वेंडिंग जोन की वीरानी : ‘रसूख’ ने मारी रोज़गार की जड़

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रुद्रपुर के गांधी पार्क के पास नगर निगम द्वारा बनाए गए वेंडिंग जोन का उद्देश्य साफ़ था — सड़क किनारे से हटाए गए लघु व्यापारियों को स्थायी रोजगार और सम्मानजनक स्थान देना। लेकिन छह महीने बीत जाने के बाद भी यह जोन वीरान पड़ा है। 79 दुकानों में से केवल छह दुकानें खुली हैं। बाकी पर ‘बंद शटर’ और ‘सन्नाटा’ इस सरकारी योजना की असफलता की गवाही दे रहे हैं।

छोटे व्यापारी परेशान, बड़े ‘प्रभावशाली’ मौन?जिन लघु व्यापारियों के लिए यह जोन बना था, उनमें से कुछ ने अपनी छोटी दुकानें शुरू कीं — जूस, फास्ट फूड और हल्की खाद्य सामग्री जैसी। लेकिन जिन दुकानों पर प्रभावशाली और बड़े व्यापारी काबिज हैं, उन्होंने अब तक व्यापार शुरू नहीं किया। इन रसूखदारों की निष्क्रियता ने छोटे व्यापारियों के सामने संकट खड़ा कर दिया है। ग्राहकों की आवाजाही कम होने से कारोबार ठप है और जो लोग रोज़ की कमाई पर निर्भर थे, वे अब किस्त और किराया चुकाने की चिंता में डूबे हैं।

नगर निगम की चेतावनी?नगर आयुक्त प्रभारी शिप्रा जोशी ने स्पष्ट किया है कि सभी आवंटियों को नोटिस जारी किए गए हैं — एक माह के भीतर दुकानें चालू नहीं कीं तो कार्रवाई तय है। यह वक्तव्य प्रशासन की सख़्ती दिखाता है, लेकिन सवाल ये है कि क्या इतनी चेतावनियां काफी हैं जब पूरा सिस्टम रसूख की गिरफ्त में हो?

सांप्रदायिक और सामाजिक एकता का पहलू?वेंडिंग जोन केवल आर्थिक परियोजना नहीं था — यह सामाजिक समरसता का प्रतीक भी हो सकता था। राममनोहर लोहिया मार्केट और रोडवेज बस स्टेशन से हटाए गए हिन्दू-मुस्लिम, सिख, पंजाबी, बंगाली, बिहारी सभी समुदायों के छोटे व्यापारी यहां एक साथ नई शुरुआत करने जा रहे थे।
लेकिन ‘ऊपर से नीचे तक फैले प्रभाव’ ने इस सामूहिक रोज़गार के अवसर को भी जाति, समुदाय और आर्थिक स्तर के फर्क में बाँट दिया।

सच्चाई यह है कि जब समाज का कमजोर वर्ग ‘व्यवस्था’ पर भरोसा करता है, तो वही व्यवस्था ‘प्रभावशालियों’ के कब्ज़े में चली जाती है। वेंडिंग जोन की वीरानी केवल दुकानों की नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक समानता और भाईचारे की भी हार है।

जरूरत है सामाजिक जागरूकता की?अब वक्त है कि रुद्रपुर के नागरिक, व्यापारी संगठन और प्रशासन मिलकर इस जोन को पुनर्जीवित करें।

  • हर दुकान खुले, हर व्यापारी बराबरी से मौका पाए।
  • नगर निगम ‘नाम के वेंडिंग जोन’ को ‘रोज़गार के असली केंद्र’ में बदलने की जिम्मेदारी ले।
  • और सबसे ज़रूरी — सामाजिक एकता की भावना से सब मिलकर इस स्थान को जीवंत बनाएं, ताकि यह किसी जाति, वर्ग या रसूख का नहीं, बल्कि शहर की मेहनतकश आत्मा का प्रतीक बन सके।


लेखक – अवतार सिंह बिष्ट
संपादकीय विश्लेषक, / हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स



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