
उत्तराखंड के केदारनाथ धाम की यात्रा हर वर्ष लाखों श्रद्धालुओं की आस्था, श्रद्धा और अदम्य उत्साह का प्रतीक बनकर सामने आती है। लेकिन इस वर्ष की यात्रा से जो दुखद समाचार लगातार सामने आ रहे हैं, वे श्रद्धा से कहीं अधिक चिंता और संवेदनशीलता की मांग कर रहे हैं। मंगलवार को गौरीकुंड के पास 45 वर्षीय महिला श्रद्धालु सुमित्रा बाई पत्नी रंगलाल, निवासी मध्य प्रदेश की अचानक मौत ने सभी को झकझोर कर रख दिया। बताया गया कि वह बाबा केदारनाथ के दर्शन कर वापस लौट रही थीं, तभी गौरीकुंड गेट के पास उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) के अनुसार, जिला आपदा राहत दल ने तत्काल महिला को गौरीकुंड अस्पताल पहुंचाया, लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।


यह कोई एकल मामला नहीं है। यह घटना उस चौंकाने वाली श्रृंखला का हिस्सा है, जिसमें केदारनाथ सहित चारधाम यात्रा के दौरान कई श्रद्धालुओं ने अपनी जान गंवाई है। प्राप्त आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, अभी तक इस वर्ष (2025) की चारधाम यात्रा में 66 से अधिक श्रद्धालुओं की मौत हो चुकी है — जिनमें से अधिकतर की मौत का कारण हृदयगति रुकना (कार्डियक अरेस्ट), थकावट, उच्च रक्तचाप और ऑक्सीजन की कमी रहा है। यह आंकड़ा केवल संख्या नहीं है, बल्कि यह राज्य सरकार, स्वास्थ्य विभाग और यात्रा संचालन व्यवस्था के लिए एक चेतावनी है।
श्रद्धा के नाम पर जोखिम क्यों?चारधाम यात्रा के लिए ऋषिकेश ट्रांजिट केंद्र में श्रद्धालुओं का स्वास्थ्य परीक्षण किया जाता है। लेकिन एक चौंकाने वाली सच्चाई यह भी है कि इस बार अब तक 1390 यात्रियों को “अस्वस्थ” यानी अनफिट घोषित किया गया है। मगर इन यात्रियों ने यात्रा न छोड़ने की जिद की, और प्रशासन ने केवल ‘वचन पत्र’ (अंडरटेकिंग) लेकर उन्हें यात्रा की अनुमति दे दी। यह एक खतरनाक समझौता है, जिसमें प्रशासनिक नर्म रवैया और श्रद्धालुओं की जिद दोनों ही जानलेवा साबित हो रहे हैं।
सवाल यह उठता है कि क्या धार्मिक आस्था के नाम पर अपनी जान जोखिम में डालना उचित है? और क्या प्रशासन केवल कागजी कार्रवाई कर के अपने दायित्वों की इतिश्री कर सकता है?
लचर व्यवस्था और जरूरत बदलाव की
केदारनाथ यात्रा एक कठिन पर्वतीय यात्रा है, जिसमें शरीर की क्षमता, उम्र, स्वास्थ्य की स्थिति और मौसम की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। लेकिन आज भी हजारों श्रद्धालु बिना समुचित मेडिकल परीक्षण और तैयारी के इस यात्रा पर निकल पड़ते हैं। कई वृद्धजन और पहले से बीमार लोग इस यात्रा में शामिल हो रहे हैं। यह जानते हुए भी कि ऊँचाई, ऑक्सीजन की कमी और लंबी पैदल यात्रा उनके लिए जानलेवा साबित हो सकती है।
राज्य सरकार और यात्रा संचालन प्राधिकरण को अब स्वास्थ्य सुरक्षा को कठोर नियमों के रूप में लागू करना होगा। केवल वचनपत्र लेकर यात्रियों को छोड़ना एक गैरजिम्मेदार रवैया है। साथ ही, प्रत्येक पड़ाव पर मेडिकल चेकअप और रियल टाइम स्वास्थ्य निगरानी की व्यवस्था अनिवार्य की जानी चाहिए।
श्रद्धालुओं की ज़िम्मेदारी भी ज़रूरी
यह कहना गलत नहीं होगा कि श्रद्धालुओं की जिद और लापरवाही भी इस त्रासदी के पीछे बड़ा कारण है। “हरिद्वार से सीधा भगवान के द्वार” की भावना के साथ कई लोग गंभीर बीमारियों को नजरअंदाज करते हुए यात्रा पर निकल पड़ते हैं। यात्रा से पहले कम से कम एक माह की स्वास्थ्य तैयारी, उचित खान-पान और डॉक्टर की राय अनिवार्य रूप से ली जानी चाहिए।
चारधाम यात्रा केवल एक धार्मिक रूट नहीं, बल्कि एक संवेदनशील मानव-यात्रा है — जिसमें आस्था के साथ जिम्मेदारी की भी आवश्यकता है। केदारनाथ बाबा की पवित्र भूमि पर श्रद्धालु जन सुख-शांति प्राप्त करने आते हैं, लेकिन अगर व्यवस्थाएं न सुधरीं और श्रद्धालु सतर्क न हुए, तो यह यात्रा शोक यात्रा में बदल सकती है।आस्था के साथ विवेक भी जरूरी है। अन्यथा आने वाले वर्षों में चारधाम यात्रा श्रद्धा की नहीं, त्रासदियों की गाथा बनकर रह जाएगी।
लेखक परिचय:
अवतार सिंह बिष्ट
वरिष्ठ संवाददाता – हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स / शैल ग्लोबल टाइम्स
रुद्रपुर, उत्तराखंड
(चारधाम, राज्य विकास, जनसरोकारों व आपदा प्रबंधन विषयों पर विशेष रिपोर्टिंग अनुभव)
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