी, जिस पर ट्रस्ट ने वर्षों पूर्व अवैध कब्जा कर लिया था।

जानकारी के अनुसार नगर निगम के महापौर विकास शर्मा और निगम के प्रशासनिक अधिकारियों ने इस भूखंड पर विवाद उत्पन्न होने के बाद कई बार वोटिंग (मतगणना/मतैक्य प्रक्रिया) के माध्यम से निर्णय लेकर उक्त भूमि को नगर निगम के अधीन घोषित कर लिया। निगम का दावा है कि उक्त भूखंड निगम के रिकॉर्ड में नगर भूमि के रूप में दर्ज है और वहाँ किसी निजी ट्रस्ट या संस्था के स्वामित्व का कोई वैध दस्तावेज उपलब्ध नहीं है।

दूसरी ओर, भाईचारा एकता मंच ट्रस्ट का कहना है कि वे पिछले लगभग तीस वर्षों से उक्त भूमि पर मंदिरों का संचालन कर रहे हैं और ट्रस्ट के पास पंजीकृत दस्तावेज, बिजली कनेक्शन, गृहकर रसीदें तथा राजस्व निरीक्षक की सत्यापित रिपोर्ट मौजूद हैं। यही नहीं, ट्रस्ट ने यह भी दावा किया है कि नगर निगम ने कभी इस भूमि के स्वामित्व को लेकर कोई वैधानिक नोटिस या अधिग्रहण की कार्यवाही नहीं की।

रोचक तथ्य यह है कि 4 अक्टूबर 2025 को जारी न्यायालयीय आदेश में कहीं भी नगर निगम का उल्लेख नहीं किया गया है। आदेश में विवाद केवल ट्रस्ट और प्रतिवादी पक्ष के बीच माना गया है, जबकि नगर निगम का दावा इस विवाद में तीसरे पक्ष के रूप में उभर कर सामने आ रहा है। यही बिंदु आने वाले दिनों में इस प्रकरण को और जटिल बना सकता है।

नगर निगम प्रशासन का तर्क है कि मंदिरों का निर्माण भले ही ट्रस्ट ने कराया हो, परंतु भूमि सार्वजनिक उपयोग की श्रेणी में आती है और नगर निगम की संपत्ति पर किसी निजी ट्रस्ट का दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता। वहीं ट्रस्ट का पक्ष है कि यह भूमि कभी भी निगम के नाम दर्ज नहीं रही, और निगम अब राजनीतिक दबाव में आकर कब्जे का प्रयास कर रहा है।

स्थानीय स्तर पर इस मुद्दे को लेकर चर्चाएँ तेज हैं। कुछ लोग इसे धार्मिक भावना से जुड़ा मामला बता रहे हैं तो कुछ इसे नगर निगम और निजी संस्थाओं के बीच अधिकार-सीमा के टकराव का उदाहरण मान रहे हैं।

अब सबकी नज़र इस बात पर टिकी है कि न्यायालय में आगामी तिथि पर नगर निगम क्या रुख अपनाता है — क्या वह स्वयं को तीसरे पक्ष के रूप में हस्तक्षेप आवेदन देकर पेश करेगा या फिर ट्रस्ट के पक्ष में जारी निषेधाज्ञा को चुनौती देगा।

फिलहाल न्यायालय के आदेश के बाद ट्रस्ट को अस्थायी राहत तो मिल गई है, परंतु नगर निगम के दावे से यह स्पष्ट है कि मामला अभी समाप्त नहीं हुआ। आने वाले दिनों में रम्पुरा की यह मंदिर भूमि कानूनी और प्रशासनिक दोनों ही दृष्टियों से एक बड़ी बहस का विषय बन सकती है।


न्यायालय के इस आदेश से फिलहाल विवादित भूमि की स्थिति यथावत बनी रहेगी और ट्रस्ट को मंदिर संचालन में कोई बाधा नहीं आएगी। मामला अब आगे 14 अक्टूबर 2025 को होने वाली सुनवाई में प्रतिवादीगण के जवाब दाखिल होने के बाद आगे बढ़ेगा।



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